भारत के गवर्नर जनरल एवं वायसराय ( 1973-1948 )

भारत के गवर्नर जनरल एवं वायसराय
  1. गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ( 1773-1785 )के शासन काल की महत्वपूर्ण घटनाएं |

भारत के गवर्नर जनरल एवं वायसरायो में गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स (1773 से 1785) अत्यधिक महत्वकांक्षी गवर्नर था |

1773 का रेगुलेटिंग एक्ट भारत में शासन की जिम्मेदारी गवर्नर जनरल तथा उसकी चार सदस्यीय परिषद पर डाल दिया गया| हेस्टिंग्स,बारवेल, क्लेवरिंग, फ्रांसिस तथा मानसन परिषद के सदस्य थे |

पहली बार ब्रिटिश कैबिनेट को भारतीय मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार दिया गया| 500 पाउंड के स्थान पर 1500 धारकों को संचालक चुनने का अधिकार दिया गया संचालक मंडल का कार्यकाल 4 वर्ष कर दिया गया | बंगाल के गवर्नर को समस्त अंग्रेजी क्षेत्रों का गवर्नर कहां गया|

1774 में इसी अधिनियम के तहत उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट )की स्थापना की गई, जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा तीन अन्य न्यायाधीश थे सर एलिजा इम्पे मुख्य न्यायधीश तथा चेम्बर्स, लिमेंस्टर और हायड अन्य न्यायाधीश थे |

कंपनी के कर्मचारियों के लिए निजी व्यापार पूर्णता प्रतिबंधित कर दिया गया इनके वेतन में वृद्धि की गई तथा नजराना, भेट,घूस पर रोक लगा दी गई इस एक्ट के सभी प्रावधान “परीक्षण एवं संतुलन” के सिद्धांत पर आधारित है|

भारत के गवर्नर जनरल एवं वायसराय

1781 का अधिनियम

कलकत्ता स्थित उच्चतम न्यायालय के न्याय क्षेत्र को निर्धारित कर दिया गया | न्यायालय द्वारा कानून बनाने या उनका क्रियान्वयन करते समय भारतीयों के रीति-रिवाजों धार्मिक मान्यताओं का ध्यान रखा जाए |

राजस्व एकत्रित करने की व्यवस्था में कोई रुकावट न डाली जाए|

1784 का पिट्स इंडिया एक्ट

तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री “पिट द यंगर” द्वारा संसद में प्रस्तुत किया गया|

6 कमिश्नरो के नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की गई जिसे “बोर्ड आफ कंट्रोल” कहते थे|

कंपनी के मामलों की छानबीन एक प्रवर समिति (SELECT COMMITTEE) और एक गुप्त समिति (SECRET COMMITTEE)नियुक्त की गई|

इस एक्ट के द्वारा यह पहला और अंतिम अवसर था, जब एक अंग्रेजी सरकार भारतीय मामले पर टूट गई|

गवर्नर जनरल के अधीन बंबई और मद्रास के गवर्नर पूर्ण रूप से कर दिए गए भारत में कंपनी के अधिकार क्षेत्र को “ब्रिटिश अधिकृत भारतीय प्रदेश” कहा गया| इस अधिनियम की सबसे महत्वपूर्ण धारा यह थी कि इसके द्वारा भारत में आक्रमण आक्रमक युद्ध को केवल समाप्ति नहीं कर दिया अपितु जो प्रत्याभूति (GUARANTEE) की सन्धिया कर्नाटक,अबध जैसे  भारतीय राजाओं से की गई थी उन्हें समाप्त कर दिया गया और यह कहा गया कि “विजय की योजनाये तथा भारत में साम्राज्य का विस्तार इस राष्ट्र की इच्छा सम्मान तथा निति  के विरुद्ध है|”

1774 का रोहिल्ला युद्ध

अप्रैल 1774 में मीरानपुर कटरा के स्थान पर नवाब व कंपनी की सम्मिलित सेना द्वारा रोहिल्ला सरदार हाफिज रहमत खान के साथ निर्णायक युद्ध लड़ा गया, जिसके जिसमें हाफिज रहमत का मारा गया| रूहेलखंड अवध में सम्मिलित कर लिया गया तथा 2लाख  रुहेलो को देश से निकाल दिया गया| रुहेला ग्राम लूटे गए, बच्चे मार डाले गए तथा स्त्रियों के साथ बलात्कार किए गए|

