1600 में व्यापार करने के उद्देश्य से भारत आए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन 15 अगस्त 1947 तक रहा। इस दौरान कुछ ऐसी घटनाएं घटित हुई जिनके फलस्वरूप ब्रिटिश शासित भारत में सरकार और प्रशासन की विधिक रूप रेखा का निर्माण हुआ जो निम्न वत है।
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1773 का रेगुलेटिंग एक्ट
ब्रिटिश सरकार द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने का पहला चरण था।
कंपनी को प्रशासनिक और राजनीतिक कार्यों की मान्यता प्राप्त।
बंगाल का गवर्नर अब बंगाल का गवर्नर जनरल पद नाम दिया गया।
पहला गवर्नर जनरल लार्ड वारेन हेस्टिंग्स बना।
मद्रास और मुंबई के गवर्नर बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन।
1774 में कोलकाता उच्चतम न्यायालय की स्थापना मुख्य न्यायाधीश सर एलिजा इम्पे व अन्य न्यायाधीश चैंबर्स लिमैस्टर एवं हाइड थे।
1784 पिट्स इंडिया एक्ट
रेगुलेटिंग एक्ट 1773 की कमियों को दूर करने के लिए यह नियम पारित किया गया। जिसे एक्ट ऑफ सेटलमेंट के नाम से जाना गया।
कंपनी के राजनैतिक और वाणिज्यिक कार्य पृथक कर दिए गए ।
एक नए नियंत्रण बोर्ड (बोर्ड ऑफ कंट्रोल) जो राजनैतिक मामलों का प्रबंधन हेतु गठन किया गया तथा व्यापारिक मामलों का अधीक्षण निदेशक मंडल के पास रहा। इस प्रकार द्वैध शासन की व्यवस्था अस्तित्व में आई।
भारत में कंपनी के अधीन क्षेत्र को पहली बार ब्रिटिश अधिपत्य का क्षेत्र कहा गया।
ब्रिटिश सरकार को भारत में कंपनी के कार्य और इसके प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया गया।
1833 का चार्टर अधिनियम
यह अधिनियम ब्रिटिश भारत के केंद्रीकरण की दिशा में पहला कदम था।
इस अधिनियम के अंतर्गत बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया । जिसमें सभी नागरिक और सैन्य शक्तियां शामिल थी।
लॉर्ड विलियम बेंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने।
इस अधिनियम के तहत सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन प्रारंभ करने का प्रयास किया गया।
1853 का चार्टर अधिनियम
इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल के परिषद के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यों को अलग किया गया।
भारतीय (केंद्रीय)विधान परिषद का गठन।
सिविल सेवकों की भर्ती एवं चयन हेतु खुली प्रतियोगिता व्यवस्था का शुभारंभ जिसमें भारतीय नागरिक भी शामिल हो सकते थे।
इसके लिए 1854 मैकाले समिति की नियुक्ति की गई।
इस अधिनियम में पहली बार भारतीय केंद्रीय विधान परिषद में स्थानीय प्रतिनिधित्व प्रारंभ किया गया।
ताज का शासन (1858 से 1947 तक)
1858 का भारत शासन अधिनियम
भारत के शासन को अच्छा बनाने वाला अधिनियम नाम से प्रसिद्धि।
ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त कर दिया गया और गवर्नरों और क्षेत्रों और राजस्व संबंधी शक्तियां ब्रिटिश राजशाही को हस्तांतरित कर दी गई।
इस अधिनियम के तहत भारत का शासन सीधे महारानी विक्टोरिया के अधीन हो गया ।
गवर्नर जनरल का पद बदलकर भारत का वायसराय कर दिया गया।
भारत का पहला वायसराय लॉर्ड कैनिंग को बनाया गया।
भारत में शासन की द्वैध प्रणाली समाप्त कर दी गई।
भारत के राज्य सचिव का नया पद बनाया गया। यहां ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी था।
1861 का भारत परिषद अधिनियम
इस अधिनियम के द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई।
1862 में लॉर्ड कैनिंग ने 3 भारतीयों बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधान परिषद में मनोनीत किया।
इस अधिनियम द्वारा मद्रास और मुंबई प्रेसिडेंसियों को विधायी शक्तियां पुनः देकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत की गई।
