दोस्तों आज हम लोग इस लेख में ज्वालामुखी के बारे में अध्ययन करेंगे जिसमें ज्वालामुखी किसे कहते हैं। ज्वालामुखी की परिभाषा, ज्वालामुखी के प्रकार, ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ, लावा मैग्मा में अंतर, शांत, सक्रिय, मृत, शील्ड ज्वालामुखी। ज्वालामुखी कैसे फटता है, ज्वालामुखी के अंग, ज्वालामुखी का विश्व वितरण, विश्व के प्रमुख ज्वालामुखी, भारत के प्रमुख ज्वालामुखी, ज्वालामुखी शंकु की आकृति के बारे में विस्तृत अध्ययन करेंगे।
ज्वालामुखी(VALCANO)
ज्वालामुखी पृथ्वी पर एक विवर या छिद्र (opening)अथवा दरार (Repture) है जिसका संबंध पृथ्वी के आंतरिक भाग से पिघला पदार्थ लावा ,राख, गैस व जलवाष्प का उद्गार होता है। ज्वालामुखी क्रिया में पृथ्वी के अंदर से निकले मैग्मा जो कि पृथ्वी के अंदर विभिन्न रूपों में ठंडा हो जाता है। तथा कभी-कभी धरातल पर भी आ जाता है, और ठंडा होकर यह एक रूप धारण कर लेता है।
ज्वालामुखी क्रिया दो रूपों में संपन्न होती है 1
भूगर्भ में /धरातल के नीचे:-
जब ज्वालामुखी का मैग्मा पृथ्वी से बाहर नहीं निकल पाता है। तो वह पृथ्वी के आंतरिक भाग में ही ठंडा होकर जम जाता है इसके फलस्वरुप पृथ्वी के आंतरिक भाग में विभिन्न स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। जो निम्नलिखित है:-
बैथोलिथ(Batholith):-
चट्टानों में जब मैग्मा गुंबदनुमा आकार में जम जाता है। जो कि ठंडा होने की मंदगति होने के कारण बड़े-बड़े रवों के आकार में प्रदर्शित होता है। इस प्रकार से निर्मित चट्टानें ग्रेनाइट प्रकार की होती हैं। इस प्रकार की चट्टानें अपेक्षाकृत अधिक गहराई में निर्मित होती हैं। जब यही मैग्मा अवसादी चट्टानों में अपेक्षाकृत कम गहराई में ठंडा होता है, तो इससे कई प्रकार की स्थलाकृतियां का निर्माण होता है:-
लैकोलिथ(Laccolith):-
जब मैग्मा पृथ्वी के अंदर उत्तल ढ़ाल के आकार में जम जाता है जिसके फल स्वरुप जो आकृति बनती है। उसे लैकोलिथ कहा जाता
लैपोलिथ(Lapolith):-
जब लावा का जमाव अवतल बेसिन के आकार में होता है जिसके फल स्वरुप जो आकृति का निर्माण होता है। उसे लोपोलिथ कहा जाता है।
फैकोलिथ(Phacolith):-
जब लावा का जमाव मोड़दार पर्वतों के अभिनतियो व अपनतियों में अभ्यांतरिक होता है। जिसके कारण बनने वाली आकृति को फैकोलिथ कहा जाता है।
सिल(Sill):-
जब लावा का जमाव क्षैतिज रूप में होता है। तो जो आकृति बनती है उसे सील कहते हैं इसी सिल की पतली परत को शीट कहा जाता है।
डायक(Dayke):-
जब लावा का जमाव लंबवत रूप में होता है। तो जो आकृति बनती है उसे डायक कहते हैं। और डायक के छोटे-छोटे रूप को स्टॉक कहा जाता है।
धरातल के ऊपर:-
इसके अंतर्गत ज्वालामुखी धरातलीय प्रवाह, गर्म जल के स्रोत, गेंसर, धुआंरे आदि आते है।
जब ज्वालामुखी में विस्फोट होता है। और लावा धरातल के ऊपर निकलता है। जिसके फलस्वरुप विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। और इन्हीं आकृतियों के बाहरी भाग पर शंकु का निर्माण होता है। इन्हीं शंकु में ऊपर क्रेटर और काल्डेरा आकृतियों का निर्माण होता है। ज्वालामुखी से निकलने वाले लावा की घटती तीव्रता के आधार पर ज्वालामुखी शंकुओ को निम्नलिखित प्रकारों में बांटा जाता है:-
पीलियन तुल्य
वल्कैनो तुल्य
स्ट्रांबोली तुल्य
हवाईयन तुल्य
पिलियन तुल्य:-
पिलियन तुल्य ज्वालामुखी सबसे विनाशकारी होते हैं। क्योंकि मैग्मा में सिलिका की अधिक मात्रा होने के कारण मैग्मा अत्यधिक अम्लीय और चिपचिपा हो जाता है। जो कि विस्फोट के बाद शंकु पर कठोरता से जम जाता है। इसी कारण अगला विस्फोट इसी जमे लावा को तोड़ते हुए बाहर निकालने के कारण विनाशकारी विस्फोट में तब्दील हो जाता है। जैसे-
