गुरु नानक(1469)जयंती|जन्मकथा|वाणी|दोहा|वंशज

 

नानक पंथ के प्रवर्तक गुरु नानक देव जी (1469-1538) के द्वारा संगठित संप्रदाय एक व्यापक संगठन बना यह उस समय की राजनीतिक परिस्थितियों के कारण अस्तित्व में आया, नानक देव जी समन्वयशील, उदार प्रवृत्ति, अद्भुत संगठन शक्ति, क्षमाशीलता, दूरदर्शिता आदि गुणों से ओत-प्रोत थे। ऐसे ओजस्वी महापुरुष के जीवन से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तत्वों को इस लेख में समाहित किया गया है जिसका हम अध्ययन करेंगे।

  गुरु नानक                         

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                         गुरु नानक जयंती

27 नवंबर 2023 दिन सोमवार
गुरु नानक देव जी का जन्म दिवस प्रकाश पर्व या प्रकाश उत्सव के रूप में मनाया जाता है । इनके द्वारा सिख धर्म की नींव पंजाब में डाली गई। गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा के दिन 15 अप्रैल 1469 तलवंडी राय भोई गांव में हुआ था।

          गुरु नानक देव जी की जन्म कथा 

नानक पंथ के प्रवर्तक गुरु नानक देव जी एक असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे। इनका जन्म कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा के दिन 15 अप्रैल 1969 को तलवंडी राय भोई गांव में हुआ था। बाद में इनको ननकाना साहिब के नाम से जाना जाने लगा। इनके पिता का नाम कालू जी मेहता जो कि एक पटवारी होने के साथ- साथ खेती का भी कार्य करते थे। इनकी माता का नाम श्रीमती तृप्ता देवी था। इनका विवाह बटाला निवासी मूला की कन्या सुलक्षणा देवी से 16 साल की उम्र में हो गया था। इनके दो पुत्र     श्री चंद और श्री लक्ष्मी चंद्र थे। पिता की तरह श्री चंद भी एक प्रसिद्ध साधु हुए और उन्होंने उदासी संप्रदाय का प्रवर्तन किया। इनका अधिक समय बड़ी बहन नानकी के यहां गुजरा उनके बहनोई जयराम ने इनको सुल्तानपुर में बुला लिया था।

गुरु नानक  देव जी  कुछ समय तक दौलत खान लोधी के यहां नौकरी की परंतु बाद में नौकरी छोड़कर के यह देशाटन पर निकल गए और लगभग पूरे देश का 5 बार चक्कर 30 वर्षों में लगाया। इस यात्रा को ही सिख धर्म में उदासी कहा गया इनको काली बेन नदी के किनारे ज्ञान प्राप्त हुआ ।

गुरु नानक  देव जी ने संस्कृत, फारसी, पंजाबी एवं हिंदी की शिक्षा प्राप्त की, आरंभ से ही आत्मचिंतन, ईश्वर भक्ति और संत सेवा की ओर उन्मुख थे| हालांकि उन्होंने कुछ समय अपनी गृहस्थी जीवन में बिताया लेकिन बाद मैं इनका मोह साधु संतों एवं धार्मिक विचारधारा की ओर प्रेरित हुआ। इन्होंने धार्मिक रूढ़िवाद जात के संकीर्ण बंधनों तथा अनाचारों के प्रति सदैव विरोध करते रहे। इन्होंने महिलाओं एवं पुरुषों को बराबरी का दर्जा दिया और यह कहा की महिलाओं के सहयोग के बिना किसी भी देश का उत्थान नहीं हो सकता।

गुरु नानक  देव जी एकेश्वरवाद के समर्थक थे और सभी धर्मो का सम्मान करते थे। सत्संग में इनकी रुचि होने के कारण यह अक्सर सत्संगों में प्रतिभाग किया करते थे और भजन गाते थे। इनका एक सहयोगी मर्दाना तलवंडी से आकर इनका सेवक बन गया| जब नानक देव जी भजन गाते थे तो मरदाना रवाब बजाता था। इनके समकालीन कबीर सिकंदर लोदी बाबर और हुमायूं थे ।इनकी विचारधारा कबीर से मिलती-जुलती थी क्योंकि काव्यों में कबीर की तरह उन्होंने भी शांत रस की निर्बाध धारा प्रवाहित की है। कहीं-कहीं पर करुण और अद्भुत आदि रसों का भी व्याख्यान आता है नानक के अनुसार ईश्वर कृपा से तत्व दर्शन तो हो जाता है किंतु उस अनुभव की अभिव्यक्ति सदैव नहीं हो पाती है।