वारेन हेस्टिंग्स के इस आचरण की बर्क,मेकाले आदि ने कड़ी आलोचना की| लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि यह युद्ध हेस्टिंग द्वारा केवल धन तथा राजनैतिक लाभ के लिए लड़ा गया उसका नैतिकता की तरफ कोई विचार नहीं रहा|

1775-82 प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध

18 मई 1775 ई. को आरस के मैदान में अंग्रेज और मराठा सेनाओं के मध्य भीषण युद्ध हुआ | मराठे पराजित हुए लेकिन पुना पर उनका अधिकार बना रहा| कलकत्ता की अंग्रेजी सरकार की ओर से वारेन हेस्टिंग ने पूना दरबार में कर्नल अपटन को भेजकर पुरंदर की संधि (1मार्च 1776 ) कर ली|

मुंबई सरकार ने पुरंदर की संधि अस्वीकार कर दी तथा एक सेना कर्नल इगर्टन के अधीन नवंबर 1778 में पूना की ओर भेजा,कर्नल कौकबर्न के नेतृत्व में 9 जनवरी 1779 को पश्चिमी घाट स्थित तालगांव की लड़ाई में अंग्रेज पराजित हुए इसके बाद अंग्रेजों को बड़गांव की अपमानजनक संधि स्वीकार करनी पड़ी|

बडगाव की संधि वारेन हेस्टिंग्स ने मानने से इनकार कर दिया तथा युद्ध जारी रखा | केप्टन पोफम के अधीन ग्वालियर पर आक्रमण तथा जनरल गाडर्ड  के अधीन पूना पर आक्रमण किया यहाँ अंग्रेजों की खोई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित हुई | अग्रजो और मराठो के मध्य सालबई  की संधि 1782 से लगभग 20 वर्षों की शांति प्रदान की|

भारत के गवर्नर जनरल एवं वायसराय

द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध(1780-84)

अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के फलस्वरूप फ्रांस  तथा इंग्लैंड में कुछ युद्ध छिड़ गया| वारेन हेस्टिंग्स ने भारत की समस्त फ्रांसीसी बस्तियों को अपने अधीन करने का निश्चय किया| उसने हैदर अली के अधीन रहने वाले मालाबार तट पर स्थित माही बंदरगाह को जीत लिया| वारेन हेस्टिंग्स ने आक्रमण का तर्क दिया कि हैदर अली को फ्रांसीसी सहायता पहुंच सकती है|

जुलाई 1780 में हैदर अली ने कर्नाटक पर आक्रमण कर दिया यहीं से द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध आरंभ हुआ हैदर अली ने अंग्रेज जनरल वेली को कर्नाटक में हराया वारेन हेस्टिंग्स ने कूटनीतिक चाल चलकर निजाम को गुंटूर देकर हैदर अली से अलग किया तथा सिंधिया भोंसले को मिला लिया| 1780 में जनरल आयारकुट ने पोर्टनोवा, पॉलीलुर, शोलीग्लुर  में  अकेले पड़े हैदर अली को कई बार हराया|

हैदर अली ने 1782 में आयारकुट को हराया |7 दिसंबर 1782 को हैदर अली की मृत्यु तथा उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने युद्ध जारी रखा | 1784 में मंगलौर की संधि से द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध समाप्त हुआ|

भारत के गवर्नर जनरल एवं वायसराय

बनारस के राजा चैत सिंह के साथ विवादास्पद संबंध

मराठा और मैसूर के युद्ध से कंपनी पर बहुत अधिक वित्तीय भार पड़ा है जिसके कारण वारेन हेस्टिंग्स को वे कार्य करने पड़े जिसके लिए अंत में उस पर महाभियोग (impeachment) का मुकदमा चलाया गया |

नवाब को चैत सिंह के अधीन किया गया जिससे जो धन चैत सिंह नवाब को देता था, वह कंपनी को देने लगा | जिससे वारेन हेस्टिंग्स बार-बार धन वसूलने लगा| मैंकाले के अनुसार बार-बार धन मांगने से चैट सिंह विरोध करें जिससे वह इसको अपराध मान कर उसके समस्त प्रदेश को जब्त कर लिया जाये| चैत सिंह ने वारेन हेस्टिंग्स के पैरों में अपनी पगड़ी तक रखी लेकिन उसने चेत सिंह को बंदी बना लिया |

इस निष्ठुरता से सैनिकों ने विद्रोह किया जिसे आसानी से दबा दिया गया| वारेन हेस्टिंग्स को अनुमान से बहुत कम धन प्राप्त हुआ, अर्थात वह असफल रहा | इसके बाद उसने यही अवध में करने का रास्ता चुना|

