लॉर्ड डलहौजी की विलय नीति (1848-1856) Doctrine of Lapse in Hindi / हड़प नीति/व्यपगत का सिद्धान्त

भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार के लिए लॉर्ड डलहौजी की विलय नीति बहुत बड़ी कूटनीतिक चाल थी। गवर्नर लॉर्ड डलहौजी एक बहुत ही कूटनीतिक एवं कार्य कुशलता के लिए प्रसिद्ध गवर्नर जनरल था। वह मात्र 30 वर्ष की आयु में गवर्नर जनरल पद पर नियुक्त किया गया। स्कॉटलैंड के वह एक अमीर पिता का पुत्र था । लॉर्ड डलहौजी की विलय नीति के कारण इसे इतिहास के महान गवर्नरों में शुमार किया जाता है क्योंकि उसने अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया उसने किसी भी अवसर को छोड़ा नहीं जिससे कि अंग्रेजी साम्राज्य में वृद्धि हुई इसके स्थान पर यदि अन्य कोई शायद गवर्नर जनरल होता तो वह कुछ परिस्थितियों मैं राज्यों को हड़पने का कार्य नहीं करते लेकिन इस गवर्नर जनरल ने कुछ भी बहाना मिला उससे उसने अंग्रेजी साम्राज्य का विस्तार किया उसने युद्ध में पंजाब और पीगू (बर्मा) को जीता और अपनी हड़प नीति के द्वारा शांति का प्रयोग करते हुए उसने अवध, सातारा, जैतपुर, झांसी और नागपुर को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाया और उसने आधुनिक भारत के भवन की आधारशिला रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

लॉर्ड डलहौजी की विलय नीति

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लॉर्ड डलहौजी द्वारा जीतकर विलय किए गए राज्य :-

द्वितीय आंग्ल सिख युद्ध और पंजाब का विलय 1849 :-

इस युद्ध की शुरुआत तो अंग्रेज अधिकारी वान्स इग्न्यू और लेफ्टिनेंट एंडरसन की मुल्तान में सिपाहियों द्वारा हत्या कर दिया जाना था। यह संकट मुल्तान के गवर्नर मूलराज के विद्रोह द्वारा उत्पन्न हुआ था। हजारा के सिख गवर्नर ने भी इस समय विद्रोह किया और अपना झंडा फहराया। सिखों ने पेशावर, अफगानिस्तान के अमीर दोस्त मोहम्मद को सौंप दिया और उससे दोस्ती कर ली। बहुत से पंजाबी मूलराज के समर्थन में आ गए इस प्रकार यह एक राष्ट्रीय युद्ध का रूप ले चुका था। लॉर्ड डलहौजी के अनुसार” बिना पूर्व चेतावनी के कारण ही सिखों ने युद्ध की घोषणा कर दी है अतः यह युद्ध करना स्वाभाविक हो गया था और उसने सौगंध ली और कहा कि यह युद्ध प्रतिशोध के रूप में किया जाएगा।”

लार्ड गाॅफ की अधीनता में अंग्रेज सैनिकों ने 16 नवंबर 1848 को सीमा पार की और रामनगर, चिलियांवाला और गुजरात में भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिखों की हार हुई इस अवसर को डलहौजी ने पंजाब के विलय के रूप में परिवर्तित कर दिया। यह कहा गया कि जब तक लोगों के पास युद्ध करने के साधन तथा अवसर है पंजाब में शांति नहीं होगी और उस समय तक भारत में शांति की कोई प्रत्याभूति नहीं होगी। जब तक हम सिखों को पूर्णतया अधीन नहीं कर लेते और इनके राज्य का पूर्णतया अंत नहीं कर देते। इसी के साथ 29 मार्च 1849 को पंजाब के विलय की घोषणा की गई और वहां के महाराजा दिलीप सिंह को पेंशनर बना दिया गया और अंग्रेजों ने शासन संभाल लिया। अंग्रेजों के लिए यह विलय राजनीतिक रूप से उचित और लाभदायक था क्योंकि इससे जो भारत के उत्तरी पश्चिमी सीमा पर दर्रे थे जो उस समय रास्ते के रूप में प्रयोग किए जा रहे थे उन पर अंग्रेजों का अधिकार सुनिश्चित हो गया था। हालांकि डलहौजी के पास इस विलय का कोई वैधानिक और नैतिक अधिकार नहीं था। इस लिए इवैन्ज बैल ने इसे “संगीन विश्वासघात” की संज्ञा दी।

लोअर बर्मा अथवा पीगू का राज्य में विलय (1852) :-

यन्दाबू की संधि (1826) के बाद कुछ अंग्रेज व्यापारी बर्मा के दक्षिणी तट और रंगून में बस गए थे। यह यहां के निवासी रंगून के गवर्नर पर दुर्व्यवहार की शिकायत करते थे। शैम्पर्ड और लुईस नाम के दो अंग्रेज कप्तानों पर बर्मा सरकार ने छोटे से अपराध के लिए भारी जुर्माने लगा दिए थे। अंग्रेजी कप्तानों ने डलहौजी को पत्र लिखा यह पत्र डलहौजी को बहाना बनाने के लिए पर्याप्त था डलहौजी ने ब्रिटिश गौरव और प्रतिष्ठा की रक्षा का दृढ़ संकल्प लिया था। उसके अनुसार उसका मानना था कि “यदि कोई व्यक्ति गंगा नदी के मुहाने पर अंग्रेजी झंडे का अपमान करता है। तो वह वैसा ही है जैसा कि कोई टेम्स नदी के मुहाने पर अपमान करता है।” इस बहाने को अमली जामा पहनाते हुए लॉर्ड डलहौजी ने फॉक्स नाम के युद्धपोत के अफसर काॅमेडोर लैंबर्ट को रंगून भेजा और उससे ब्रिटिश कप्तानों की क्षतिपूर्ति के लिए बातचीत करने और उनसे हर्जाना मांगने को कहा। छोटे से झगड़े को सुलझाने के लिए युद्ध पोतों का भेजना यह प्रदर्शित करता है कि यदि उसकी इच्छा के अनुसार समाधान नहीं किया गया तो युद्ध सुनिश्चित होगा लैंबर्ट ने बर्मा के महाराजा के युद्ध पोतों को पकड़ लिया और भयंकर युद्ध हुआ बर्मा सरकार हार गई। अब लोअर बर्मा को अपने साम्राज्य में विलय करने की घोषणा 20 दिसंबर 1852 को कर दी गई। अंग्रेजी साम्राज्य को इससे अमेरिका और फ्रांस की बढ़ती हुई समुद्रों में शक्ति पर नियंत्रण पाने का रास्ता साफ हो गया था। द्वितीय बर्मा युद्ध के विषय में अर्नाल्ड ने कहा “द्वितीय बर्मा युद्ध ना तो मूलतः और ना ही व्यवहारिक दृष्टि से न्याय पूर्ण था।” उदारवादी नेता कांब्डन और ब्राइट ने इसे एक बहुत “गंभीर पाप” की संज्ञा दी।

