वायुमंडल |Atmosphere किसे कहते हैं परते|संघटन| संरचना

वायुमंडल हवा के रूप में पृथ्वी के चारों ओर उपस्थित कई किलोमीटर बनी चादर जो हमारी पृथ्वी का सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करती है।

वायुमंडल द्वारा सूर्य से आने वाले विकिरण को पृथ्वी तक आने दिया जाता है। लेकिन पृथ्वी से निकलने वाले विकिरण को वायुमंडल द्वारा रोक लिया जाता है। फल स्वरुप पृथ्वी से उत्सर्जित होने वाली ऊष्मा को एक “ग्लास हाउस” की भांति कार्य करते हुए रोक लिया जाता है। जिससे पृथ्वी का तापमान औसतन 15 डिग्री सेंटीग्रेड बना रहता है।

इसी तापमान के द्वारा पृथ्वी पर जीव मंडल (जीव जंतुओं की उत्पत्ति) का उद्भव संभव हो सका है। यदि वायुमंडल रूपी वायु की घनी चादर हमारी पृथ्वी के चारों तरफ नहीं होती। तो हम दिन के समय सूर्य के तापमान से जल सकते थे। और रात के समय ठंड से जम सकते थे।

वायुमंडल का संघटन :-

वायुमंडल विभिन्न प्रकार की गैसों का मिश्रण है। जिसमें धूल के कण ठोस अवस्था में तथा जलवाष्प तरल अवस्था में उपस्थित होती है। वायुमंडल में मौजूद गैसे, जलवाष्प, धूल के कण असमान मात्रा में तैरते रहते हैं। यह समय और स्थान के अनुसार बदलते रहते हैं।

वायुमंडल में नाइट्रोजन गैस सर्वाधिक मात्रा में उपस्थित है। उसके बाद क्रमशः ऑक्सीजन, आर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड, नेयाॅन, हीलियम, ओजोन व हाइड्रोजन गैस उपस्थित होती है। वायुमंडल में अशुद्धियों के रूप में जलवाष्प व धूल के कारण असमान रूप से वायुमंडल में उपस्थित रहते हैं। जिसके कारण संसार की मौसमी दशाओं में परिवर्तन में अहम भूमिका होती है।

वायुमंडल में उपस्थित विभिन्न गैसों की मौजूदगी मात्र 32 किलोमीटर की ऊंचाई तक होती है। तथा जलवाष्प व धूल के कण अधिकतम 10 किलोमीटर ऊंचाई तक पाए जाते हैं।                                    वायुमंडल

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वायुमंडल के गैसीय मिश्रण में पाई जाने वाली विभिन्न गैसे निम्नलिखित हैं :-

नाइट्रोजन (N₂):-

नाइट्रोजन वायुमंडलीय गैसों का एक प्रमुख अवयव है। जो हमारे वायुमंडल में लगभग 78% भाग में उपस्थित है। जो की आयतन की दृष्टि से वायुमंडलीय गैसों में सबसे अधिक है। वायुमंडलीय नाइट्रोजन पोषक तत्वों की पूर्ति लेग्यूमेनस पौधों द्वारा की जाती है। पेड़ पौधे मिट्टी से नाइट्रोजन नाइट्रेट के रूप में प्राप्त करते हैं। वायुमंडल और पृथ्वी पर नाइट्रोजन की उपस्थिति विभिन्न इसके अवयवों का बाहुल्य भार 0.01% है।

ऑक्सीजन (O₂):-

वायुमंडल में ऑक्सीजन कुल गैसों का लगभग 21% आयतन होता है। यह गैस मनुष्यों जीव जंतुओं के लिए प्राण दायिनी गैस है। अतः इसे “प्राण वायु” भी कहा जाता है। इसका उत्पादन हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा करते हैं। यदि पृथ्वी की सारी वनस्पतियां नष्ट हो जाए तो ऐसी स्थिति में जीव जंतु ऑक्सीजन के अभाव में मर जाएंगे। ऑक्सीजन जल में संयुक्त रूप से पाई जाती है। इस प्रकार यह भार की दृष्टि से लगभग 88.9% होती है।