नंदकुमार को फांसी (1775)

नंदकुमार मुर्शिदाबाद का भूतपूर्व दीवान था| इसने वारेन हेस्टिंग्स पर 3 लाख 50 हजार  घूस लेने का आरोप लगाया| इसलिए हेस्टिंग्स ने न्यायाधीश इम्पे की मदद से जालसाजी के मुकदमे में नंदकुमार को फांसी पर चढ़ा दिया| भारत के गवर्नर जनरल एवं वायसराय में यह सबसे बड़ा कलंक माना गया |

एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल

वारेन हेस्टिंग के समय विलियम जोंस ने कोलकाता में 1784 में इसकी स्थापना की|

जनजातीय विद्रोह (1757 से 1856 तक)

जनजातीय विद्रोह

 जनजातीय विद्रोह                                                                                                  1857 से पूर्व लगभग 100 वर्षों से विदेशी राज्य द्वारा उत्पन्न कठिनाइयों के विरुद्ध अनेक आंदोलन विद्रोह तथा सैनिक विप्लव हुए स्वशासन में विदेशी हस्तक्षेप अत्यधिक करो का लगाना अर्थव्यवस्था की दयनीय स्थिति आदिवासियों के भूमि और जंगल मुख्य कारण थे झूम खेती पर प्रतिबंध वन क्षेत्रों पर नियंत्रण पुलिस व्यापारियों एवं महाजनों द्वारा शोषण आदि जनजातीय विद्रोह  के मुख्य कारण थे|

जनजातीय विद्रोह

  • संन्यासी विद्रोह
  • संथाल विद्रोह
  • संथाल विद्रोह का नेता कौन था
  • संथाल विद्रोह कब हुआ था
  • बधेरा विद्रोह
  • कोल का विद्रोह
  • बहावी आन्दोलन
और पढ़े
भारत में क्रांतिकारी आंदोलन
संन्यासी विद्रोह

संन्यासी विद्रोह का मुख्य कारण तीर्थ स्थलों तथा तीर्थ यात्रा पर प्रतिबंध लगाया जाना था, कभी मराठों राजपूतों नवाबों की सेनाओं में सेवा देने वाले सैनिक मुख्यता हिंदू नागा और गिरी के सशस्त्र सन्यासी थे| 1770 में भीषण अकाल पड़ा, लेकिन कंपनी के पदाधिकारियों की कठोरता को लोगों ने विदेशी राज्य की देन समझा, तीर्थ यात्राओं पर प्रतिबंध लगाने के कारण सन्यासियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह प्रारंभ कर दिया| इन सन्यासियों ने जनता से मिलकर कंपनी की कोठियों तथा कोषागारो पर आक्रमण किया, सभी वीरता से लड़े| 

1820 तक वारेन हेस्टिंग्स द्वारा चलाए गए अभियान द्वारा इसका दमन कर दिया गया| इसी सन्यासी विद्रोह का उल्लेख वंदे मातरम के रचयिता “बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय” ने अपने उपन्यास “आनंदमठ” में किया है, इस आंदोलन को “फकीर आंदोलन” भी कहा जाता है| इस जनजातीय विद्रोह में हिंदुओं और मुसलमानों की समान भागीदारी रही मजनूम शाह, चिराग अली, मूसा शाह, भवानी पाठक, तथा देवी चौधरानी इस विद्रोह के प्रमुख नेता थीl

जनजातीय विद्रोह

 संथाल विद्रोह

भागलपुर तथा राजमहल जिले के बीच में संथालो द्वारा कंपनी के अधिकारियों जमीदारों एवं पुलिस की वसूली और दुर्व्यवहार के कारण विद्रोह कर दिया, और सिद्धू एवं कान्हू  के नेतृत्व में संथालों ने कंपनी के शासन के अंत की घोषणा की| इस जनजातीय आंदोलन का 1856 तक दमन कर दिया गया |

जनजातीय विद्रोह

संथाल विद्रोह का नेता कौन था

संथाल विद्रोह के मुख्य नेता सिद्धू और कानून ने जिनके द्वारा अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर दिया गया था| इन लोगों के लिए प्रथक संथाल परगना बनाकर शांति स्थापित की|

संथाल विद्रोह कब हुआ

संथाल विद्रोह 1855-1856 ई. तक  सिद्धू और कानून के नेतृत्व में भागलपुर तथा राज महल जिलों में हुआ था|