सिक्किम का विलय (1850) :-

सिक्किम एक छोटा सा राज्य था। जो नेपाल और भूटान देशों के बीच में स्थित था। वहां के राजा पर या दोष लगाया गया कि उसने दो अंग्रेज डॉक्टरों से दुर्व्यवहार किया है। इसलिए लॉर्ड डलहौजी को अपनी हड़प नीति के तहत बहाना मिल गया और उसने 1850 में सिक्किम के कुछ दूरवर्ती प्रदेश जिनमें दार्जिलिंग भी सम्मिलित था भारत में मिला लिए गए अर्थात अंग्रेजी साम्राज्य में सम्मिलित हो गए।

लार्ड डलहौजी द्वारा शांतिपूर्ण विलय- व्यपगत का सिद्धांत :-

डलहौजी के साम्राज्य विस्तार के कार्य में व्यापक के सिद्धांत की चर्चा न की जाए तो यह अधूरा माना जाएगा इस सिद्धांत के द्वारा डलहौजी ने महत्वपूर्ण रियासतों को अपने साम्राज्य में मिलाया और उसने झूठें रजवाड़ों और कृत्रिम मध्यस्थ शक्तियों द्वारा जो प्रजा की मुसीबतों को बढ़ाने का कार्य कर रहे थे। इस बात का बहाना करके परोक्ष रूप में वह मुगल शक्ति के साम्राज्य को हड़प करना चाहता था और भारतीय राज्य राजवाड़े जो मुगलों के उत्तराधिकारी का दावा कर सकते थे। उस संभवाना को समाप्त करने का कार्य किया उसके अनुसार भारत में तीन प्रकार की रियासतें थी:-

1-ऐसी रियासतें जो पूर्णता स्वतंत्र थी उनमें किसी भी प्रकार का दखल नहीं किया जाएगा।

2-वे रियासतें जो अंग्रेजी शासन के अधीन भी वह बिना गवर्नर जनरल के आदेश से गोद नहीं ली जा सकती थी।

3-वे रियासतें जो अंग्रेजों द्वारा स्थापित की गई या उन पर अंग्रेजों का पूर्ण नियंत्रण था उन्हें गोद लेने की आज्ञा नहीं दी जाएगी।

लॉर्ड डलहौजी ने अपनी नीति का 1854 में पुनरावलोकन करते हुए कहा की प्रथम श्रेणी की रियासतों के गोद लेने के मामलों में हमें हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है।

दूसरी श्रेणी के गोद लेने के लिए रियासतों को हमारी अनुमति अति आवश्यक है। उसने यह भी कहा कि इस प्रकार की रियासतों को हम अनुमति दे सकते हैं और उनको नहीं भी अनुमति देने का अधिकार रखते हैं।

परंतु तीसरी श्रेणी की रियासतों में हमारा विश्वास है कि उत्तराधिकार में गोद लेने की आज्ञा दिया जाना बिल्कुल ही गलत है अतः हम इसकी आज्ञा कभी नहीं देंगे।

लार्ड डलहौजी के द्वारा व्यपगत सिद्धांत के द्वारा विलय किए गए राज्य निम्नवत थे:- सतारा (1848), जैतपुर और संभलपुर (1849), बघाट (1850), उदेपुर (1852), झांसी (1853) और नागपुर (1854) ।

सतारा (1848):-

लॉर्ड डलहौजी के व्यपगत सिद्धांत के अनुसार हड़प किया जाने वाला यह प्रथम राज्य था। यहां के शासक अप्पा साहिब के कोई पुत्र नहीं था। उन्होंने अपनी मृत्यु के पहले कंपनी के अनुमति के बिना एक दत्तक पुत्र बना लिया था। इसी अवसर का लाभ उठाकर डलहौजी ने इस राज्य को आश्रित राज्य घोषित कर इसका विलय अंग्रेजी शासन में कर लिया। इस विलय का समर्थन डायरेक्टरों द्वारा भी किया गया। और उन्होंने इस विलय के बारे में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि हम पूर्णता सहमत हैं और उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारतीय सामान्य कानून और प्रथा के अनुसार सातारा जैसे अधीनस्थ राज्यों को कंपनी की स्वीकृति के बिना दत्तक पुत्र लेने का अधिकार नहीं है। इस विलय के विरोध में जोसेफ ह्यूम ने कामन्स सभा में इसकी तुलना “जिसकी लाठी, उसकी भैंस” के रूप में की।

संभलपुर (1849):-

उड़ीसा में स्थित इस राज्य का शासक नारायण सिंह था।नारायण सिंह का कोई पुत्र नहीं था और वह कोई दत्तक पुत्र भी नहीं बना सके। इस अवसर का लाभ उठाकर 1849 संभल का विलय अंग्रेजी साम्राज्य में कर लिया गया।

जैतपुर (1849):-

जैतपुर मध्य प्रदेश में स्थित एक रियासत थी जिसका सतारा रियासत की तरह कोई दत्तक उत्तराधिकारी नहीं बनाया जा सका। इस आधार पर जैतपुर का भी विलय कर लिया गया।

बघाट (1850):-

यह रियासत पंजाब में स्थित थी। जिसका विलय 1850 में अंग्रेजी शासन द्वारा कर लिया गया । लेकिन बाद में 1857 की क्रांति में यहां के राजा ने अंग्रेजी सत्ता का समर्थन किया और उनका सहयोग किया। इस कारण कैनिंग ने यहां के राजा की राज भक्ति देख कर इसे पुनः वापस कर दिया था |

उदेपुर (1852):-

यह रियासत मध्य प्रदेश में स्थित थी। इसका विलय हड़प नीति के द्वारा 1852 में कर लिया गया परंतु बाद में कैनिंग द्वारा बघाट रियासत की तर्ज पर इसे वहां के शासक को वापस कर दिया गया।

झांसी (1853):-

इस रियासत के राजा गंगाधर राव को उत्तराधिकार के आधार पर कंपनी ने शासक स्वीकार कर लिया लेकिन नवंबर 1853 में गंगाधर राव बिना पुत्र के स्वर्ग सिधार गए। उनकी विधवा लक्ष्मीबाई को डलहौजी ने पुत्र गोद लेने की अनुमति नहीं दी।
उत्तराधिकारी न होने के आधार पर झांसी रियासत का विलय कर लिया गया।

नागपुर (1854):-

1817 में लॉर्ड हेस्टिंग्ज द्वारा नागपुर रियासत का उत्तराधिकारी भोंसले परिवार के एक बच्चे राघू जी तृतीय को स्वीकार कर लिया गया था। 1853 में राजा का बिना दत्तक पुत्र को गोद लिए ही निधन हो गया। लेकिन उसने रानी को पुत्र गोद लेने को कह दिया था । जब रानी ने पुत्र गोद लेने का प्रस्ताव किया तो कंपनी में अस्वीकार कर दिया और राज्य का विलय कर लिया गया। इस विलय का अवसर उठाकर कंपनी ने रानियों के आभूषण और राजमहल के सामान को बेचकर लगभग 2 लाख पौंड की धनराशि प्राप्त की ।

