विजयनगर साम्राज्य(1336-1652)|संगम वंश|स्थापना|यात्री|मंदिर|अमर नायक प्रणाली

विजयनगर साम्राज्य

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भारत के प्रांतीय राज्यों के शासनकाल में विजयनगर साम्राज्य का भारतीय मध्यकालीन इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। भारत के दक्षिणी पश्चिमी तट पर विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों ने सन 1336 ईस्वी में की थी। जो वर्तमान में हम्पी (कर्नाटक राज्य) नाम से जाना जाता है।

विजयनगर साम्राज्य

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विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक हरिहर एवं बुक्का कंपिली राज्य में मंत्री के पद पर कार्यरत थे। 1325 ईस्वी में मुहम्मद बिन तुगलक के चचेरे भाई बहाउद्दीन गुर्शस्प ने कर्नाटक के सागर स्थान पर विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह का दमन करने हेतु मुहम्मद बिन तुगलक स्वयं सागर गया। बहाउद्दीन ने भाग कर कंपिली के राजा के यहां शरण ली। मुहम्मद बिन तुगलक ने कंपिलो को जीत कर दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बना लिया । इसी दौरान हरिहर और बुक्का को कैद कर लिया गया तथा इनका धर्मांतरण कर मुसलमान बनाया गया।

सन 1327-28 में नायको द्वारा आंध्र के तटीय प्रदेशों में विद्रोह कर दिया। फल स्वरुप बीदर, गुलबर्गा, दौलताबाद मदुरा में भी विद्रोह प्रारंभ हो गया। इसी दौरान कंपिली में जनता ने सोमदेव राज के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। इसी विद्रोह का दमन करने के लिए मुहम्मद बिन तुगलक ने हरिहर और बुक्का को कंपिली भेजा। यह दोनों भाई विद्रोह का दमन कर पाने में असफल रहे इसी समय इनकी मुलाकात संत विद्यारण्य से हुई, जिन्होंने अपने गुरु श्रृंगेरी के मठाधीश विद्यातीर्थ की अनुमति से इनको पुनः हिंदू धर्म की दीक्षा प्रदान की।

सन 1336 में हरिहर ने हंपी हस्तिनावती राज्य की नींव डाली। इसी वर्ष तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित अनेगोण्डी के सामने विजयनगर (विद्यानगर) शहर की स्थापना की। यही राज्य बाद में विशाल विजयनगर राज्य बना तथा इसकी राजधानी विजयनगर को बनाया गया। विजयनगर साम्राज्य के स्थापना की साहसिक प्रेरणा उसके गुरु विद्यारण्य तथा वेदों के प्रसिद्ध भाष्कार सायण से मिली।

विजयनगर साम्राज्य से संबंधित कुल चार राजवंशों ने शासन किया:-

संगम वंश:- (संस्थापक हरिहर व बुक्का)
सालुव वंश:- (संस्थापक नरसिंह सालुव)
तुलुब वंश:- (संस्थापक वीर नरसिंह)
अरवीडु वंश:- (संस्थापक तिरुमाल या तिरुमल्ल)

संगम वंश (1336-1485 ई.):-

विजयनगर साम्राज्य के चार राजवंशों में संगम वंश पहला वंश था। जिसकी स्थापना हरिहर व बुक्का ने अपने पिता संगम के नाम पर इस वंश का नाम संगम वंश रखा।

विजयनगर साम्राज्य

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संगम वंश के शासक:-

हरिहर प्रथम (1336-1356ई.):-

संगम वंश का प्रथम शासक हरिहर प्रथम था। जिसने दो राजधानियां बनाई,इसकी प्रथम राजधानी तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित अनेगोंण्डी थी। बाद में सुरक्षा कारणों से राजधानी परिवर्तन कर विजयनगर को बनाया गया। हरिहर तथा बुक्का दोनों भाइयों ने मिलकर विजयनगर साम्राज्य का विस्तार उत्तर में कृष्णा नदी से दक्षिण में स्थित कावेरी नदी तक किया। इसके साम्राज्य में बदामी, उदयगिरि, गुट्टी के दुर्ग पर कब्जा किया। तथा होयसल तथा कादम्ब प्रदेश को इसमें शामिल कर लिया।

हरिहर प्रथम के शासन काल में बहमनी तथा विजयनगर राज्यों के मध्य संघर्ष प्रारंभ हुआ। यह संघर्ष लगभग 200 वर्षों तक जारी रहा। हरिहर प्रथम ने अपने राज्य को देश स्थल तथा नांड्डुओ में बांटा। इसकी मृत्यु 1336 ईस्वी में हो गई।

