कर्नाटक युद्ध (लगभग 20 वर्ष तक )

 प्रथम कर्नाटक युद्ध (1740 से 1748 ई.तक)

•कर्नाटक युद्ध यूरोप में गठित घटनाक्रम के तहत ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकारी युद्ध का मात्र एक विस्तार था।

•1740 ईस्वी में फ्रांसीसी तथा अंग्रेज मेरिया थरेसा के उत्तराधिकार को लेकर आपस में झगड़ रहे थे।

•फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले ने भारत में शांति बनाने रखने की बहुत कोशिश की लेकिन युद्ध की पहल अंग्रेजों की तरफ से की गई।

•यह युद्ध प्रत्यक्ष रूप से कर्नाटक के नवाब पद के उत्तराधिकार का संघर्ष दिख रहा था लेकिन अप्रत्यक्ष रूप में इसमें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी तथा फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी लड़ रही थी।

•इस समय पांडिचेरी का फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले था तथा मद्रास का अंग्रेज गवर्नर मोर्स था।

•युद्ध की पहल बारनैट के नेतृत्व में अंग्रेजी नौसेना ने कुछ फ्रांसीसी जलपोत पकड़कर की।

•फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन से अपने जहाजों की सुरक्षा के लिए निवेदन किया लेकिन अंग्रेजों ने नवाब की बात को भी नजरअंदाज कर दिया।

•फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले युद्ध के पक्ष में नहीं था इसलिए उसने कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन तथा अंग्रेज गवर्नर मोर्स दोनों से युद्ध ना होने देने का प्रस्ताव रखा।

• डुप्ले ने कूटनीतिक सहारा लिया और मॉरीशस के फ्रांसीसी गवर्नर ला बूर्डोने से सहायता मांगी जो अपने 3000 सैनिकों के साथ आकर मद्रास पर अधिकार कर लिया।

•इस दौरान डुप्ले और ला बूर्डोने दोनों के बीच मतभेद हो गया तो ला बूर्डोने ने 4 लाख पौंड की रिश्वत अंग्रेजों से लेकर मद्रास उन्हें सौंप दिया।

•ला बोर्डोने के मॉरीशस जाने के बाद डुप्ले ने मद्रास पर फिर अधिकार कर लिया।

•फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले ने यह कहकर कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन को अपने पक्ष में कर लिया था कि मद्रास को जीतने के बाद उसे सौंप देंगे लेकिन डुप्ले ने ऐसा नहीं किया। फलस्वरूप युद्ध अवश्यंभावी हो गया था।

•1748 ईसवी में कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन के पुत्र महफूज खां एक विशाल सेना लगभग 10 हजार सैनिक लेकर अडयार के समीप डुप्ले की कूटनीतिक चाल से ओतप्रोत कैप्टन पैराडाइज के अधीन एक छोटी सी फ्रांसीसी सेना जिसमें लगभग 230 फ्रांसीसी सैनिक और लगभग 700 भारतीय सैनिक थे महफूज खां की सेना को पराजित किया।

•इस युद्ध को सेंटथोमे का युद्ध भी कहा जाता है।

•इस जीत से यह स्पष्ट हो गया कि घुड़सवार सेना की अपेक्षा तोपखाना श्रेष्ठ है तथा अनुशासनहीन बड़ी सेना पर अनुशासित छोटी सेना भारी पड़ी।

•नवाब की सेना और मद्रास को परास्त करने के बाद फ्रांसीसियों में नई ऊर्जा का उद्भव हुआ और उन्होंने पांडिचेरी के दक्षिण में स्थित अंग्रेजों की एक बस्ती फोर्ट सेंट डेविड पर अधिकार करने का प्रयास किया किंतु लगभग डेढ़ सालों के घेरे के बाद भी असफल रहे।

•कुछ समय पश्चात इंग्लैंड से भारत में अंग्रेजों की सहायता के लिए सेना पहुंच गई सहायता मिलने की बाद अंग्रेजों ने पांडिचेरी का घेरा डाला परंतु वह उस पर अधिकार करने में असफल रहे और पुनः फोर्ट सेंट डेविड मे वापस आ गए।

•1748 ई. में यूरोप में अंग्रेज और फ्रांसीसियो के बीच एक्स-ला-शापेल की संधि हुई जिसके तहत यूरोप में युद्ध समाप्त हो गया इस संधि से मद्रास अंग्रेजों को तथा अमेरिका में लुईसबर्ग फ्रांसीसियों को वापस मिल गए इस तरह युद्ध के प्रथम दौर में दोनों दल बराबर रहे ।

•पहले कर्नाटक युद्ध का कोई तात्कालिक राजनीतिक प्रभाव भारत में नहीं पड़ा न तो इस युद्ध से फ्रांसीसी को कोई लाभ हुआ और ना ही अंग्रेजों को।