अवध का विलय (1856):-

अवध के विलय का मुख्य कारण केवल वहां का कुशासन माना गया लेकिन इस कुशासन को देखा जाए तो मुख्य कारण अंग्रेज स्वयं ही थे। लॉर्ड डलहौजी ने इस रियासत के विलय की योजना बहुत ही कूटनीतिक तरीके से बनाई ,उसने अपने ही अधिकारियों को अवध में जांच करने के लिए भेजा और उन अधिकारियों द्वारा अवध में कुशासन के विषय को वरीयता पूर्वक बढ़ा चढ़ा कर लंदन भेज दिया गया। और वहां की गृह सरकार से अवध के विलय की अनुमति प्राप्त कर ली गृह सरकार और ब्रिटिश जनमत तैयार करने के बाद डलहौजी ने बड़ी आसानी से यह कार्य कर दिया। अवध को लॉर्ड डलहौजी ने “दुधारू गाय” की संज्ञा दी थी । इसी कारण बहुत ही सुनियोजित तरीके से लंदन से जांच कमेटी बनवा कर 1854 मे आउट्रम को स्लीमैन के स्थान पर भेजा गया। इसकी रिपोर्ट के आधार पर नवाब वाजिद अली शाह को गद्दी से हटाकर अवध का विलय कर लिया गया।

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हड़प्पा कालीन प्रमुख नगर

हड़प्पा कालीन प्रमुख नगर
हड़प्पा संस्कृति का विस्तार उत्तर में माण्डा चिनाव नदी के तट पर जम्मू कश्मीर, दक्षिण में दैमाबाद गोदावरी नदी के तट पर, पश्चिम में सुत्कागेण्डोर दाश्क नदी के तट पर, पूर्व में आलमगीरपुर हिण्डन नदी के किनारे मेरठ उत्तर प्रदेश तक होने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
हड़प्पा कालीन प्रमुख नगरों में केवल 7 नगरों को ही नगर माना गया है वैसे देखा जाए तो लगभग 1500 स्थलों की खोज की जा चुकी है। सात नगर निम्नवत् हैं:-

हड़प्पा

पंजाब प्रांत (पाकिस्तान) के मांण्टगोमरी जिले में रावी नदी के बाएं तट पर स्थित है। •इसकी खोज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जान मार्शल के निर्देश पर 1921 ईस्वी में दयाराम साहनी द्वारा की गई।
•यह स्थल सिंधु घाटी सभ्यता का क्षेत्रफल की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा स्थल है यहां AB और F नाम के दो टीले हैं AB टीले पर दुर्ग बना है तथा दुर्ग के बाहरी टीले को F नाम दिया गया।
•F नाम के टीले पर अन्नागार, श्रमिक आवास और अनाज कूटने के लिए गोलाकार चबूतरो के साक्ष्य मिले हैं अर्थात इनसे यह स्पष्ट होता है कि यह जनसाधारण के निवास की जगह थी AB टीले पर दुर्ग होने से स्पष्ट होता है कि यहां प्रशासक वर्ग के व्यक्तियों का निवास स्थल था।
• हड़प्पा नगर क्षेत्र के दक्षिण में एक कब्रिस्तान मिला जिसे समाधि r37 नाम दिया गया।
•1934 ईस्वी में प्राप्त समाधि का नाम समाधि H रखा गया।
यहां से पत्थर से बनी लिंग योनि की संकेतात्मक मूर्ति, विशाल अन्नागार, मातृ देवी चित्र, सोने की मोहर, सवाधान पेटिका, गेहूं जौ के दाने, मृदभाण्ड उद्योग के साक्ष्य, 16 भठ्ठियां, धातु बनाने की एक मूषा मिली है जिससे ताम्रकार होने के साक्ष्य।

मोहनजोदड़ो

•यह स्थल लरकाना जिला सिंध प्रांत पाकिस्तान में सिंधु नदी के दाहिने तट पर स्थित था।
•यह स्थल हड़प्पा सभ्यता की राजधानी माना जाता है।
•यह क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा नगर था।
•मोहनजोदड़ो का अर्थ- प्रेतों का टीला तथा इसे सिन्धु बाग भी कहा जाता है।
•इस स्थल की खोज राखलदास बनर्जी ने 1922 में की थी।
•यहां सबसे महत्वपूर्ण वस्तु विशाल स्नानागार है जो 11.88 मीटर लंबा 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा था। फर्श पक्की ईंटों से निर्मित दोनों सिरों पर सीढ़ियां थी इसमें पानी भरने व निकालने का उचित प्रबंध किया गया था।
•विशाल स्नानागार का उपयोग धर्म अनुष्ठानों संबंधी स्नान के लिए होता था। इसको मार्शल द्वारा तत्कालीन विश्व का आश्चर्यजनक निर्माण बताया गया है।
•स्नानागार के अतिरिक्त निम्न वस्तुओं की प्राप्ति हुई:-
अन्नागार:
अन्नागार या अन्नकोठार इसकी लंबाई 45.71 मीटर तथा 15.23 मीटर चौड़ाई थी। व्हीलर के अनुसार मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत थी।
सभा भवन:
27×27 मीटर वर्गाकार दुर्ग के दक्षिण में अवस्थित भवन था।
पुरोहित आवास:
इसकी लंबाई 70× 23.77 मीटर स्नानागार के उत्तर पूर्व में स्थित भवन था। उक्त के अलावा खोचेदार नालियां, नर्तकी की मूर्ति (कांस्य) पशुपति मुहर, मकानों में खिड़कियां, मेसोपोटामिया की मोहर आदि।
•यहां के पूर्वी किले के HR क्षेत्र से कांसे की नर्तकी की मूर्ति तथा 21 मानव कंकाल प्राप्त हुए।
•पिग्गट महोदय द्वारा हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो को सिंधु सभ्यता की जुड़वा राजधानी कहा गया है।

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चन्हूदडो

•सिंधु नदी के बाएं तट पर स्थित इस नगर की खोज एन.जी. मजूमदार द्वारा 1931 ईस्वी में की गई।
•यहां झूंकर संस्कृति तथा झांगर संस्कृति का विकास हुआ।
•मनके बनाने का कारखाना यहीं से प्राप्त हुआ जिसकी खोज मैके द्वारा की गई।
•तीन घड़ियाल तथा दो मछलियों की बनी आकृति वाली मुद्रा यहीं से प्राप्त हुई।
•यहां वक्राकार ईटों का प्रयोग किया गया।
•कुत्ते द्वारा बिल्ली का पीछा करते पंजों के निशान ईटों पर प्राप्त हुए।
•लिपस्टिक, काजल, उस्तरा, कंघा आदि यहां से वस्तुएं प्राप्त हुई।