बुक्का प्रथम (1356-77 ई.) तक:-

हरिहर प्रथम की मृत्यु के बाद बुक्का प्रथम सिंहासन पर बैठा। वेद मार्ग प्रतिष्ठापक की उपाधि धारण की और हिंदू धर्म की सुरक्षा का दावा किया। यह एक महान योद्धा, विद्या प्रेमी व राजनीतिक होने के साथ-साथ शासन का केंद्रीयकरण किया। तमिलनाडु के साथ-साथ उसने कृष्णा तुंगभद्रा के दोआब की मांग की जिससे बहमनी और विजयनगर राज्यों में संघर्ष प्रारंभ हो गया। अंततः कृष्णा नदी को बहमनी व विजयनगर की सीमा मान लिया गया।

“मदुरा विजयम” ग्रंथ की रचना “गंगा देवी” ने की गंगा देवी बुक्का प्रथम के पुत्र कंपन की पत्नी थी। इस ग्रंथ में मदुरा विजय का वर्णन किया गया है। इसके शासनकाल में सभी धर्मो को स्वतंत्रता प्राप्त थी। बुक्का प्रथम के काल में वेदों के प्रसिद्ध भाष्यकार,सायणाचार्य दरबार की शोभा में चार चांद लगाते थे। अभिलेखों में बुक्का को “पूर्वी पश्चिमी व दक्षिणी सागरों का स्वामी” कहा गया है। 1377 में इसकी बुक्का प्रथम की मृत्यु हो गई।

हरिहर द्वितीय (1377-1404 ई.):-

बुक्का प्रथम की मृत्यु के बाद हरिहर द्वितीय सिंहासन पर बैठा। इसने राजाधिराज, राजव्यास या राज बाल्मिकी, राज परमेश्वर आदि उपाधियां धारण की। इसने कनारा, मैसूर, त्रिचनापल्ली, कांची प्रदेश, दभोल का तटीय क्षेत्र मुस्लिम शासको से गोवा जीतकर विजयनगर की सीमा का विस्तार किया। इतिहासकारों का मानना है कि इसने श्रीलंका विजय कर वहां के शासक से कर वसूल किया।

हरिहर द्वितीय विरुपाक्ष का उपासक होने के साथ इसने शैव, वैष्णव व जैनियों को संरक्षण प्रदान किया। सायणायाचार्य एक प्रसिद्ध वेदों के टिकाकार इसके दरबार में मुख्यमंत्री के पद पर नियुक्त थे। तथा जैन धर्म का अनुयाई ईरूगापा नानार्थ रत्नमाला का लेखक इसका सेनापति था। 1404 में हरिहर द्वितीय की मृत्यु के बाद इसके पुत्रों में संघर्ष हुआ तथा विरुपाक्ष प्रथम और बुक्का द्वितीय ने क्रमशः शासक बने अंततः 1906 में देव राय प्रथम शासक बना।

देव राय प्रथम (1406-22) तक

देव राय प्रथम के शासन संभालते ही बहमनी शासक फिरोजशाह ने विजयनगर पर आक्रमण किया। जिसमें देवराय को पराजय का सामना करना पड़ा और एक संधि के फलस्वरुप देव राय प्रथम को अपनी पुत्री का विवाह फिरोजशाह के साथ तथा बांकापुर दहेज में भेंट करना पड़ा। यह संधि बहुत दिनों तक न टिक सकी तथा 1417 में फिरोजशाह ने देव राय प्रथम पर आक्रमण कर पनागल (नालगोंडा) दुर्ग की लगभग 2 वर्षों तक घेराबंदी की फिरोजशाह की सेना में महामारी फैलने के कारण वापस जाना पड़ा। एक बार फिर 1419 में दोनों में युद्ध हुआ जिसमें फिरोज शाह की पराजय हुई।

देवराय प्रथम के शासनकाल को देखा जाए तो वह एक महान सैनिक, राजनीतिज्ञ तथा निर्माता था। उसने अनेक सिंचाई योजनाएं तथा तुंगभद्रा तथा हरिहर नदी पर बांधों का निर्माण कराया। इसके शासनकाल में इतालवी यात्री निकोलोकान्टी (1420) ने विजयनगर की यात्रा की। इसने अपने यात्रा वृतांत में दीपावली, नवरात्र, बहुविवाह, सतीप्रथा आदि का उल्लेख किया। देवराय के दरबार में हरीविलास ग्रंथ के रचनाकार प्रसिद्ध तेलुगू कवि श्रीनाथ को संरक्षण प्रदान किया। 1422 में देव राय प्रथम की मृत्यु हो गई।

देवराय द्वितीय (1422-46)ई. तक

देवराय प्रथम की मृत्यु के बाद क्रमशः रामचंद्र, विजयप्रथम ने लगभग 6,6 माह शासन किया इसके उपरांत देवराय द्वितीय सिंहासन पर आसीन हुआ। इसने गजवेटकर (हाथियों का शिकारी) इम्मादि, देवराय या प्रौढ़ देवराय आदि उपाधियां धारण की। यह संगम वंश का महानतम शासक माना जाता है। यह एक धर्म सहिष्णु शासक था। सिंहासन पर आसीन होने पर इसने कुरान की प्रति अपने समक्ष रखी तथा मुस्लिम सैनिकों की भर्ती की अपनी सैनिक शक्ति विस्तार करने के लिए इसने 2000 तुर्की धनुर्धरों को अपनी सेवा में भर्ती किया। आंध्रा में कोड़ाबिंदु, वेलम का शासक तथा केरल को अधीनता स्वीकार करने को बाध्य किया तथा अपना साम्राज्य श्रीलंका (सीलोन)तक विस्तृत किया।