पीली (PELEE)ज्वालामुखी………मार्टीनिक द्वीप
क्राकाटाओ -……………………जावा सुमात्रा
माउंट ताल-……………………..फिलिपींस
वल्केनो तुल्य:-
इस प्रकार के ज्वालामुखी अपेक्षाकृत कम विनाशकारी होते हैं। क्योंकि इसमें अम्लीय क्षारीय दोनों प्रकार का मैग्मा निकलता है। इसके साथ-साथ अत्यधिक मात्रा में गैस का उद्धार होता है। जिससे दूर-दूर तक ज्वालामुखी मेंघो का निर्माण होता है। इसकी संरचना फूल गोभी के आकार में प्रदर्शित होती है।
स्ट्राम्बोली तुल्य:-
इस प्रकार के ज्वालामुखी के लावा में अम्ल की मात्रा कम होती है। जिससे लावा में कठोरता या चिपचिपापन नहीं होता है। यदि इससे उत्सर्जित गैसों के मार्ग में कोई रुकावट ना हो तो इसमें विस्फोट की संभावना न के बराबर होती है।
हवाई तुल्य:-
इस प्रकार के ज्वालामुखी का मैग्मा क्षारीय व तरल होता है। तरल होने के कारण मैग्मा दूर-दूर तक फैल जाता है। जिससे शंकु की ऊंचाई कम रहती है। और शंकु की चौड़ाई अधिक होती है। फलस्वरुप इस प्रकार के ज्वालामुखी का उद्गार अत्यंत शांत होता है।
ज्वालामुखी के प्रकार:-
ज्वालामुखियों को निम्नलिखित आधारों पर बनता जा सकता है।
सक्रियता के आधार पर:-
1- सक्रिय ज्वालामुखी(Active Valcano):-
इस प्रकार के ज्वालामुखी से सदैव लावा, धूल, धुआं, वाष्प, राख व गैसों का उद्धार होता रहता है। वर्तमान में संपूर्ण पृथ्वी पर इस प्रकार के ज्वालामुखियों की संख्या 500 से अधिक है। भारत का एकमात्र ज्वालामुखी जो अंडमान निकोबार द्वीप समूह के बैरन द्वीप में स्थित है। सक्रिय ज्वालामुखी की श्रेणी में आता है।
विश्व के प्रमुख सक्रिय ज्वालामुखी:-
•स्ट्रांबोली (भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ)-…………………लिपारी द्वीप सिसली।
एटना-……………………………………. …………इटली
कोटोपैक्सी (विश्व का सबसे ऊंचा सक्रिय ज्वालामुखी)… ………इक्वाडोर
माउंट एर्बुश (अंटार्कटिका का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी)- …….अंटार्कटिक
बैरन द्वीप (भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी)- ……………अंडमान निकोबार भारत
कियालू -……………………………………………….हवाई द्वीप (USA)
लांगिला एवं बागाना – ……………………पापुआ न्यू गिनी समेरू- जावा इंडोनेशिया
मेरापी (सर्वाधिक सक्रिय)- ………………..इंडोनेशिया दुकोनो- इंडोनेशिया
यासुर -…………………………………तान्ना द्वीप (वनुआतू)
मौनोलोवा -……………………………..हवाई द्वीप (USA)
ओजल डेल सालाडो- ……………………..अर्जेंटीना
2- प्रसुप्त ज्वालामुखी (Dormant valcano)
जिन ज्वालामुखियों में वर्षों से विस्फोट या लावा उद्गार नहीं हुआ है। परंतु इस प्रकार की ज्वालामुखी में भविष्य में कभी भी उद्गार होने की संभावना बनी है। प्रसुप्त ज्वालामुखी कहते हैं। जैसे:-
विसुवियस-………………………………. इटली
फ्यूजीयामा- ……………………………….जापान
क्राकाटाओ-………………………………..इंडोनेशिया
नारकोंडम द्वीप में- …………………………..अंडमान निकोबार (भारत)
3-शांत ज्वालामुखी(Extinet Volcano):-
इस प्रकार के ज्वालामुखी में अतीत में कभी उद्गार नहीं हुआ है। और न भविष्य में उद्गार होने की संभावना है।
कोह सुल्तान -……………. ईरान
देवबंद – ………………….ईरान
किलिमंजारो- ……………..तांजानिया
पोपा-…………………… म्यांमार
एकांक गुआ -……………. इंडीज पर्वत श्रेणी
चिंम्बराजो- ……………….इक्वाडोर
केनिया – …………………अफ्रीका
उद्गार के आधार पर:-
उद्गार के आधार पर ज्वालामुखियों को दो भागों में बांटा जा सकता है।
केंद्रीय उद्भेदन:-
इस प्रकार का उद्भेदन विनाशात्मक प्लेटों के किनारो के सहारे होता है। और एक केंद्रीय मुख के द्वारा भयंकर विस्फोट के साथ लावा का उद्भेदन होता है।
