चौरी चौरा कांड (5 फरवरी 1922):-
असहयोग आंदोलन के दौरान सी.आर. दास और उनकी पत्नी बसंती देवी के साथ-साथ लगभग 30,000 लोगों की गिरफ्तारी के विरोध में गोरखपुर जिले के चौरी चौरा नामक स्थान पर लोगों ने शांत पूर्वक जुलूस निकालकर अपना विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने भीड़ पर गोलियां चलाई। जिससे प्रदर्शनकारी उग्र हो गए ।उग्र हुए किसान आंदोलनकारियों ने थाने के थानेदार सहित 22 पुलिस कर्मियों को थाने में बंद कर आग लगा दी। जिससे सभी 22 पुलिसकर्मी मारे गए। इस हिंसक भीड़ का नेतृत्व किसान “भगवान दास अहीर” कर रहा था। जो की एक रिटायर्ड सैनिक था।
इस घटना से महात्मा गांधी अत्यंत दुखी हुए। गांधी जी हिंसा के घोर विरोधी थे, उनके विचार से यदि यह आंदोलन हिंसक हो गया तो उनका उद्देश्य असफल हो जाएगा। इसी कारण उन्होंने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन को वापस लेने की घोषणा की |
गांधी जी के इस निर्णय से आंदोलन से जुड़े नेता आश्चर्यचकित थे, कुछ नेताओं ने इस निर्णय पर विरोध जताया और कहा कि “देश के एक गांव के कुछ लोगों की गलती का खामियाजा समूचा देश क्यों भुगते।” कुछ इतिहासकारों का मानना है, कि गांधी जी एक दूरदर्शी व्यक्ति थे, वह इस आंदोलन को वापस लेने के पीछे उनकी दूरगामी परिणामों की सोची समझी रणनीति हो सकती थी। जिसे निम्न बिंदुओं द्वारा समझा जा सकता है:-
•गांधी जी के विचार से “कैदी नागरिक दृष्टि से मृत होते हैं” और इस आंदोलन के तहत प्रथम पंक्ति के लगभग सभी नेताओं को जेल में बंद किया जा चुका था।
•आंदोलन बिना नेताओं के नेतृत्व विहीन, उदासीन हो गया था।
•जनता में उदासीनता झलकने लगी थी, क्योंकि यह आंदोलन काफी लंबा हो गया था।
•यह आंदोलन अपने वास्तविक उद्देश्य से अलग निजी स्वार्थ की ओर अग्रसर हो रहा था।
•आंदोलन का दमन करने के लिए चौरी चौरा कांड सरकार के लिए एक बहाना मिल गया था। जिसके सहारे आंदोलन और आंदोलनकारी दोनों को नष्ट कर दिया जाता।
परिणाम स्वरुप नेताओं के विरोध/ प्रतिक्रियाओं के बाद अंततः सभी ने गांधी जी के फैसले को स्वीकार किया और असहयोग आंदोलन स्थगित हो गया। इसी समय जेल में सी.आर.दास ने कहा “समूचा देश (भारत) एक विशाल बंदी ग्रह है।”
चौरी-चौरा घटना के होने का मुख्य कारण अनाज की बढ़ती कीमतें, शराब की बिक्री का विरोध आदि। इन्हीं समस्याओं के विरोध में एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा धरना प्रदर्शन किया जा रहा था।
चौरी-चौरा घटना के बाद 225 अभियुक्त पकड़े गए। इनमें से 19 व्यक्तियों को फांसी की सजा दी गई तथा शेष अभियुक्तों को देश से निष्कासन की सजा दी गई।
गांधी जी के आंदोलन वापस लेने पर पंडित मोतीलाल नेहरू और लाला लाजपत राय द्वारा गांधी जी को पत्र लिखकर विरोध दर्ज कराया गया और कहा कि “किसी एक स्थान पर दंगे होने की सजा समस्त देशवासियों को नहीं दी जा सकती।”
सुभाष चंद्र बोस ने अपनी “पुस्तक द इंडियन स्ट्रगल (The Indian Struggle)”में लिखा कि “ऐसे अवसर पर जब जनता का उत्साह चरम पर था, पीछे लौटने का आदेश देना किसी राष्ट्रीय संकट से कम नहीं था।”
आंदोलन वापस लेने की घटना से नाराज होकर डा. मुंजे और जे.एम.सेन गुप्ता ने 1922 में दिल्ली की विजय समिति की बैठक में गांधी जी के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया। आंदोलन के स्थगन के बाद गांधीजी को गिरफ्तार किया गया तथा 6 वर्ष की सजा दी गई।
प्रश्न:- चौरी चौरा कांड कब और कहां हुआ था?
उत्तर:- चौरी चौरा कांड 5 फरवरी 1922 को गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) के चौरी चौरा नामक स्थान पर हुआ था।
प्रश्न:- चौरी चौरा कांड का नया नाम?
उत्तर:- चौरी चौरा कांड का नया नाम चौरी चौरा क्रांति कर दिया गया है।
प्रश्न:- चौरीचौरा कांड के समय भारत का वायसराय कौन था?
उत्तर:- चौरी चौरा कांड के समय भारत का वायसराय अर्ल ऑफ रीडिंग (Earl Of Reading) था ।
प्रश्न:- चौरी चौरा कांड किस वर्ष हुआ?
उत्तर:- चौरी चौरा कांड 5 फरवरी 1922 को हुआ।
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