भारत में चलाएं गए प्रमुख पर्यावरण आंदोलन:-
भारत में पर्यावरण आंदोलन देखा जाए तो आदिकाल से चलाया जा रहा है। पर्यावरण से संबंधित तत्वों जैसे धरती, जल, आग, वायु, आकाश, पर्वत, नदी, वनस्पतियों से भारतीयों की असीम श्रद्धा जुड़ी है। वह उनकी विभिन्न रूपों में पूजा अर्चना करके इसके संरक्षण में अपना योगदान देते रहे हैं। इसका उल्लेख वेदों, गीता, महाभारत, उपनिषद आदि में किया गया है।
लेकिन वर्तमान में विकास की अंधी दौड़ में हम अपने और अपनी आने वाली पीढ़ी के जीवन को संकट में डाल रहे हैं। और लगातार वन एवं जैव विविधता को नुकसान पहुंचा रहे हैं। भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए वनों को काटने से रोकने प्राकृतिक संसाधनों को भविष्य के लिए बनाए रखने हेतु भारतीय पुरुषों महिलाओं ने विभिन्न आंदोलन चलाए। जिससे पर्यावरण संरक्षण को काफी मदद मिली और सरकार द्वारा भी विभिन्न नियम बनाए गए।
पर्यावरण संरक्षण हेतु भारत में पर्यावरण आंदोलन चलाए गए। जिनमें प्रमुख आंदोलन निम्नलिखित हैं:-
और पढ़े :-भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन(20वीं सदी )
चिपको आंदोलन (Chipko Movement):-
चिपको आंदोलन 26 मार्च 1973 ई. को उत्तर प्रदेश के चमोली जिले (वर्तमान में उत्तराखंड) में वनों की कटाई को रोकने के लिए किया गया।
इस आंदोलन में प्रदर्शन कार्यों द्वारा पेड़ों को गले लगाया गया जिससे पेड़ों को काटा ना जा सके।
वर्ष 1964 में सामाजिक कार्यकर्ता चंडी प्रसाद भट्ट द्वारा दसोली ग्राम स्वराज संघ की स्थापना की गई। जो की कर्ण सिंह और ज्योति कुमारी आंदोलन से प्रेरित था।
उक्त संघ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य जंगली संसाधनों का उपयोग कर छोटे-छोटे उद्योगों की स्थापना कर सके।
चिपको आंदोलन को प्रेरणा बिश्नोई आंदोलन से मिली। जो 1731 में राजस्थान के खेजड़ी गांव से प्रारंभ हुआ। यहां अमृता देवी बिश्नोई और उनकी तीन पुत्री ने पेड़ों से लिपटकर (चिपककर) अजीत सिंह द्वारा कटवायें जा रहे खेजड़ी के वृक्षों को काटने से रोका लेकिन अजीत सिंह के लोगों द्वारा उनके समेत गांव के 363 लोगों को पेड़ों के साथ काट दिया गया।
आधुनिक चिपको आंदोलन की शुरुआत 26 मार्च 1974 में उत्तर प्रदेश के रैणी गांव (वर्तमान में उत्तराखंड) में ₹2500 पेड़ों की नीलामी काटने के लिए की गई। लेकिन इन पेड़ों की कटाई का विरोध गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं द्वारा पेड़ों से चिपककर किया गया। इस विरोध से वन्य जीव अधिकारियों को गौरा देवी की बात माननी पड़ी और पेड़ों की कटाई रोक दी गई।
चिपको आंदोलन के जनक सुंदरलाल बहुगुणा, गौरा देवी, चंडी प्रसाद भट्ट तथा अन्य कार्यकर्ताओं के साथ ग्रामीण महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया।
चिपको आंदोलन पर्यावरण की सुरक्षा की दृष्टि से किया गया शांति एवं अहिंसक आंदोलन था।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा सन् 1980 में हिमालयी वृक्षों को काटने पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी गई। यह इस आंदोलन की सबसे बड़ी सफलता थी।
साइलैंट वैली आंदोलन (silent valley movement):-
साइलेंट वैली आंदोलन 1973 में केरल के पलक्कड़ जिले में चलाया गया था।
यह आंदोलन कुंतीपूझा(Kunthi puzha) नदी पर बनाए जा रहे जल विद्युत प्रोजेक्ट के विरोध में चलाया गया था।
जिस स्थान पर यह जल विद्युत प्रोजेक्ट बनाया जा रहा था। वहां सदाबहार उष्णकटिबंधीय वन है। यह वन अत्यधिक घने होने के कारण बहुत ही शांत रहता है। इसलिए इसे शांत घाटी (silent valley)कहा जाता है।
यहां के वनों में पेड़ पौधों एवं जंतुओं की दुर्लभ प्रजातियां पाई जाती हैं। जिसमें मुख्यतः राष्ट्रीय पशु बाघ, नीलगिरी लंगूर, विशिष्ट जीव लाॅयन टेल्ड मकाक आदि यहां की स्थानीय प्रजातियां पाई जाती हैं।
यहां निर्माणाधीन जल विद्युत प्रोजेक्ट से यहां पाई जाने वाली विभिन्न पेड़- पौधों जंतुओं की दुर्लभ प्रजातियों के नष्ट होने का खतरा उत्पन्न हो सकता था ।
यह आंदोलन एक सामाजिक आंदोलन बन गया था। क्योंकि इस आंदोलन के समर्थन में विशिष्ट लोगों ने जनता से संपर्क हेतु विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया। जिससे जनता को जागरूक किया जा सके।
यह आंदोलन कामयाब रहा और 1985 को इस स्थान को साइलेंट वैली राष्ट्रीय पार्क घोषित किया गया।