पीली ज्वालामुखी-…………………….. पश्चिमी द्वीप
क्राकाटोवा ज्वालामुखी -………………….सुण्डा (जावा सुमात्रा )
माउंट ताल- ……………………………फिलीपाइन
दरारी उद्भेदन:-
इस प्रकार का उद्भेदन रचनात्मक प्लेटों के किनारों से होता है। भूगार्भिक हलचलों के कारण भूपर्पटी की शैलों में दरारें बन जाती हैं। इन्हीं दरारों से लावा प्रवाहित होकर धरातल पर प्रवाहित होकर निकलता है। इसी निकले लावा के कारण पठारों का निर्माण हुआ है।
ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ:-
ज्वालामुखी से उद्गमित होने वाले पदार्थों को तीन भागों में बांटा जा सकता है:-
गैस तथा जलवाष्प:-
ज्वालामुखी उद्गार के समय सबसे पहले गैसे और जलवाष्प बाहर आता है। निकलने वाले पदार्थ में सबसे अधिक जलवाष्प लगभग 60 से 90% होती है। इसके साथ-साथ कार्बन डाइऑक्साइड नाइट्रोजन तथा सल्फर डाइऑक्साइड निकलने वाली प्रमुख गैसें हैं।
विखंडित पदार्थ:-
टफ:-
यह मूलतः धूल और राख से निर्मित चट्टानों के टुकड़े होते हैं।
प्यूमिस:-
ज्वालामुखी से निकलने वाले छोटे-छोटे चट्टानी टुकड़े जिनका घनत्व बहुत कम होता है। इसलिए यह पानी पर तैरते रहते हैं प्यूमिस कहलाते हैं।
लैपिली:-
ज्वालामुखी से निकलने वाले मटर /अखरोट के समान आकार वाले टुकड़ों को लैपिली कहते हैं।
बाम्ब:-
ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ में छोटे-बड़े चट्टानी टुकड़ों को बाम्म कहते हैं। जिनका व्यास कुछ सेंटीमीटर से लेकर फीट तक होता है।
ब्रेसिया:-
ज्वालामुखी से निकलने वाले नुकीले अपेक्षाकृत बड़े आकार के चट्टानी टुकड़ों को ब्रेसिया कहा जाता है।
लावा:-
ज्वालामुखी उद्गार के समय निकालने वाला चिपचिपा द्रव पदार्थ लव कहलाता है।
अम्ल की अधिकता के कारण लावा का रंग पीला हल्का गाढ़ा होता है।
क्षार की अधिकता के कारण लावा का रंग गहरा काला, भारी तथा द्रव के समान होता है।
पायरोक्लास्ट:-
ज्वालामुखी उद्गार के समय सर्वप्रथम भूपटल पर चट्टानों के बड़े-बड़े टुकड़े बाहर निकलते हैं। इन्हीं टुकड़ों को पायरोक्लास्ट कहते हैं। इनके पहले निकलने के कारण ज्वालामुखी पर्वतों की निचली परत में पायरोक्लास्ट पाए जाते हैं।
लावा तथा मैग्मा में अंतर:-
ज्वालामुखी विस्फोट के समय निकलने वाला द्रव पदार्थ जब तक पृथ्वी के आंतरिक भाग अर्थात भूगर्भ में रहता है। तब तक उसे मैग्मा कहा जाता है। जब यही मैग्मा पृथ्वी की सतह पर आ जाता है। तो इसे लावा कहा जाता है।
ज्वालामुखी के अंग:-
ज्वालामुखी उद्गार के समय निकलने वाला लावा विस्फोटित स्थान के आसपास जमा होने लगता है। जिसके परिणाम स्वरुप एक शंकु नुमा आकृति का निर्माण होता है। उसे ज्वालामुखी शंकु कहते हैं। ज्वालामुखी शंकु के आसपास लावा अधिक मात्रा में एकत्रित होने पर पर्वत का रूप धारण कर लेता है। तब इसे ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं। इन पर्वतों के ऊपर बीचो-बीच में गर्तनुमा आकृति का निर्माण होता है। उसे ज्वालामुखी छिद्र कहते हैं। इस ज्वालामुखी छिद्र से नली के रूप में भूगर्भ से संपर्क होने वाली आकृति को ज्वालामुखी नली कहते हैं।
क्रेटर:-
ज्वालामुखी शंकु के ऊपर कीपनुमा रचना को क्रेटर कहते हैं। जब इस क्रेटर में पानी भर जाता है। तो इसे क्रेटर झील कहा जाता है। लोनार झील जो महाराष्ट्र (भारत) में स्थित है। क्रेटर झील का उदाहरण है।
जब ज्वालामुखी में पूर्व में हुए उद्गार से अगला उद्गार कम तीव्रता का होता है। तो मुख्य क्रेटर के ऊपर छोटे-छोटे क्रिएटरों का निर्माण हो जाता है। इस प्रकार की रचना को घोषलाकार क्रेटर कहते हैं। माउंट ताल फिलिपींस इसका उदाहरण है।