इसके शासनकाल में फारस (ईरान) के राजदूत अब्दुल रजाक ने विजयनगर की यात्रा की। जो कि ईरान के शासक मिर्जा शाहरुख का दूत था। लिंगायत धर्म को मानने वाले मंत्री लक्कना या लख्मख को “दक्षिणी सागर का स्वामी” नियुक्त किया। देवराय द्वितीय द्वारा संस्कृत ग्रंथों महानाटक, सुधा नीति एवं वादरायण के ब्रह्मसूत्र पर एक टीका की रचना की। दिनदिमा इसका दरबारी कवि था। इसके संरक्षण में 34 कवि फले-फूले। 1446 में देव राय द्वितीय की मृत्यु हो गई। इसके बाद विजय द्वितीय 1446 ईस्वी में लगभग 1 वर्ष शासन किया तथा बाद में अपने भतीजे मल्लिकार्जुन के लिए सिंहासन का त्याग कर दिया।

मल्लिकार्जुन (1446- 65) ई. तक

मल्लिकार्जुन ने इम्मादि देवराय, प्रौढ़ देवराय तथा गजबेटकर उपाधियां धारण की। गजबेटकर उपाधि इसके पिता देवराय द्वितीय ने भी धारण की थी। अल्पायु में ही इसका राज्यारोहण हुआ उड़ीसा के गजपतियों द्वारा इसके दो किले कोंडवीर, उदयगिरि को छीन लिया गया। इसके शासनकाल में माहुयान नामक चीनी यात्री विजयनगर आया। इसकी मृत्यु सन् 1465 में हुई इसका उत्तराधिकारी विरुपाक्ष द्वितीय बना।

विरुपाक्ष द्वितीय (1465-85)ई. तक

विरुपाक्ष द्वितीय विजयनगर साम्राज्य के संगम वंश का अंतिम शासक था। इसकी हत्या इसके पुत्र प्रौढ़ देवराय ने कर दी। इस घटना को इतिहास में प्रथम बलापहार कहा जाता है। इसके साम्राज्य में अराजकता फैल गई इसी अवसर को देखकर चंद्रगिरि के गवर्नर सालुक नरसिंह ने शासन पर अधिकार कर लिया और सालुव वंश की स्थापना की।

प्रश्न 01- विजयनगर साम्राज्य की स्थापना कब हुई?

-विजयनगर साम्राज्य की स्थापना सन 1336 ईस्वी में की गई।

प्रश्न 02- विजयनगर साम्राज्य की स्थापना किसने की?

-विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों ने की थी।

प्रश्न 03- विजय नगर की यात्रा करने वाला पहला विदेशी कौन था?

-विजयनगर की यात्रा करने वाला पहला विदेशी यात्री इतालवी यात्री निकोलो कान्टी था। जो देवराय प्रथम के शासनकाल में सन् 1440 ईस्वी में आया था।

प्रश्न 04- विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी?

-विजयनगर की राजधानी विजयनगर (विद्यानगर) थी। समय-समय पर विजयनगर की राजधानी परिवर्तित होती रही यह क्रमशः अनेगोण्डी, विजयनगर, पेनुकोण्डा तथा चंद्रगिरि, हम्पी (हस्तिनावती) विजयनगर की पुरानी राजधानी का प्रतिनिधित्व करता था। विजयनगर का वर्तमान नाम हंपी (हस्तिनावती) है।

प्रश्न 05- विजयनगर का अंतिम शासक कौन था?

-विजयनगर साम्राज्य का अंतिम शासक श्रीरंग तृतीय (अरविडु वंश) था।

प्रश्न 06- विजयनगर किस नदी के किनारे है?

-विजयनगर तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है।

प्रश्न 07- विजयनगर साम्राज्य से संबंधित वंश हैं?

-संगम वंश (1336-1485 ई.)
-सालुव वंश (1485-1505 ई.)
-तुलुव वंश (1505-1565 ई.)
-अरविडु वंश (1570-1652ई.)

प्रश्न 08- विजयनगर के दो प्रसिद्ध मंदिर कौन से थे?

-विजयनगर के दो प्रसिद्ध मंदिर हजारा राम मंदिर तथा विट्ठल स्वामी मंदिर था।

प्रश्न 09- विजयनगर साम्राज्य की अमर नायक प्रणाली?

-विजयनगर साम्राज्य में सैनिक और असैनिक अधिकारियों को उनकी सेवाओं के बदले जो भूमि प्रदान की जाती थी। उसे अमरम् कहा जाता था। तथा इस अमरम् को प्राप्त करने वालों को अमरनायक कहा जाता था

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