नानक देव जी के द्वारा रचित पद ऑन को ग्रंथ साहिब में संकलित किया गया है इनकी विचारधारा का सारतत्व जपुजी है। इनकी प्रसिद्ध रचनाएं असा दी वार, रहिरास,तथा सोहिला आदि हैं। नानक देव जी की अधिकांश रचनाएं हिंदी फारसी बहुल पंजाबी और पंजाबी में है परंतु इनकी रचना नसीहतनामा में खड़ी बोली का भी समावेश हुआ है हालांकि उन्होंने अधिकांश साहित्य पंजाबी में लिखे हैं लेकिन कहीं-कहीं पर बृजभाषा का भी प्रयोग हुआ है नानक वाणी में उपमा, रूपक प्रतीक, और अनुप्रास अलंकारों का सहज प्रयोग भी किया गया है।

                गुरुनानक के दोहे 

              सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक जी के उपदेशों द्वारा उनकी विचारधारा को समझा जा सकता है |जो कि उन्होंने दोहों के रूप में प्रस्तुत किये है, अतः उनके द्वारा रचित कुछ दोहे निम्नलिखित है:-

                                      1.

                     थापिआ न जाइ कीता न होइ l

                       आपे आपि निरंजनु सोइ l

                                   2.

                       ऐसा नामु निरंजनु होइ

                       जे को मंनि जाणै मनि कोइ

                                    3.

                      रमी आवै कपड़ा। नदरी मोखु दुआरू

                       नानक एवै जाणीऐ। सभु आपे सचिआरू

                                  4.

                        गावीऐ सुणीऐ मनि रखीऐ भाउ

                       दुखु परहरि सुखु घरि लै जाइ

                                  5.       

                    गुरा इक देहि बुझाई

                     सभना जीआ का इकु दाता सो मैं विसरि न जाई

                               6.

                       जेती सिरठि उपाई वेखा

                        विणु करमा कि मिलै लई

                                   7.

                         तीरथि नावा जे तिसु भावा

                          विणु भाणे कि नाइ करी

                                8.

                         गुरा इक देहि बुझाई

                        सभना जीआ का इकु दाता

                           सो मैं विसरि न जाई

                                   9.

                            करमी आवै कपड़ा। नदरी मोखु दुआरू

                              नानक एवै जाणीऐ। सभु आपे सचिआरू

                                     10.

                      फेरि कि अगै रखीऐ। जितु दिसै दरबारू

                    मुहौ कि बोलणु बोलीएै। जितु सुणि धरे पिआरू

                                   11.

                        मंनै मुहि चोटा ना खाइ

                         मंनै जम कै साथि न जाइ

                                       12.

                           साचा साहिबु साचु नाइ । भाखिआ भाउ अपारू

                            आखहि मंगहि देहि देहि । दाति करे दातारू

                  गुरु नानक देव की वाणी

गुरु नानक देव जी ने समय-समय अपने विचारों को प्रस्तुत किया है उन्हीं के संदर्भ में कुछ तत्व इस प्रकार हैं जिन्हें गुरु नानक की वाणी की संज्ञा दी गई है पवित्रता को वास्तविक धर्म और उन्होंने कहा है, कि जो सत्य की खोज करता है, संयम का व्रत रखता है, मन के सरोवर में डुबकियां लगाता, दया को अपना धर्म मानता, क्षमा के भाव को धारण करता है, उन पर ईश्वर की हमेशा कृपा बनी रहती है।
आगे वह कहते हैं की अपने आसपास जो विलासिता पूर्ण या अन्य प्रकार की इच्छाएं विचरण कर रही हैं, उनको अपने पास आने से रोको, संयम की लंगोटी पहनो अपने माथे पर अच्छे कर्मों का टीका लगाओ और भक्ति में लीन होकर भोजन करो। कोई बिरला ही जो उचित कार्य करता है उसमें आनंद का अनुभव करेगा।