बधेरा विद्रोह 

बधेरा विद्रोह ओखा मंडल के बधेरे आरंभ से ही विदेशी शासन से विरोधी थे| जब बड़ौदा के गायकवाड़ ने अंग्रेजी सेना की सहायता से लोगों से अधिकार कर प्राप्त करने का प्रयत्न किया तो बगैरा सरदार ने सशस्त्र विद्रोह कर दिया और 1818-19 के बीच अंग्रेजी प्रदेश पर भी आक्रमण किया| अंत में 1820 में शांति स्थापित हो गई|

कोल का विद्रोह 

भीलो के पडोसी कोल भी अग्रेजो से अप्रसन्न थे कोलो ने 1829,1839 तथा पुनः 1884 से  1848 तक इन्होने विद्रोह किये जो सब दबा दिए गये |

 बहावी आंदोलन

1830 से 1860 यहां आंदोलन रायबरेली के सैयद अहमद बरेलवी के नेतृत्व में 1830 में प्रारंभ किया गया| इसका उद्देश्य भारत को मुसलमानों का देश बनाना था, अर्थात यह आंदोलन मुसलमानों का, मुसलमानों द्वारा, मुसलमानों के लिए, ही था| लेकिन भारत में इसका लक्ष्य अंग्रेजों तथा शोषक वर्ग के अन्य लोगों का विरोध करना हो गया|

भारत में इस जनजातीय आन्दोलन का  प्रमुख केंद्र पटना था इसके अतिरिक्त हैदराबाद मद्रास बंगाल यूपी तथा मुंबई में इसकी शाखाएं स्थापित की गई 1860 के पश्चात अंग्रेजों ने वहाबियों के विरुद्ध एक व्यापक अभियान प्रारंभ किया| इस आंदोलन का देश में यह प्रभाव रहा कि देश के मुसलमानों में पृथकवाद की भावना जागी|

जनजातीय विद्रोह

विद्रोह का नाम विद्रोह का वर्ष स्थान नेतृत्वकर्ता
कोल विद्रोह 1831 छोटा नागपुर बुद्धो भगत
अहोम विद्रोह 1828 असम गोम्धर कुँवर
खासी विद्रोह 1833 गारो पहाड़िया (मेघालय ) राजा तीरत सिंह
पागल पंथी 1840-1850 उत्तरी बंगाल करम शाह
फरेजी आन्दोलन 1838-1857 फरीदपुर (बंगाल ) हाजी शरीयतुल्ला
रामोसी आन्दोलन 1822 पश्चिमी घाट सरदार चित्तर सिंह

नाटो क्या हैं WHAT IS NATO |UNITY OF 30 BEST COUNTRY |

WHAT IS NATO

नाटो क्या है WHAT IS NATO

    नाटो क्या हैं? नाटो संयुक्त राष्ट्र प्रावधानों को मानते हुए अपनी स्वतंत्र राज्य के लिए राजनीतिक एवं सैनिक सुरक्षात्मक गठबंधन के रूप में कार्य करता है, नाटो अपने सदस्यों में राजनीतिक सैनिक एवं आर्थिक क्षेत्रों के साथ-साथ वैज्ञानिक एवं अन्य सैनिक क्षेत्रों में सहयोग एवं समन्वय कारी नीतियों द्वारा उन्हें साझा सुरक्षा प्रदान करता है| यह संगठन अपने सदस्य देशों के साझा हितों की अभिवृद्धि तथा सदस्य देशों की सामूहिक सुरक्षा के प्रयत्नों में एकता स्थापित करेगा |

WHAT IS NATO

  • नाटो क्या है
  •  नाटो का पूरा नाम
    (FULL NAME OF NATO)
  •  नाटो का मुख्यालय कहां है?
  •  नाटो की स्थापना
  •  नाटो के सदस्य देश
  • क्या भारत नाटो का सदस्य है?
  •  रूस यूक्रेन विवाद क्या है ?

और पढ़े :- भारत के पडोसी देश 

 नाटो का पूरा नाम(FULL NAME OF NATO)

उत्तर अटलांटिक संधि संगठन(THE NORTH ATLANTIC TREATY ORGANIZATION-NATO)

 नाटो का मुख्यालय कहां है?