बंगाल, उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत और पंजाब में क्रमशः 1862, 1866 और 1897 में विधान परिषद का गठन हुआ।
पोर्टफोलियो प्रणाली को मान्यता दी गई।
1892 का अधिनियम
इस अधिनियम ने केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों दोनों में गैर सरकारी सदस्यों की नियुक्ति के लिए एक सीमित और परोक्ष रूप से चुनाव का प्रावधान किया।
हालांकि चुनाव शब्द का प्रयोग इस अधिनियम में कहीं नहीं किया गया था।
1909 का अधिनियम
यह अधिनियम को मार्ले मिंटो सुधार के नाम से भी जाना जाता है।
लॉर्ड मार्ले इंग्लैंड में भारत के राज्य सचिव और लॉर्ड मिंटो भारत में वायसराय थे इसी कारण इस अधिनियम का नाम मार्ले मिंटो सुधार कहा गया।
केंद्रीय परिषद में सदस्यों की संख्या को 16 से 60 कर दिया गया।
प्रांतीय विधान परिषद में सदस्यों की संख्या समान नहीं थी।
अनुपूरक प्रश्न पूछना तथा बजट पर संकल्प रखना आदि इस अधिनियम से अस्तित्व में आया।
इस अधिनियम में पहली बार सत्येंद्र प्रसाद सिंहा (भारतीय) वायसराय की कार्यपालिका परिषद में विधि सदस्य बनाया गया।
भारत शासन अधिनियम 1919
इस अधिनियम के तहत प्रांतीय विषयों को पुनः दो भागों में विभाजित किया गया हस्तांतरित और आरक्षित।
हस्तांतरित विषयों पर गवर्नर का शासन होता था।
आरक्षित विषयों पर गवर्नर कार्यपालिका परिषद की सहायता से शासन करता था।
द्विसदनीय व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन व्यवस्था प्रारंभ।
भारतीय विधान परिषद के स्थान पर द्विसदनीय व्यवस्था यानी राज्यसभा और लोकसभा का गठन किया गया।
एक लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।
इसमें पहली बार केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया।
इस अधिनियम के द्वारा एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया जिसका कार्य 10 वर्ष बाद जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था।
भारत शासन अधिनियम 1935
यह एक विस्तारित अधिनियम था जिसमें 321 धाराएं और 10 अनुसूचियां थी।
इस अधिनियम में संघीय सूची (59 विषय) राज्य सूची (54 विषय) और समवर्ती सूची (36 विषय) के आधार पर शक्तियों का बंटवारा किया गया।
अवशिष्ट शक्तियों पर वायसराय का अधिकार बना रहा।
प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था समाप्त कर दी गई तथा प्रांतीय स्वायत्तता का शुभारंभ हुआ।
केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली का प्रारंभ।
11 राज्यों में से छह में द्विसदनीय व्यवस्था प्रारंभ की गई।
दलित जातियों महिलाओं और मजदूर वर्ग के लिए अलग से निर्वाचन की व्यवस्था कर सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था का विस्तार किया गया।
भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई।
इस अधिनियम के तहत 1937 में संघीय न्यायालय की स्थापना की गई।
संघ लोक सेवा आयोग के साथ-साथ प्रांतीय सेवा आयोग का भी गठन किया गया।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947
20 फरवरी 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने घोषणा की कि 30 जून 1947 को भारत में ब्रिटिश शासन समाप्त हो जाएगा।
इस अधिनियम के द्वारा ब्रिटिश राज समाप्त कर 15 अगस्त 1947 को इसे स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र घोषित कर दिया।
इस अधिनियम के द्वारा भारत का विभाजन कर दो संप्रभु राष्ट्र भारत और पाकिस्तान का सृजन किया।
वायसराय के पद को समाप्त कर दिया गया।
ब्रिटेन में भारत सचिव का पद समाप्त कर दिया गया।
इस अधिनियम के तहत शाही उपाधि से भारत का सम्राट शब्द समाप्त कर दिया गया।
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