लोथल

•इस स्थल की खोज 1954 में एस. आर. राव द्वारा की गई जिसे लघु हड़प्पा या लघु मोहनजोदड़ो कहा जाता है।
•यह स्थल भोगवा नदी के किनारे अहमदाबाद (गुजरात) में स्थित था।
•लोथल से एक गोदीवाड़ा (पत्तन) का साक्ष्य प्राप्त हुआ।
•यहां से प्राप्त तीन युग्मित समाधियो से सती प्रथा का अनुमान लगाया जाता है।
•यहां से अग्निकुंड, मनके बनाने का कारखाना तथा 126 मीटर× 30 मीटर भवन प्राप्त हुआ। जिसे प्रशासनिक भवन की संज्ञा दी गई।

 कालीबंगा

•कालीबंगा राजस्थान के गंगानगर जिले में घग्गर नदी के तट पर स्थित है।
•कालीबंगा का अर्थ- काली रंग की चूड़ियां।
•यह हड़प्पा सभ्यता का एकमात्र ऐसा नगर है जहां ऊपरी और निचले दोनों स्थान दुर्गीकृत हैं।
•इस नगर की खोज अमलानंद घोष द्वारा 1951 में की गई थी।
•यह नगर सरस्वती (आधुनिक नाम घग्घर) दृष्द्वती नदी के मध्य स्थित है।
•कालीबंगा में चूड़ी निर्माण उद्योग, शल्य चिकित्सा, गोलाकार कब्र, कांस्य उद्योग के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
•यहां हल से जूते खेत का साक्ष्य सबसे महत्वपूर्ण है।
•यहां अंत्येष्टि संस्कार पूर्ण समाधिकरण, दाह संस्कार एवं आंशिक समाधिकरण द्वारा किए जाने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
•एक युगल समाधान प्राप्त तथा बच्चे की खोपड़ी में 6 छिद्र होना शल्य चिकित्सा होने का प्राचीनतम साक्ष्य माना गया है।
•यहां से आबादी के बड़े स्तर पर पलायन होने तथा भूकंप के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए।

 बनवाली

•बनवाली भारत के हरियाणा के फतेहाबाद जिले में सरस्वती नदी के किनारे स्थित था।
इसकी खोज आर.एस. विष्ट द्वारा 1974 में की गई।
•यहां से बैलगाड़ी के पहिए, जौ का उपयोग, अग्नि वेदिका, मिट्टी के हल की प्रतिकृति तथा सीधी सड़क होने के साक्ष्य प्राप्त हुए।
•यहां अग्निवेदियों के साथ अर्द्ध वृत्ताकार ढांचे प्राप्त होने से कुछ विद्वान इन्हें मंदिर होने का प्रमाण की संभावना व्यक्त करते हैं।

धौलावीरा

•यह नगर गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालुका में लूनी- जोजरी लाइन के मध्य खादिर नामक द्वीप पर स्थित है।
•इसकी खोज श्री जे.पी. जोशी द्वारा सन 1967-68 में की गई।
•यहां से विशाल बांध उच्च जल प्रबंधन, मनहर -मनसर तालाब, दीवार पर लिखा सबसे बड़ा लेख आदि साक्ष्य प्राप्त हुए।
•यह भारत में स्थित सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा नगर था।
•सिंधु सभ्यता का एकमात्र क्रीडागार (स्टेडियम) तथा नेवले की पत्थर की मूर्ति यहां से प्राप्त हुई।
•यहां से पॉलीशदार श्वेत पाषाण के टुकड़े बड़ी मात्रा में मिले।

कर्नाटक युद्ध (लगभग 20 वर्ष तक )

 प्रथम कर्नाटक युद्ध (1740 से 1748 ई.तक)

•कर्नाटक युद्ध यूरोप में गठित घटनाक्रम के तहत ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकारी युद्ध का मात्र एक विस्तार था।

•1740 ईस्वी में फ्रांसीसी तथा अंग्रेज मेरिया थरेसा के उत्तराधिकार को लेकर आपस में झगड़ रहे थे।

•फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले ने भारत में शांति बनाने रखने की बहुत कोशिश की लेकिन युद्ध की पहल अंग्रेजों की तरफ से की गई।

•यह युद्ध प्रत्यक्ष रूप से कर्नाटक के नवाब पद के उत्तराधिकार का संघर्ष दिख रहा था लेकिन अप्रत्यक्ष रूप में इसमें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी तथा फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी लड़ रही थी।

•इस समय पांडिचेरी का फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले था तथा मद्रास का अंग्रेज गवर्नर मोर्स था।

•युद्ध की पहल बारनैट के नेतृत्व में अंग्रेजी नौसेना ने कुछ फ्रांसीसी जलपोत पकड़कर की।

•फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन से अपने जहाजों की सुरक्षा के लिए निवेदन किया लेकिन अंग्रेजों ने नवाब की बात को भी नजरअंदाज कर दिया।

•फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले युद्ध के पक्ष में नहीं था इसलिए उसने कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन तथा अंग्रेज गवर्नर मोर्स दोनों से युद्ध ना होने देने का प्रस्ताव रखा।

• डुप्ले ने कूटनीतिक सहारा लिया और मॉरीशस के फ्रांसीसी गवर्नर ला बूर्डोने से सहायता मांगी जो अपने 3000 सैनिकों के साथ आकर मद्रास पर अधिकार कर लिया।

•इस दौरान डुप्ले और ला बूर्डोने दोनों के बीच मतभेद हो गया तो ला बूर्डोने ने 4 लाख पौंड की रिश्वत अंग्रेजों से लेकर मद्रास उन्हें सौंप दिया।

•ला बोर्डोने के मॉरीशस जाने के बाद डुप्ले ने मद्रास पर फिर अधिकार कर लिया।

•फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले ने यह कहकर कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन को अपने पक्ष में कर लिया था कि मद्रास को जीतने के बाद उसे सौंप देंगे लेकिन डुप्ले ने ऐसा नहीं किया। फलस्वरूप युद्ध अवश्यंभावी हो गया था।

•1748 ईसवी में कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन के पुत्र महफूज खां एक विशाल सेना लगभग 10 हजार सैनिक लेकर अडयार के समीप डुप्ले की कूटनीतिक चाल से ओतप्रोत कैप्टन पैराडाइज के अधीन एक छोटी सी फ्रांसीसी सेना जिसमें लगभग 230 फ्रांसीसी सैनिक और लगभग 700 भारतीय सैनिक थे महफूज खां की सेना को पराजित किया।

•इस युद्ध को सेंटथोमे का युद्ध भी कहा जाता है।

•इस जीत से यह स्पष्ट हो गया कि घुड़सवार सेना की अपेक्षा तोपखाना श्रेष्ठ है तथा अनुशासनहीन बड़ी सेना पर अनुशासित छोटी सेना भारी पड़ी।

•नवाब की सेना और मद्रास को परास्त करने के बाद फ्रांसीसियों में नई ऊर्जा का उद्भव हुआ और उन्होंने पांडिचेरी के दक्षिण में स्थित अंग्रेजों की एक बस्ती फोर्ट सेंट डेविड पर अधिकार करने का प्रयास किया किंतु लगभग डेढ़ सालों के घेरे के बाद भी असफल रहे।