आर्गन (Ar):-

आर्गन एक अक्रिय गैस है। जो वायुमंडल में उपस्थित अन्य अक्रिय गैसों (हीलियम, नेयाॅन, क्रेप्टांन, जे़नांन) में सबसे अधिक मात्रा में पाई जाती है। इसका उपयोग कुछ तापीय धातु कर्मिक प्रक्रियाओं धातु अथवा मिश्रधातुओं की आर्क वेल्डिंग में निष्क्रीय वातावरण बनाने में तथा विद्युत बल्ब में भरने में किया जाता है।

कार्बन डाइऑक्साइड (CO2):-

वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड एक महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस है, जो वायुमंडल में लगभग 0.0407 प्रतिशत (लगभग 407 पार्ट्स पर मिलियन या PPM )उपस्थित है। यह गैस जीवाश्म ईंधन जैसे प्राकृतिक गैस, तेल, कोयला आदि के दहन तथा कल कारखानों से उत्पन्न होती है।
CO2 गैस पौधों में होने वाली प्रकाश संश्लेषण क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, इसके उपयोग से पौधे ग्लूकोज और ऑक्सीजन का निर्माण करते हैं जो की जीवन के लिए अति आवश्यक होते है।
कार्बन डाइऑक्साइड गैस (CO2) एक ग्रीनहाउस गैस होने के कारण हमारी पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करने में भूमिका रखती है।
जब इस गैस की मात्रा बढ़ती है, तो यह ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का कारण बनती है।

 

नियॉन (Ne):-

नियाॅन एक अक्रिय गैस है, जो लगभग 0.0018% वायुमंडल में उपस्थित है। मात्रा के हिसाब से यह पांचवीं नंबर की गैस है। यह हीलियम के बाद दूसरी सबसे हल्की नोबल गैस है।
– इस गैस का उपयोग चमकीले साइन बोर्ड तथा विज्ञापन लाइट्स में किया जाता है।
– इस गैस का गलनांक व क्वथनांक बहुत कम होने के कारण इसका प्रयोग क्रायोजेनिक रेफ्रिजरेंट के रूप मे किया जाता है।
– नियाॅन गैस एक अक्रिय गैस होने के कारण जलवायु परिवर्तन या ग्रीन हाउस प्रभाव में इसका कोई योगदान नहीं रहता है।

हीलियम (He) :-

– यह गैस के अक्रिय गैस है। जो रासायनिक क्रियाओं में भाग नहीं लेती है। वायुमंडल में इसकी उपस्थिति लगभग 0.0005 प्रतिशत है, जो की एक अल्प मात्रा है, हाइड्रोजन के बाद यह दूसरी सबसे हल्की गैस है।
– इस गैस का क्वथनांक (-268.9 सेंटीग्रेड) सभी तत्वों से कम है। इसी कारण यह अत्यंत निम्न तापमान पर द्रव अवस्था में बनी रहती है।
– हीलियम गैस का उपयोग एमआरआई मशीन, सुपरकंडक्टिव मैग्नेट, परमाणु रिएक्टर, अंतरिक्ष अनुसंधान, गोताखोरी आदि में किया जाता है।

मेथेन (CH4):-

– मेथेन गैस वायुमंडल में लगभग 0.00018 प्रतिशत उपस्थित है। इसकी मात्रा कार्बन डाइऑक्साइड CO2 से बहुत कम है, फिर भी यह ग्रीन हाउस प्रभाव में CO2 से लगभग 25 से 30 गुना अधिक प्रभाव डालती है। मेथेन को मार्श गैस/स्वैम्प गैस भी कहते हैं।
– यह गैस ऑक्सीजन की उपस्थिति में जलकर कार्बन डाइऑक्साइड और जलवाष्प का निर्माण करती है।
– मिथेन अत्यधिक ज्वलनशील होने के कारण इसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है।
– यह गैस धान के खेतों, बायोगैस संयंत्रों, जुगाली करने वाले जानवरों (जैसे गाय, भैंस आदि) कचरे के अपघटन आदि से इसका प्राकृतिक उत्पादन होता है।

क्रिप्टन (Kr):-

क्रिप्टन गैस वायुमंडल में लगभग 0.0001% उपस्थित है। यह एक निष्क्रिय गैस है, इसका क्वथनांक -153.4 डिग्री सेंटीग्रेड है, इसका उपयोग फ्लैश लैंप तथा कुछ फ्लोरोसेंट बल्ब में किया जाता है।

