तहकीक-ए-हिंद(Tahqiq-I-Hind)|ताज उल मासिर(Taj Ul Maasir)

 

तहकीक-ए-हिंद अलबरूनी द्वारा रचित यह अरबी भाषा का ग्रंथ, जिसका सबसे पहले 1888 में एडवर्ड सांची ने अंग्रेजी अनुवाद किया। बाद में इस अंग्रेजी भाषा के अनुवाद को हिंदी में रजनीकांत शर्मा द्वारा परिवर्तित किया गया और इस पुस्तक को “आदर्श हिंदी पुस्तकालय” इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित किया गया।

तहकीक-ए-हिंद

और पढ़े :-विजयनगर साम्राज्य(1336-1652)|संगम वंश|स्थापना|यात्री|मंदिर|अमर नायक प्रणाली

मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोतों की जानकारी के लिए यह पुस्तक बहुत ही प्रमाणित मानी गई है अलबरूनी ने महमूद गजनवी के समय के भारत की आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक स्थिति, सामाजिक स्थिति के बारे में विस्तृत रूप से लिखा है। यह ग्रंथ जिसमें 80 अध्याय हैं जो की एक बहुत ही विस्तृत ग्रंथ माना जाता है।
अलबरूनी ने अपने इस ग्रंथ में भारत की प्राकृतिक दशाएं, जलवायु, रीति रिवाज, धार्मिक परंपराएं, कर्म सिद्धांत, जीव के आवागमन के सिद्धांत, मोक्ष प्राप्त करने का सिद्धांत, भोजन, वेशभूषा, मनोरंजन, धार्मिक उत्सवों आदि के बारे में विस्तृत वर्णन किया है। उसने अपने इस ग्रंथ में भगवद् गीता, वेद, उपनिषदों, पतंजलि के योग शास्त्र आदि के बारे में भी लिखा है।

राजनीतिक तौर पर देखा जाए तो अलबरूनी ने इस ग्रंथ में उत्तरी भारत, गुजरात, मालवा, पाटलिपुत्र, कन्नौज, मुंगेर आदि के बारे में वर्णन किया है। लेकिन इस ग्रंथ में दक्षिण भारत के किसी भी राज्य के बारे में कुछ भी नहीं लिखा गया है, और इसने भारतीय शासको के आपसी एकता के अभाव को दर्शाया है। जिसके कारण विदेशी आक्रमण कर्ताओं के द्वारा भारत को समय-समय पर क्षति पहुंचाई गई, यहां की जातिगत व्यवस्था की कठोरता और उसके दुष्परिणाम और निम्न जाति के लोगों अर्थात अछूतों की स्थिति के बारे में लिखा है। वह यह स्पष्ट करते हैं कि यहां जाति प्रथा इतनी कठोर थी कि अगर किसी व्यक्ति को जाति ने वहिष्कृत कर दिया तो वह पुनः सम्मिलित नहीं हो पता था। सामाजिक कुरीतियां भी व्याप्त थी जिसमें मुख्यत अलबरूनी ने सती प्रथा के बारे में लिखा है 1 यहां के लोग अपनी भाषा संस्कृत देश आदि को सर्वश्रेष्ठ मानते थे इसके अलावा अलबरूनी ने हिंदू मंदिरों  मूर्तियां और बिहारों का विवरण किया है1 यहां का वैष्णो संप्रदाय सबसे लोकप्रिय संप्रदाय माना जाता था 1 भारतीय लोग प्राय मूर्ति पूजा फ्रेम यह देश आर्थिक दृश्य संपन्न देश था 1 मुद्रा व्यवस्था नापतोल आज के बारे में भी वर्णन किया गया है 1 अलबरूनी ने भारतीय राजाओं द्वारा अपनी प्रजा से कर लेने के अधिकार रूप में कृषकों के उत्पादन का 1/6 भाग लगान के रूप में लिया जाता था 1 उसके अनुसार भारत एक धनवान देश था 1 यह दीप यहां महमूद ने इसकी समृद्धि को लूटकर नष्ट किया

ताज उल मासिर :-

सदरूद्दीन मुहम्मद हसन निजामी द्वारा फारसी भाषा में लिखित यह ग्रंथ दिल्ली सल्तनत का प्रथम राजकीय इतिहास का वर्णन करता है। इस ग्रंथ में मुख्यतः कुतुबुद्दीन ऐबक के शासनकाल की घटनाओं और कहीं-कहीं पर मुहम्मद गौरी, सुल्तान इल्तुतमिश के समय में हुई घटनाओं को भी दर्शाया गया है।

ताज उल मासिर

इस ग्रंथ में हसन निजामी द्वारा युद्धों तथा उनके कारणों, परिणामों पर प्रकाश डाला है, तथा भारतीय शासन प्रणाली और सामाजिक स्थिति का भी विवरण दिया है। यहां होने वाले मेलो, उत्सवों और भारतीयों के मनोरंजन के साधनों को भी इस ग्रंथ में समाहित किया गया।यह एक छोटा ग्रंथ है। कुछ तत्वों के आधार पर इस ग्रंथ की प्रामाणिकता को प्रश्न चिन्ह लगता है। जैसे इसके अनुसार कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिरहम और दीनार नामक सिक्के चलवाए लेकिन अन्य इतिहासकारों के आधार पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने कोई सिक्का नहीं चलाया। लेकिन फिर भी इस ग्रंथ का ऐतिहासिक स्रोत होना उपयोगी माना गया है।

Leave a Comment