•इस युद्ध में भारतीय राजाओं की कमजोरियों को उजागर किया, और जल सेना का महत्व बड़ा अर्थात यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि भारतीय सेना यूरोपीय सेना से स्पष्ट रूप से कमजोर हो गई थी।

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द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749-54)

•डुप्ले की राजनैतिक चाहत और चरम पर पहुंच गई क्यों कर्नाटक के प्रथम युद्ध मे उसने अपने राजनैतिक, कूटनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में कुछ सीमा तक सफल रहा।

•उसके द्वारा भारतीय राजवंशों के परस्पर झगड़ों में भाग लेकर अपने राजनीतिक प्रभाव को और प्रसारित करने के उद्देश्य से वहां कूटनीतिक रूप से अग्रसर हुआ।

•यह एक अच्छा अवसर था यूरोपीय शक्तियों के लिए क्योंकि भारतीय राजवंशों में उत्तराधिकार के लिए विवाद उत्पन्न हो रहे थे। इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए यूरोपीय शक्तियां तैयार थी।

•यूरोपियों को यह अवसर हैदराबाद तथा कर्नाटक के सिंहासनों के विवादास्पद उत्तराधिकार के कारण जल्द ही प्राप्त हुआ।

आसफजाह का 21 मई 1748 को स्वर्गवास हो गया उसका पुत्र नासिर जंग उत्तराधिकारी बना। परंतु उसके भतीजे (आसफजाह के पौत्र) मुजफ्फर जंग ने इसका विरोध किया।

•दूसरी तरफ कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन और उसके बहनोई चंदा साहिब के बीच मतभेद था। यह दोनों विवाद एक बड़े विवाद में परिवर्तित हो गए।

•अवसर का फायदा उठाने हेतु डुप्ले ने मुजफ्फर जंग को दक्कन की सुबेदारी तथा चंदा साहिब को कर्नाटक की सुबेदारी सौपने का समर्थन करने की बात की किन्ही कारणों से अंग्रेजों को नासिरजंग तथा अनवरुद्दीन का साथ देना पड़ा।

•अगस्त 1749 को बिल्लौर के समीप अंबूर के स्थान पर मुजफ्फरजंग, चंदा साहिब तथा फ्रेंच सेनाओं ने अनवरुद्दीन को हराकर मार दिया।

•डुप्ले को यह कूटनीतिक अद्वितीय सफलता प्राप्त हुई।

•दिसंबर 1750 में नासिर जंग एक युद्ध में मारा गया मुजफ्फर जंग दक्कन का सूबेदार बना और उसके द्वारा फ्रांसीसियों को बहुत से उपहार भेंट किए गए डुप्ले को कृष्णा नदी के दक्षिण भाग में मुगल प्रदेशों का गवर्नर नियुक्त कर दिया।

•मुजफ्फर जंग के आग्रह पर एक फ्रांसीसी सेना की टुकड़ी बुस्सी की अध्यक्षता में हैदराबाद में तैनात कर दी गई।

•डुप्ले की इच्छा अनुसार 1751 में चंदा साहिब कर्नाटक के नवाब बनाए गए। डुप्ले का यह समय राजनैतिक शक्ति की चरम स्थिति थी।

•फ्रांसीसियो का विरोध होना स्वाभाविक था स्वर्गीय अनवरुद्दीन के पुत्र मुहम्मद अली त्रिचनापल्ली में शरण लिए था फ्रांसीसी तथा चंदा साहेब दोनों मिलकर भी त्रिचनापल्ली के दुर्ग को जीतने में असफल रहे अंग्रेजों की स्थिति इस फ्रांसीसी विजय से कमजोर हो गई थी।

•त्रिचनापल्ली के फ्रांसीसी घेरे को तोड़ने में असफल रहा। क्लाइव त्रिचनापल्ली पर दबाव कम करने के लिए कर्नाटक की राजधानी अर्काट को 210 सैनिकों की सहायता से जीत लिया।

•अर्काट को पुनः जीतने के लिए चंदा साहिब में 4000 सैनिक भेजें जो अर्काट को पुनः प्राप्त नहीं कर सके।क्लाइव ने 53 दिन तक इस सेना का सामना किया।

•फ्रांसीसियो पर इस हार का गहरा प्रभाव पड़ा 1752 में स्टैंगर लारेंस के नेतृत्व में एक अंग्रेजी सेना ने त्रिचनापल्ली को बचा लिया तथा जून 1752 में डेरा डालने वाली फ्रांसीसी सेना ने अंग्रेजों के आगे हथियार डाल दिए। चंदा साहिब की भी धोखे से तंजौर के राजा ने हत्या कर दी।

•त्रिचनापल्ली में फ्रांसीसियों की हार से डुप्ले का पतन होना प्रारंभ हो गया फ्रांसीसी कंपनी के डायरेक्टरों ने इस युद्ध की पराजय से हुई धन हानि के लिए डुप्ले को वापस बुला लिया।