 जेनाॅन (Xe):-

जेनाॅन गैस वायुमंडल में लगभग 0.000009 प्रतिशत उपलब्ध है। यह एक निष्क्रिय गैस है।इसे अजनबी गैस (Stranger Gas) भी कहते हैं

हाइड्रोजन (H2):-

यह वायुमंडल में लगभग 0.00005 प्रतिशत मौजूद है। यह एक अत्यधिक हल्की गैस है, जो अक्सर पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण से बचकर अंतरिक्ष में चली जाती है इसका क्वथनांक – 252.9 डिग्री सेंटीग्रेड होता है यह एक अत्यधिक ज्वलनशील गैस होती है।

 हाइड्रोजन विश्व में पाया जाने वाला सबसे अधिक मात्रा वाला तत्व है। इसकी मौजूदगी में सूर्य में नाभिकीय संलयन क्रिया होती है, जो तारों में भी संपन्न होती है। इसकी खोज 1766 में हेनरी कैवेंडिश द्वारा की गई थी।

जलवाष्प (H2O):-

वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा परिवर्तनशील होती है, जो लगभग 0 से 4% के मध्य बनी रहती है, यह एक ग्रीनहाउस गैस है, जो मौसम और जलवायु को प्रभावित करती है।

ओजोन (O3):-

ओजोन वायुमंडल में लगभग 0.000004% मौजूद है। वायुमंडल की अधिकांश ओजोन गैस 15 से 35 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्टैटोस्फियर में मौजूद ओजोन परत में पाई जाती है। इसका क्वथनांक – 112 डिग्री सेंटीग्रेड होता है। ओजोन परत सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करने का कार्य करती है, जिससे जीवो में त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद और पारिस्थितिकी तंत्र में होने वाले नुकसान से बचाती है।

उपरोक्त के अलावा हमारे वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) नाइट्रोजन ऑक्साइड ( NO2) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) आदि मानवीय गतिविधियों के कारण उपस्थित हो सकती है।

 भारत में पर्यावरण आंदोलन|चिपको(1974)|विश्नोई(1730)|अप्पिको(1983)

भारत में चलाएं गए प्रमुख पर्यावरण आंदोलन:-
भारत में पर्यावरण आंदोलन देखा जाए तो आदिकाल से चलाया जा रहा है। पर्यावरण से संबंधित तत्वों जैसे धरती, जल, आग, वायु, आकाश, पर्वत, नदी, वनस्पतियों से भारतीयों की असीम श्रद्धा जुड़ी है। वह उनकी विभिन्न रूपों में पूजा अर्चना करके इसके संरक्षण में अपना योगदान देते रहे हैं। इसका उल्लेख वेदों, गीता, महाभारत, उपनिषद आदि में किया गया है।

लेकिन वर्तमान में विकास की अंधी दौड़ में हम अपने और अपनी आने वाली पीढ़ी के जीवन को संकट में डाल रहे हैं। और लगातार वन एवं जैव विविधता को नुकसान पहुंचा रहे हैं। भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए वनों को काटने से रोकने प्राकृतिक संसाधनों को भविष्य के लिए बनाए रखने हेतु भारतीय पुरुषों महिलाओं ने विभिन्न आंदोलन चलाए। जिससे पर्यावरण संरक्षण को काफी मदद मिली और सरकार द्वारा भी विभिन्न नियम बनाए गए।
पर्यावरण संरक्षण हेतु भारत में पर्यावरण आंदोलन चलाए गए। जिनमें प्रमुख आंदोलन निम्नलिखित हैं:-