•कुछ समय पश्चात इंग्लैंड से भारत में अंग्रेजों की सहायता के लिए सेना पहुंच गई सहायता मिलने की बाद अंग्रेजों ने पांडिचेरी का घेरा डाला परंतु वह उस पर अधिकार करने में असफल रहे और पुनः फोर्ट सेंट डेविड मे वापस आ गए।

•1748 ई. में यूरोप में अंग्रेज और फ्रांसीसियो के बीच एक्स-ला-शापेल की संधि हुई जिसके तहत यूरोप में युद्ध समाप्त हो गया इस संधि से मद्रास अंग्रेजों को तथा अमेरिका में लुईसबर्ग फ्रांसीसियों को वापस मिल गए इस तरह युद्ध के प्रथम दौर में दोनों दल बराबर रहे ।

•पहले कर्नाटक युद्ध का कोई तात्कालिक राजनीतिक प्रभाव भारत में नहीं पड़ा न तो इस युद्ध से फ्रांसीसी को कोई लाभ हुआ और ना ही अंग्रेजों को।

•इस युद्ध में भारतीय राजाओं की कमजोरियों को उजागर किया, और जल सेना का महत्व बड़ा अर्थात यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि भारतीय सेना यूरोपीय सेना से स्पष्ट रूप से कमजोर हो गई थी।

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द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749-54)

•डुप्ले की राजनैतिक चाहत और चरम पर पहुंच गई क्यों कर्नाटक के प्रथम युद्ध मे उसने अपने राजनैतिक, कूटनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में कुछ सीमा तक सफल रहा।

•उसके द्वारा भारतीय राजवंशों के परस्पर झगड़ों में भाग लेकर अपने राजनीतिक प्रभाव को और प्रसारित करने के उद्देश्य से वहां कूटनीतिक रूप से अग्रसर हुआ।

•यह एक अच्छा अवसर था यूरोपीय शक्तियों के लिए क्योंकि भारतीय राजवंशों में उत्तराधिकार के लिए विवाद उत्पन्न हो रहे थे। इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए यूरोपीय शक्तियां तैयार थी।

•यूरोपियों को यह अवसर हैदराबाद तथा कर्नाटक के सिंहासनों के विवादास्पद उत्तराधिकार के कारण जल्द ही प्राप्त हुआ।

आसफजाह का 21 मई 1748 को स्वर्गवास हो गया उसका पुत्र नासिर जंग उत्तराधिकारी बना। परंतु उसके भतीजे (आसफजाह के पौत्र) मुजफ्फर जंग ने इसका विरोध किया।

•दूसरी तरफ कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन और उसके बहनोई चंदा साहिब के बीच मतभेद था। यह दोनों विवाद एक बड़े विवाद में परिवर्तित हो गए।

•अवसर का फायदा उठाने हेतु डुप्ले ने मुजफ्फर जंग को दक्कन की सुबेदारी तथा चंदा साहिब को कर्नाटक की सुबेदारी सौपने का समर्थन करने की बात की किन्ही कारणों से अंग्रेजों को नासिरजंग तथा अनवरुद्दीन का साथ देना पड़ा।

•अगस्त 1749 को बिल्लौर के समीप अंबूर के स्थान पर मुजफ्फरजंग, चंदा साहिब तथा फ्रेंच सेनाओं ने अनवरुद्दीन को हराकर मार दिया।

•डुप्ले को यह कूटनीतिक अद्वितीय सफलता प्राप्त हुई।

•दिसंबर 1750 में नासिर जंग एक युद्ध में मारा गया मुजफ्फर जंग दक्कन का सूबेदार बना और उसके द्वारा फ्रांसीसियों को बहुत से उपहार भेंट किए गए डुप्ले को कृष्णा नदी के दक्षिण भाग में मुगल प्रदेशों का गवर्नर नियुक्त कर दिया।

•मुजफ्फर जंग के आग्रह पर एक फ्रांसीसी सेना की टुकड़ी बुस्सी की अध्यक्षता में हैदराबाद में तैनात कर दी गई।

•डुप्ले की इच्छा अनुसार 1751 में चंदा साहिब कर्नाटक के नवाब बनाए गए। डुप्ले का यह समय राजनैतिक शक्ति की चरम स्थिति थी।

•फ्रांसीसियो का विरोध होना स्वाभाविक था स्वर्गीय अनवरुद्दीन के पुत्र मुहम्मद अली त्रिचनापल्ली में शरण लिए था फ्रांसीसी तथा चंदा साहेब दोनों मिलकर भी त्रिचनापल्ली के दुर्ग को जीतने में असफल रहे अंग्रेजों की स्थिति इस फ्रांसीसी विजय से कमजोर हो गई थी।

•त्रिचनापल्ली के फ्रांसीसी घेरे को तोड़ने में असफल रहा। क्लाइव त्रिचनापल्ली पर दबाव कम करने के लिए कर्नाटक की राजधानी अर्काट को 210 सैनिकों की सहायता से जीत लिया।

•अर्काट को पुनः जीतने के लिए चंदा साहिब में 4000 सैनिक भेजें जो अर्काट को पुनः प्राप्त नहीं कर सके।क्लाइव ने 53 दिन तक इस सेना का सामना किया।

•फ्रांसीसियो पर इस हार का गहरा प्रभाव पड़ा 1752 में स्टैंगर लारेंस के नेतृत्व में एक अंग्रेजी सेना ने त्रिचनापल्ली को बचा लिया तथा जून 1752 में डेरा डालने वाली फ्रांसीसी सेना ने अंग्रेजों के आगे हथियार डाल दिए। चंदा साहिब की भी धोखे से तंजौर के राजा ने हत्या कर दी।

•त्रिचनापल्ली में फ्रांसीसियों की हार से डुप्ले का पतन होना प्रारंभ हो गया फ्रांसीसी कंपनी के डायरेक्टरों ने इस युद्ध की पराजय से हुई धन हानि के लिए डुप्ले को वापस बुला लिया।

•डुप्ले के स्थान पर 1754 में गोडेहू को भारत में फ्रांसीसी प्रदेशों का गवर्नर जनरल बनाया गया तथा डुप्ले को उसका उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया ।

1755 में पांडिचेरी की संधि फ्रांसीसी कंपनी एवं अंग्रेजी कंपनियों के बीच एक अस्थाई संधि हुई।

•अंग्रेजों की सहायता से मुहम्मद अली कर्नाटक का नवाब बनाया गया परंतु हैदराबाद में अभी भी फ्रांसीसी डटे हुए थे तथा उन्होंने सूबेदार सालारजंग से और अधिक जागीर प्राप्त कर ली।

•कर्नाटक के द्वितीय युद्ध में फ्रांसीसियो को कुछ स्तर तक हानि पहुंची तथा अंग्रेजों की स्थिति में मजबूत हुई।

कर्नाटक का तृतीय युद्ध (1756-63 ई. तक)

•यह युद्ध भी यूरोपीय संघर्ष का ही भाग था।

•पांडिचेरी की संधि (1755) अस्थाई थी क्योंकि इस संधि का समर्थन दोनों देशों की सरकारों द्वारा किया जाना था परंतु 1756 ईस्वी में यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध प्रारंभ हो गया इसी कारण अंग्रेज और फ्रांसीसी एक दूसरे के विरोध में आ गए।