•डुप्ले के स्थान पर 1754 में गोडेहू को भारत में फ्रांसीसी प्रदेशों का गवर्नर जनरल बनाया गया तथा डुप्ले को उसका उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया ।

1755 में पांडिचेरी की संधि फ्रांसीसी कंपनी एवं अंग्रेजी कंपनियों के बीच एक अस्थाई संधि हुई।

•अंग्रेजों की सहायता से मुहम्मद अली कर्नाटक का नवाब बनाया गया परंतु हैदराबाद में अभी भी फ्रांसीसी डटे हुए थे तथा उन्होंने सूबेदार सालारजंग से और अधिक जागीर प्राप्त कर ली।

•कर्नाटक के द्वितीय युद्ध में फ्रांसीसियो को कुछ स्तर तक हानि पहुंची तथा अंग्रेजों की स्थिति में मजबूत हुई।

कर्नाटक का तृतीय युद्ध (1756-63 ई. तक)

•यह युद्ध भी यूरोपीय संघर्ष का ही भाग था।

•पांडिचेरी की संधि (1755) अस्थाई थी क्योंकि इस संधि का समर्थन दोनों देशों की सरकारों द्वारा किया जाना था परंतु 1756 ईस्वी में यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध प्रारंभ हो गया इसी कारण अंग्रेज और फ्रांसीसी एक दूसरे के विरोध में आ गए।

•फ्रांसीसी सरकार में अप्रैल 1757 में काउंट डी लाली को भारत भेजा। अप्रैल 1758 में भारत पहुंचा।

•इसी दौरान अंग्रेजों द्वारा सिराजुद्दौला को हराकर पश्चिम बंगाल पर अधिकार स्थापित कर चुके थे जिससे अंग्रेजों को अपार धन मिला। इसी धन का उपयोग करके अंग्रेजों द्वारा फ्रांसीसी यों को दक्कन में पराजित करने में सफलता प्राप्त हुई।

•काउंट डी लाली के भारत आने के उपरांत वास्तविक युद्ध आरंभ हुआ जिसके द्वारा फ्रांसीसी प्रदेशों को सैनिक हथियारों से युक्त अधिकारी नियुक्त किया तथा लाली ने 1758 ईस्वी में फोर्ट सेंट डेविड जीत लिया।

•फोर्ट सेंट डेविड की जीत से उत्साहित काउंट डी लाली द्वारा तंजौर पर आक्रमण किया गया क्योंकि उस पर 56 लाख रुपए बकाया था। परंतु यह अभियान असफल रहा इसके कारण फ्रांसीसियों की ख्याति को काफी नुकसान हुआ।

•इसी दौरान लाली द्वारा बुस्सी को हैदराबाद से वापस बुलाना उसकी सबसे बड़ी भूल थी इसके कारण फ्रांसीसियों की स्थिति और कमजोर हो गई।

•इसी समय पोकांक के नेतृत्व में अंग्रेजी बेड़े ने डआश के नेतृत्व वाली फ्रांसीसी सेना को तीन बार पराजित किया और उसे भारतीय सागर से वापस जाने पर मजबूर कर दिया।

1760 में वाण्डियावाश के स्थान पर अंग्रेज और फ्रांसीसियों के बीच निर्णायक लड़ाई लड़ी गई अंग्रेज सेना का नेतृत्व आयरकुट तथा फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व काउंट लाली द्वारा किया जा रहा था इसमें काउंट लाली बुरी तरह पराजित हुआ। यह युद्ध वाण्डियावाश का युद्ध (22 जनवरी 1760 ई.) के नाम से जाना जाता है।
फ्रांसीसी बुस्सी को अंग्रेजों द्वारा युद्ध बंदी बना लिया गया।

•फ्रांसीसियो की जनवरी 1761 की पराजय ने इनको पांडिचेरी लौटने पर मजबूर कर दिया अंग्रेजों द्वारा पांडिचेरी को भी जीत। लिया गया तथा फ्रांसीसियों ने इसे भी अंग्रेजों को सौंप दिया इसी दौरान शीघ्र ही माही और जिंजी भी उनके हाथ से निकल गए अर्थात अब फ्रांसीसी पूरी तरह से पराजित हो चुके थे।

•1763 में अंग्रेजों और फ्रांसीसियो के बीच पेरिस की संधि पर हस्ताक्षर होते हैं जिसके फलस्वरूप सप्तवर्षीय युद्ध समाप्त हो जाता है।

•अंग्रेजों द्वारा फ्रांसीसियों को उनके सारे कारखाने वापस कर दिए गए लेकिन उनको किलेबंदी तथा सैनिक रखने का अधिकार नहीं दिया गया अब वह सिर्फ व्यापार कर सकते थे।

कर्नाटक का तृतीय युद्ध अंततः निर्णायक सिद्ध हुआ जिसके फलस्वरूप भारत में फ्रांसीसियो का साम्राज्य पूरी तरह से नष्ट हो गया था।

फ्रांसीसी भारत में अब केवल व्यापारी बन के रह गए थे।

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