भारत में पर्यावरण आंदोलन

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चिपको आंदोलन (Chipko Movement):-
चिपको आंदोलन 26 मार्च 1973 ई. को उत्तर प्रदेश के चमोली जिले (वर्तमान में उत्तराखंड) में वनों की कटाई को रोकने के लिए किया गया।
इस आंदोलन में प्रदर्शन कार्यों द्वारा पेड़ों को गले लगाया गया जिससे पेड़ों को काटा ना जा सके।
वर्ष 1964 में सामाजिक कार्यकर्ता चंडी प्रसाद भट्ट द्वारा दसोली ग्राम स्वराज संघ की स्थापना की गई। जो की कर्ण सिंह और ज्योति कुमारी आंदोलन से प्रेरित था।
उक्त संघ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य जंगली संसाधनों का उपयोग कर छोटे-छोटे उद्योगों की स्थापना कर सके।
 चिपको आंदोलन को प्रेरणा बिश्नोई आंदोलन से मिली। जो 1731 में राजस्थान के खेजड़ी गांव से प्रारंभ हुआ। यहां अमृता देवी बिश्नोई और उनकी तीन पुत्री ने पेड़ों से लिपटकर (चिपककर) अजीत सिंह द्वारा कटवायें जा रहे खेजड़ी के वृक्षों को काटने से रोका लेकिन अजीत सिंह के लोगों द्वारा उनके समेत गांव के 363 लोगों को पेड़ों के साथ काट दिया गया।
आधुनिक चिपको आंदोलन की शुरुआत 26 मार्च 1974 में उत्तर प्रदेश के रैणी गांव (वर्तमान में उत्तराखंड) में ₹2500 पेड़ों की नीलामी काटने के लिए की गई। लेकिन इन पेड़ों की कटाई का विरोध गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं द्वारा पेड़ों से चिपककर किया गया। इस विरोध से वन्य जीव अधिकारियों को गौरा देवी की बात माननी पड़ी और पेड़ों की कटाई रोक दी गई।
चिपको आंदोलन के जनक सुंदरलाल बहुगुणा, गौरा देवी, चंडी प्रसाद भट्ट तथा अन्य कार्यकर्ताओं के साथ ग्रामीण महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया।
चिपको आंदोलन पर्यावरण की सुरक्षा की दृष्टि से किया गया शांति एवं अहिंसक आंदोलन था।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा सन् 1980 में हिमालयी वृक्षों को काटने पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी गई। यह इस आंदोलन की सबसे बड़ी सफलता थी।
भारत में पर्यावरण आंदोलन साइलैंट वैली आंदोलन (silent valley movement):-
साइलेंट वैली आंदोलन 1973 में केरल के पलक्कड़ जिले में चलाया गया था।
यह आंदोलन कुंतीपूझा(Kunthi puzha) नदी पर बनाए जा रहे जल विद्युत प्रोजेक्ट के विरोध में चलाया गया था।
जिस स्थान पर यह जल विद्युत प्रोजेक्ट बनाया जा रहा था। वहां सदाबहार उष्णकटिबंधीय वन है। यह वन अत्यधिक घने होने के कारण बहुत ही शांत रहता है। इसलिए इसे शांत घाटी (silent valley)कहा जाता है।
यहां के वनों में पेड़ पौधों एवं जंतुओं की दुर्लभ प्रजातियां पाई जाती हैं। जिसमें मुख्यतः राष्ट्रीय पशु बाघ, नीलगिरी लंगूर, विशिष्ट जीव लाॅयन टेल्ड मकाक आदि यहां की स्थानीय प्रजातियां पाई जाती हैं।

 यहां निर्माणाधीन जल विद्युत प्रोजेक्ट से यहां पाई जाने वाली विभिन्न पेड़- पौधों जंतुओं की दुर्लभ प्रजातियों के नष्ट होने का खतरा उत्पन्न हो सकता था ।
यह आंदोलन एक सामाजिक आंदोलन बन गया था। क्योंकि इस आंदोलन के समर्थन में विशिष्ट लोगों ने जनता से संपर्क हेतु विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया। जिससे जनता को जागरूक किया जा सके।
यह आंदोलन कामयाब रहा और 1985 को इस स्थान को साइलेंट वैली राष्ट्रीय पार्क घोषित किया गया।