•फ्रांसीसी सरकार में अप्रैल 1757 में काउंट डी लाली को भारत भेजा। अप्रैल 1758 में भारत पहुंचा।

•इसी दौरान अंग्रेजों द्वारा सिराजुद्दौला को हराकर पश्चिम बंगाल पर अधिकार स्थापित कर चुके थे जिससे अंग्रेजों को अपार धन मिला। इसी धन का उपयोग करके अंग्रेजों द्वारा फ्रांसीसी यों को दक्कन में पराजित करने में सफलता प्राप्त हुई।

•काउंट डी लाली के भारत आने के उपरांत वास्तविक युद्ध आरंभ हुआ जिसके द्वारा फ्रांसीसी प्रदेशों को सैनिक हथियारों से युक्त अधिकारी नियुक्त किया तथा लाली ने 1758 ईस्वी में फोर्ट सेंट डेविड जीत लिया।

•फोर्ट सेंट डेविड की जीत से उत्साहित काउंट डी लाली द्वारा तंजौर पर आक्रमण किया गया क्योंकि उस पर 56 लाख रुपए बकाया था। परंतु यह अभियान असफल रहा इसके कारण फ्रांसीसियों की ख्याति को काफी नुकसान हुआ।

•इसी दौरान लाली द्वारा बुस्सी को हैदराबाद से वापस बुलाना उसकी सबसे बड़ी भूल थी इसके कारण फ्रांसीसियों की स्थिति और कमजोर हो गई।

•इसी समय पोकांक के नेतृत्व में अंग्रेजी बेड़े ने डआश के नेतृत्व वाली फ्रांसीसी सेना को तीन बार पराजित किया और उसे भारतीय सागर से वापस जाने पर मजबूर कर दिया।

1760 में वाण्डियावाश के स्थान पर अंग्रेज और फ्रांसीसियों के बीच निर्णायक लड़ाई लड़ी गई अंग्रेज सेना का नेतृत्व आयरकुट तथा फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व काउंट लाली द्वारा किया जा रहा था इसमें काउंट लाली बुरी तरह पराजित हुआ। यह युद्ध वाण्डियावाश का युद्ध (22 जनवरी 1760 ई.) के नाम से जाना जाता है।
फ्रांसीसी बुस्सी को अंग्रेजों द्वारा युद्ध बंदी बना लिया गया।

•फ्रांसीसियो की जनवरी 1761 की पराजय ने इनको पांडिचेरी लौटने पर मजबूर कर दिया अंग्रेजों द्वारा पांडिचेरी को भी जीत। लिया गया तथा फ्रांसीसियों ने इसे भी अंग्रेजों को सौंप दिया इसी दौरान शीघ्र ही माही और जिंजी भी उनके हाथ से निकल गए अर्थात अब फ्रांसीसी पूरी तरह से पराजित हो चुके थे।

•1763 में अंग्रेजों और फ्रांसीसियो के बीच पेरिस की संधि पर हस्ताक्षर होते हैं जिसके फलस्वरूप सप्तवर्षीय युद्ध समाप्त हो जाता है।

•अंग्रेजों द्वारा फ्रांसीसियों को उनके सारे कारखाने वापस कर दिए गए लेकिन उनको किलेबंदी तथा सैनिक रखने का अधिकार नहीं दिया गया अब वह सिर्फ व्यापार कर सकते थे।

कर्नाटक का तृतीय युद्ध अंततः निर्णायक सिद्ध हुआ जिसके फलस्वरूप भारत में फ्रांसीसियो का साम्राज्य पूरी तरह से नष्ट हो गया था।

फ्रांसीसी भारत में अब केवल व्यापारी बन के रह गए थे।

 भारत में यूरोपियों का आगमन (1448 ई. -1664 ई. तक )

भारत में यूरोपियों का आगमन व्यापार के लिए हुआ था,लेकिन परिस्थितियों को देखकर वह यहाँ  की राजनीति में उलझ कर सत्ता हासिल करने में लग गये |आख़िरकार सत्ता अग्रेजो के हाथ लगी |बाकी पुर्तगाली,डच,डेन,फ्रांसिसी कंपनियों को वापस लौटना पड़ा |
पुर्तगाली
केप आफ गुड होप होकर वास्कोडिगामा 17 मई 1498 में कालीकट पहुंचा।
पुर्तगाली आए थे व्यवसाय करने लेकिन उनका छुपा एजेंडा ईसाई मत का प्रचार- प्रसार करना था। उस समय वह अपने प्रतिस्पर्धी अरबों को बाहर खदेड़ कर व्यापार पर एकाधिकार करना चाहते थे।
पुर्तगालियों की भारत में स्थिति मजबूत होने के कारण पुर्तगाल के शासक मैनुअल प्रथम ने 1501 में अरब फारस और भारत के साथ व्यापार का स्वयं को मालिक घोषित कर दिया।
पुर्तगालियों के समय भारत की स्थिति

गुजरात को छोड़कर शक्तिशाली महमूद बेगड़ा का शासन था।
ढक्कन में बहमनी राज्य जो छोटी-छोटी शक्तियों में विभाजित था।
भारतीय सभी शक्तियां नौसैनिक शक्तिहीन थी।
राजकुमार हेनरी पुर्तगाल का नाविक ने अपना पूरा जीवन भारत को जाने वाले समुद्री मार्ग की खोज …

 भारत में पुर्तगाली साम्राज्य का सूत्रपात

1505 में फ्रांसीस्को डी अल्मेडा गवर्नर नियुक्त। जिसने ब्लू वाटर पॉलिसी /शांत जल की नीति का अनुकरण किया।
मिश्र ने पुर्तगालियों को रोकने के लिए लाल सागर में अपनी चौकसी बढ़ा दी। डीअल्मेडा को उत्तरी अफ्रीका में मूर से युद्ध करना पड़ा।
अल्फांसो डी अल्बुकर्क (1509-15)
1503 में अल्बूकर्क स्क्वैडेन कमांडर के रूप में भारत आया तथा 1509 में वायसराय नियुक्त हुआ जो पुर्तगाली साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
1510 ईसवी में बीजापुर से गोवा छीना तथा दमन, राजौरी और दाभोल के बंदरगाहों पर कब्जा किया।
इसमें हिंदू महिलाओं के साथ विवाह की नीति अपनाई।
1511 में मलक्का पर पुर्तगालियों का प्रभुत्व स्थापित हुआ।
1532 में दीव पर प्रभुत्व स्थापित।

 पुर्तगालियों का व्यापार पर प्रभुत्व

नागापट्टनम पुर्तगालियों का प्रमुख बंदरगाह था।
सैनथोम (मैलपुर) में पुर्तगालियों की बस्ती थी।
महमूद शाह (बंगाल का शासक) द्वारा 1536 में चटगांव और सतगांव में फैक्ट्री खोलने की अनुमति।
अकबर की अनुमति से हुगली और शाहजहां के फरमान से बुंदेल में कारखाने स्थापित।
कार्टेज व्यवस्था
इस व्यवस्था के तहत भारतीय जहाजों के कप्तानों को गोवा के वायसराय से लाइसेंस या पास लेना पड़ता था। जिससे पुर्तगाली भारतीय जहाजों पर हमला नहीं करते थे अन्यथा उसे लूट लेते थे।