आगे उन्होंने कहा है कि जो लोग असत्य का सहारा लेते हैं वह गंदगी खाते है और जो अमर्यादित कार्य कर्ता है, वह दूसरों को सत्य बोलने और मर्यादा पूर्ण कार्य करने के लिए उपदेश देता है, ऐसे ही असामाजिक लोग अर्थात पथभ्रष्ट लोगो से दूर रहना चाहिए । अपने प्रति तथा मनुष्यो के प्रति कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए तभी ईश्वर की प्राप्ति संभावित है।उन्होंने मुक्ति को पाने के लिए नाम जपने पर बल दिया जीवन भर उन्होंने लोगों को धार्मिक उपदेश और ज्ञान के प्रकाश से फलीभूत किया।

गुरु नानक देव जी एक सामाजिक सुधारक थे उन्होंने हिंदू परंपराओं के द्वारा विभिन्न पाखण्डो का अनुकरण किए जाने का घोर विरोध किया तथा उनसे मुक्त करवाने का प्रयास करते रहे। इनके द्वारा जात- पात का विरोध किया किया गया तथा सभी को सामान अधिकार देने का प्रबल समर्थन किया उन्होंने महिलाओं के प्रति अपने विचारों से स्पष्ट किया कि महिलाएं गर्भधारण करके हम सभी को जन्म देती हैं, इसलिए उन्होंने महिलाओं को ईश्वर के समान दर्जा दिया और उनका उत्तरदायित्व भी पुरुषों के समान बताया। विभिन्न जगहों के पंडितों के उपदेशों में सूर्य की पूजा करना,मृतको को जल समर्पित करना आदि कार्य को निरर्थक बताया। ईश्वर की प्रेरणा से सेवा तथा बलिदान का जीवन व्यतीत करने के लिए उन्होंने अच्छे कर्म करने पर बल दिया।

गुरु नानक देव जी ने पारिवारिक जीवन व्यतीत करने के साथ-साथ ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है अर्थात उन्होंने एकांत तपस्या की आवश्यकता को अस्वीकार कर दिया है उन्होंने तीन बातों पर बल दिया। नामतः नाम, कृत् तथा वन्द अर्थात ईश्वर का चिंतन करना ईमानदारी से परिश्रम करना तथा दूसरों में बांटकर भोजन करना। यह सभी आदर्श सुखद जीवन के आधार हैं।

गुरु नानक देव जी ने बेईमानी या छल-कपट से अर्जित धन को उन्होंने मुसलमान के लिए सूअर के मांस के समान तथा हिंदुओं के लिए गाय के मांस के समान अपवित्र बताया। उनके द्वारा जो व्यक्ति परिश्रम करके कमाता है और उस कमाई में से थोड़ा दान करता है, वही वास्तविक मार्ग पर आगे बढ़ता है।

गुरु नानक देव जी का मानना था कि नाम जपने से मनुष्य काम, क्रोध, लोभ, मोह अहंकार इन पांचों दोषों पर विजय प्राप्त करने में सक्षम हो सकता है इन्होंने बताया कि ईश्वर की इच्छा अनंत है वह अपनी इच्छा के दौरान अंतरिक्ष में संसार की रचना करता है और इसकी सुरक्षा भी करता है वह सर्वशक्तिमान है, सर्वव्यापक हैं ,हर जगह उसका निवास है, सभी कुछ देखता और समझता है।

                 गुरु नानक देव जी के वंशज

1-बाबा श्रीशचंद
2-बाबा लखमीदास
3-बाबा मेहर चंद
4-बाबा रूपचंद
5-बाबा करमचंद
6-बाबा महासिंह
7-बाबा लखपत सिंह
8-बाबा राघपत सिंह
9-बाबा गण्डा सिंह
10-बाबा मूल सिंह
11-बाबा करतार सिंह
12-बाबा प्रताप सिंह
13-बाबा विक्रम सिंह
14-बाबा नरेंद्र सिंह
15-कंवर जगजीत सिंह
16-सरदार चरणजीत सिंह बेदी /सरदार हरचरण बेदी

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