नाटो का मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी बर्लिन में है|

नाटो क्या हैं

 नाटो की स्थापना

 4 अप्रैल 1949 संयुक्त राज्य अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी|

 नाटो के सदस्य देश

     बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आयरलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड, नार्वे, पुर्तगाल, ब्रिटेन, एवं संयुक्त राज्य अमेरिका 1952 में, यूनान एवं टर्की 1955 में, जर्मन संघीय गणराज्य पश्चिमी जर्मनी 1982 में, स्पेन 1999 में, चेक गणराज्य, हंगरी एवं पोलैंड 29 मार्च 2004 को, बुलगारिया, एस्तोनिया, लाटविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया तथा स्लोवेनिया शामिल, 4 अप्रैल 2009 अल्बानिया व क्रोएशिया,मोंटेनेग्रो (2017),उत्तर मेसेडोनिया (2020) शामिल |

नाटो क्या हैं

 क्या भारत नाटो का सदस्य है?

     भारत नाटो का सदस्य नहीं है, क्योंकि इसका सदस्य बनने के लिए यूरोपीय राष्ट्र होना आवश्यक है हालांकि नाटो ने यूरोप से बाहरी राष्ट्रों से भी संबंध बनाने में दिलचस्पी जाहिर की है|

 रूस यूक्रेन विवाद क्या है ?

     यूक्रेन नाटो का सदस्य ना होने के बावजूद अमेरिका का एक महत्वपूर्ण भागीदार है,यह 1990 के दशक में स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होता है इस प्रकार यूक्रेन अमेरिका सामरिक साझेदारी को औपचारिक रूप दिया गया है, जो कि अमेरिका द्वारा यूक्रेन की सुरक्षा को बढ़ाने हेतु वर्तमान चार्टर “रूसी आक्रमण” का मुकाबला करने की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है या केवल यूक्रेनी सेना में सुधार एवं डाटा साझा करने में अमेरिका सहायता पर केंद्रित है| इससे यह स्पष्ट होता है कि किसी प्रकार के युद्ध के समय अमेरिका यूक्रेन की रक्षा नहीं कर सकता,क्योकि सुरक्षा से सम्बंधित इस प्रकार की किसी संधि पर हस्ताक्षर नहीं हुए हैं|

 यूक्रेन संविधान में यह निहित है कि वह नाटो में शामिल हो या नहीं पूर्ण रूप से स्वतंत्र है| 2008 में यूक्रेन नाटो से संबंध होने पर विचार करने पर जर्मनी फ्रांस ने इसे अवरुद्ध कर दिया ताकि रूस को आक्रमण करने का मौका ना मिले लेकिन पिछले दो दशकों से युक्रेन द्वारा लगातार नाटो में चले जाने का प्रयास किया जा रहा है, जो कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को को समझ नहीं आता है

वर्ष 2014 में यूक्रेन की जनता द्वारा रूस समर्थित राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को सत्ता से हाथ धोना पड़ा और पश्चिम समर्थक ताकतों को सत्ता में लाया गया, जिससे क्रीमिया में संकट के बादल छा गए यहां की अधिकांश आबादी रुसी थी तथा डोनवास का भी समर्थन प्राप्त था, जो रुसी होना भी दिखा रहा था और उसको पूर्वी यूक्रेन में स्थित तो राज्य डोनेटस्क और लुहांस्क जो रूस की सीमा पर स्थित है जहां डोनेटस्क पीपुल्स रिपब्लिक (डी.पी.आर.) और लुहांस्क पीपुल्स रिपब्लिक (एल.पी.आर.) संगठन रूस समर्थित अलगाववादियों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं, इस क्षेत्र “डोनवास” के रूप में जाना जाता है यहां की मुख्य भाषा रूसी है

उपरोक्त से यह स्पष्ट होता है कि यहां केवल क्षेत्रीय अधिपत्य व सामरिक शक्ति से ज्यादा राष्ट्रवाद के सांस्कृतिक मुद्दे हैं, जो कि पश्चिमी देशों और नाटो के अड़ियल रवैये के कारण यह युद्ध और उलझ गया है, सीरिया लेबनान इसके पहले लीबिया के पश्चिम समर्थित सरकार सत्ता में हैं जो लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना करना चाहती हैं

इसका परिणाम बहुत ही भयावह होने वाला है पूर्व में कई बार ऐसे मौके आए जब यूक्रेन और रूस इन मुद्दों को सुलझा सकते थे लेकिन पश्चिमी देशों के हस्तक्षेप के कारण यह मुद्दा और जटिल बना हुआ है युक्रेन के नाटो में शामिल होने के द्वारा रूस को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा व आंतरिक हितों को बनाए रखने की जिद कहीं तृतीय विश्वयुद्ध की बुनियाद खड़ी कर दे|

नाटो क्या हैं