वेडोर दा  फजेंडा

यह राजस्व तथा कार्गो एवं नौसैनिक बेड़ा भेजने के लिए जिम्मेदार होता था।

वायसराय नीनो दा कुन्हा : (1529 -38)

नवंबर 1529 में कार्यभार संभाला।
1530 में मुख्यालय कोचीन से गोवा ले गया।
बहादुर शाह ने (गुजरात का शासक) मुगल शासक हुमायूं से अपने संघर्ष के दौरान पुर्तगालियों को 1534 में बेसिक द्वीप सौपकर मदद ली।
1536 में हुमायूं के गुजरात से जाने के बाद पुर्तगालियों एवं बहादुर शाह के संबंध बिगड़ गए तथा शाह को जहाज पर बुलाकर मार दिया गया।

 अकबर एवं पुर्तगाली:

1572 कैम्बे के दौरे पर अकबर की मुलाकात पुर्तगाली व्यापारियों से हुई।
फादर जूलियन परेरा विकार (चर्च में पुजारी) से ईसाई धर्म का ज्ञान प्राप्त किया।
1578 में अकबर के समय एंटोनियो केबरेल ने मुगल राजधानी का दौरा किया। अकबर को संतुष्ट नहीं कर सका।
अकबर द्वारा धर्म मीमांसा के रूप में 28 फरवरी 1580 को दो पादरी रोडक्लफो एक्वाविवा और एंटोनियो मांसरेट फतेहपुर सीकरी पहुंचे।

कैप्टन हॉकिंस की यात्रा:

1608 में हॉकिंस इंग्लैंड के सम्राट जेम्स प्रथम द्वारा व्यापार में अनुमति हेतु जहांगीर के नाम प्रार्थना पत्र लाया।
फादर पीनेहेरो व पुर्तगाली अधिकारियों ने हॉकिंस को मुगल दरबार में जाने से रोकने का प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हो सके।
हॉकिंस तुर्की भाषा का अच्छा ज्ञाता था। उसने इसी भाषा में जहांगीर से संवाद किया जहांगीर ने खुश होकर उसे 30,000 के वेतन पर 400 का मनसबदार नियुक्त किया।
हॉकिंस ने आर्मेनियन ईसाई मुबारक शाह की बेटी से विवाह भी किया।

 कॉटेज आर्मेडा काफिला व्यवस्था:

कार्टेज / परमिट अरब सागर में परिवहन के लिए आवश्यक था।
सागर का स्वामी पुर्तगाली अपने को कहते थे।
सम्राट अकबर ने निशुल्क कार्टेज प्राप्त किया।

 पुर्तगाली प्रभुत्व का पतन:

धार्मिक असहिष्णुता।
चुपके चुपके व्यापार करना।
ब्राजील की खोज के कारण उपनिवेश संबंधी क्रियाशीलता पश्चिम की ओर उन्मुख होना।

 पुर्तगाली अधिपत्य का परिणाम:

धर्म परिवर्तन को बढ़ावा दिया।
1540 में गोवा के मंदिर नष्ट करना।
1560 में गोवा में धर्म न्यायालय की स्थापना।
1542 ईसवी पुर्तगाली गवर्नर मार्टिन डिसूजा के साथ प्रसिद्ध ज्यूस संत जेवियर भारत आया।
पुर्तगाली मध्य अमेरिका से तंबाकू, आलू और मक्का भारत लाए।
प्रिंटिंग प्रेस (छपाई )की शुरुआत।
अनन्नास, पपीता, बादाम, काजू, मूंगफली, शकरकंद, काली मिर्च, लिची और संतरा पुर्तगालियों की ही देन है।

 डच

नीदरलैंड या हालैंड के निवासी थे।
1595-96 में कार्नेलियस हाउटमैन के नेतृत्व में पहला डच अभियान भारत आया।
1602 यूनाइटेड ईस्ट इंडिया कंपनी ऑफ नीदरलैंड की स्थापना। जिसका मूल नाम v.o.c. (Vereenigde Oost Indische Compagnic) था।
1605 ईस्वी में डचों ने पुर्तगीजो से अंबायना ले लिया तथा धीरे-धीरे मसाला द्वीप पुंज (इंडोनेशिया) में पुर्तगीज को हराकर अपना प्रभाव स्थापित किया।
जकार्ता जीतकर 1619 में बैटेविया नामक नगर बसाया।
1605 में मसूलीपट्टनम में प्रथम डच फैक्ट्री की स्थापना।
दूसरी फैक्ट्री पेत्तोपोली (निजामपत्नम) में स्थापित।
पुलीकट में स्थापित फैक्ट्री को अपना मुख्यालय बनाया। जो 1610 में चंद्रगिरी के राजा से समझौता करके यहां अपने स्वर्ण पगोड़ा सिक्के ढालें।
फैक्ट्रियों की स्थापना
1605 में मसूलीपट्टनम (प्रथम) पेत्तोपोली (दूसरी ) 1610- पुलीकट (मुख्यालय बनाया) स्वर्ण पैगोडा सिक्के ढालें। 1616- सूरत 1641 – बिमलीपत्तम । यह सभी दक्षिण भारत में स्थापित फैक्ट्रियां थी।
बंगाल में स्थापित फैक्ट्रियां:
1627- पिपली, 1653- चिनसुरा (कोठी) गुस्तावुस फोर्ट नाम दिया। 1658 -कासिम बाजार, बालासोर, पटना और मेगापट्टम, 1660 -गोलकुंडा, 1663- कोचीन।
1664 में औरंगजेब ने डचो को 3.33 % वार्षिक चुंगी पर बंगाल, बिहार, उड़ीसा में व्यापार करने का अधिकार दिया।
फैक्टर – डच फैक्ट्रियों का प्रमुख होता था।
डचों ने मसालों के स्थान पर भारतीय कपड़ों के निर्यात को अधिक महत्व दिया।
भारत से भारतीय वस्त्र को निर्यात की वस्तु बनाने का श्रेय डचो को जाता है।
बेडरा का युद्ध:-1759 डच अंग्रेजों से पराजित हुए।
डचों की व्यापारिक व्यवस्था सहकारिता अर्थात कार्टल पर आधारित थी।