भारत में पर्यावरण आंदोलन 

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बिश्नोई आंदोलन:-
बिश्नोई आंदोलन 15वीं शताब्दी में संत ज़ाभोजी (भगवान जंभेश्वर) के नेतृत्व में राजस्थान से शुरु हुआ।
इस आंदोलन को पर्यावरण आंदोलन, बिश्नोई आंदोलन, बिश्नोई चिपको आंदोलन या खेजड़ली आंदोलन आदि नामो से भी जाना जाता है।
संत जांभोजी के द्वारा पर्यावरण के प्रति इतनी सेवा भावना से प्रेरित होकर बिश्नोई समुदाय द्वारा वृक्षों और जीवों की पूजा और संरक्षण किया जाता है।
सन 1730 में राजस्थान के राजा अभय सिंह द्वारा मेहरानगढ़ के किले में फूल महल के निर्माण हेतु लकड़ी की आपूर्ति के लिए सिपाहियों द्वारा रामू खोड के खेत में खडे़ खेजड़ी के वृक्षों को काटना प्रारंभ किया गया।
खेजड़ी के वृक्षों को काटने से रोकने हेतु रामू खोड की पत्नी अमृता बिश्नोई वह तीन पुत्रियों रत्नी, आंसू और भागू पेड़ों से लिपट गई। लेकिन राजा के सिपाहियों द्वारा इन सभी को पेड़ों के साथ काट दिया गया। पेड़ों की रक्षा के लिए मां बेटियों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी।
अमृता देवी वह उनकी पुत्रियों से प्रेरित होकर जोधपुर के खेजरली गांव के 363 स्त्री पुरुष शहीद हो गए। इस घटना के राजा के संज्ञान में आने पर उन्होंने अपना आदेश वापस ले लिया और पेड़ों की कटाई बंद करवाई और बिश्नोई समुदाय से माफी मांगी।
अमृता देवी के बलिदान को सम्मान देने के लिए भारत सरकार व राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। जैसे अमृता देवी बिश्नोई स्मृति पर्यावरण पुरस्कार (राजस्थान व मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दिया जाता है) अमृता देवी बिश्नोई वन्य जीव संरक्षण पुरस्कार (भारत सरकार द्वारा)
भारत में पर्यावरण आंदोलन

नर्मदा बचाओ आंदोलन:-
यह आंदोलन नर्मदा नदी पर बनाई जाने वाली बहुउद्देशीय बांध परियोजना के विरोध में था। इस योजना के तहत बनाए जाने वाले नर्मदा नदी पर निर्माणाधीन सरदार सरोवर बांध जो की एक बेहद बड़ा बांध था। जिसका सर्वाधिक विरोध किया गया। इस परियोजना का निर्माण गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र राज्य द्वारा सम्मिलित रूप से कराया जा रहा था। इस परियोजना से लगभग 37000 हेक्टेयर भूमि के जलमग्न होने का खतरा था। तथा लाखों परिवारों की कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण किया गया। जिसमें 58% भूमि आदिवासी लोगों की थी। बांध के निर्माण से लाखों परिवारों के विस्थापित होने का खतरा उत्पन्न हो जाता क्योंकि पानी को रोकने से आसपास की भूमि जलमग्न हो रही थी ।
इस आंदोलन में आदिवासी, किसान, पर्यावरण कार्यकर्ता, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भाग लिया जिसमें प्रमुख नेतृत्व कर्ता मेधा पाटकर, बाबा आमटे एवं अरुंधति राय थे। इन लोगों के प्रयास से उच्चतम न्यायालय द्वारा विस्थापित लोगों के लिए उचित पुनर्वास हेतु स्पष्ट नीति निर्माण करने का आदेश दिया गया।

भारत में पर्यावरण आंदोलन

एप्पिको आंदोलन:-
एप्पिको आंदोलन दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में 1983 में चलाया गया। यह आंदोलन उत्तर प्रदेश (वर्तमान में उत्तराखंड) के चिपको आंदोलन से प्रेरित था। एप्पिको शब्द कन्नड़ भाषा का है जिसका अर्थ “गले लगाना” होता है। यह आंदोलन पूर्णता अहिंसक था। 38 दिनों तक चलने वाले इस आंदोलन में युवाओं की सहभागिता सराहनीय थी। उनके अनुसार वनों की कटाई अधिक होने के बावजूद कागजों पर प्रति एकड़ दो पेड़ ही काटना प्रदर्शित किया जाता था। इससे गांव के आसपास के जंगल धीरे-धीरे गायब होने लगे जंगलों की कटाई के विरोध में सितंबर 1983 में अनेक महिलाओं, पुरुषों एवं बच्चों ने पांडुरंग हेगड़े के नेतृत्व में सलकानी से 5 किलोमीटर चलकर कालासे (kalase) में काटे जा रहे पेड़ों को गले लगाया।