 अंग्रेज

अंग्रेज डचो से बाद में भारत आए लेकिन इनकी कंपनी 1599 में गठित जिसका नाम गवर्नर एंड कंपनी ऑफ मरचेंट्स ऑफ लंदन ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इंडिया।
31 दिसंबर 1600 में एक आज्ञा पत्र द्वारा इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने 15 वर्षों के लिए पूर्वी देशों से व्यापार करने की अनुमति प्रदान की।
1609 ईसवी का चार्टर:
1603 में महारानी एलिजाबेथ की मृत्यु तथा जेम्स प्रथम उत्तराधिकारी और इंग्लैंड के सम्राट बने।
1609 में कंपनी ने जेम्स प्रथम से नवीन व्यापारिक चार्टर प्राप्त किया।
1688 ईस्वी में इंग्लैंड में क्रांति हुई जेम्स द्वितीय का तख्तापलट तथा विलियम द्वितीय व उनकी बीवी मेरी को संयुक्त शासक बनाया गया।
1708 में जनरल सोसाइटी इंग्लिश कंपनी ट्रेडिंग इन द ईस्ट दोनों कंपनी पुरानी कंपनी में विलय हो गई।
1688 न्यू कंपनी, 1698 जनरल सोसायटी, 1698 इंग्लिश कंपनी ट्रेडिंग इन द ईस्ट यह सभी कंपनियों द्वारा 1708 में मूल कंपनी द यूनाइटेड कंपनी ऑफ मरचेंट्स ऑफ लंदन ट्रेडिंग टू द ईस्ट इंडीज का जन्म हुआ।

 कंपनी की व्यापारिक सफलताएं:

1608 कैप्टन हॉकिंस के नेतृत्व में हेक्टर नामक पहला अंग्रेजी जहाज सूरत बंदरगाह पर रुका।
हांकिंस तुर्की  भाषा बोल सकता था जो पहला अंग्रेज था जो समुद्री मार्ग से भारत आया।
1608 अकबर के नाम जेम्स प्रथम का पत्र लेकर हॉकिंस मुगल बादशाह जहांगीर के दरबार में पहुंचा और फारसी भाषा में बात की। प्रसन्न होकर जहांगीर द्वारा 400 का मनसब प्रदान किया गया।
1611 कैप्टन मिडल्टन ने स्वाली में पुर्तगाली जहाजी बेड़े को परास्त किया। जहांगीर अंग्रेजों से प्रभावित हुआ।
1613 में जहांगीर द्वारा सूरत में स्थाई कारखाना खोलने की अनुमति अंग्रेजों को प्रदान की गई।
1611 मसूलीपट्टम (मछलीपट्टनम) में अंग्रेजों द्वारा एक व्यापारिक कोठी बनाई गई।
1626 अरमागांव में दूसरी कोठी खोली।
1632 गोलकुंडा के सुल्तान ने सुनहरा फरमान (गोल्डन फरमान) दिया इसके द्वारा अंग्रेज 500 पेगोंडा वार्षिक देकर गोलकुंडा राज्य के बंदरगाहों पर स्वतंत्र व्यापार कर सकते थे।
1639 फ्रांसिस डे द्वारा चंद्रगिरी के राजा से मद्रास को पट्टे पर लिया गया जहां फोर्ट सेंट जॉर्ज नामक किला बंद कोठी बनाई।
1615 सर टॉमस रो जहांगीर के दरबार में आया।
1630 मेड्रिड की संधि, अंग्रेज और पुर्तगालियों के व्यापारिक संघर्ष का अंत।
1661 इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय का विवाह पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन के साथ हुआ पुर्तगालियों ने दहेज में बुम्बई द्वीप प्रदान किया।
1668 चार्ल्स द्वितीय ने 10 पाउंड सालाना किराए पर मुंबई को ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया।
1687 सूरत के स्थान पर मुंबई अंग्रेजों की मुख्य बस्ती बनी।
1633 हरिहरपुर व बालासोर (उड़ीसा ) में व्यापारिक कोठियां बनाएं।
1651 हुगली में ब्रजमैन के अधीन कोठी का निर्माण।
मक्का जाने वाले धर्म यात्रियों को बंदी बनाने पर औरंगजेब की सेना ने पराजित किया और सर जान चाइल्ड को औरंगजेब से माफी मांगनी पड़ी तथा जहाजों के साथ-साथ डेढ़ लाख रुपए हरजाने में देने पड़े।
1686 अंग्रेजों ने हुगली को लूटा तथा औरंगजेब ने पराजित किया तो अंग्रेज ज्वर ग्रस्त द्वीप पर भाग गए।
1690 जॉब चार्नोक द्वारा सूतानाती में एक अंग्रेजी कोठी स्थापित।
1698 बंगाल के सूबेदार azeem-o-shaan (अजीम उस सान) ने अंग्रेजों को सुतानाती, कालिकाता और गोविंदपुर 3 गांव की जमीदारी प्रदान की उक्त तीनों को मिलाकर किला बंद व्यावसायिक प्रतिष्ठान का नाम फोर्ट विलियम रखा गया।
1700 फोर्ट विलियम पहला प्रेसीडेंसी नगर घोषित।

 डेन (1616)

1616 डेनों का भारत आगमन ।
1620 तंजौर जिले के ट्रकेबोर में पहली फैक्ट्री स्थापित ।
1676 सीरमपुर (बंगाल) दूसरी फैक्ट्री स्थापित ।

फ्रांसीसी

1664 सम्राट लुई 14वें के समय उसके प्रसिद्ध मंत्री कोलबर्ट के प्रयास से फ्रांसीसी कंपनी कंपनी द एंड ओरिएंटल की स्थापना की गई।
फ्रांसीसी पहले मेडागास्कर दी पहुंचे।
1668 भारत में पहली कोठी फ्रेकोकेरो द्वारा सूरत में स्थापित।
1669 दूसरी कोठी मसूलीपट्टनम में स्थापित।
फैको मार्टिन और वेलांग द लेस्पिने ने शेर खां लोधी से छोटा गांव लेकर बस्ती बसाई जिसे पांडिचेरी नाम से जाना जाता है।
1697 रिजविक की संधि डचो द्वारा फ्रांसीसियों को पांडिचेरी वापस।

ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन (1773 से 1858 तक )

1600 में व्यापार करने के उद्देश्य से भारत आए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन 15 अगस्त 1947 तक रहा। इस दौरान कुछ ऐसी घटनाएं घटित हुई जिनके फलस्वरूप ब्रिटिश शासित भारत में सरकार और प्रशासन की विधिक रूप रेखा का निर्माण हुआ जो निम्न वत है।

और पढ़े भारत के गवर्नर जनरल एवं वायसराय 
1773 का रेगुलेटिंग एक्ट

ब्रिटिश सरकार द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने का पहला चरण था।
कंपनी को प्रशासनिक और राजनीतिक कार्यों की मान्यता प्राप्त।
बंगाल का गवर्नर अब बंगाल का गवर्नर जनरल पद नाम दिया गया।
पहला गवर्नर जनरल लार्ड वारेन हेस्टिंग्स बना।
मद्रास और मुंबई के गवर्नर बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन।
1774 में कोलकाता उच्चतम न्यायालय की स्थापना मुख्य न्यायाधीश सर एलिजा इम्पे व अन्य न्यायाधीश चैंबर्स लिमैस्टर एवं हाइड थे।

1784 पिट्स इंडिया एक्ट

रेगुलेटिंग एक्ट 1773 की कमियों को दूर करने के लिए यह नियम पारित किया गया। जिसे एक्ट ऑफ सेटलमेंट के नाम से जाना गया।
कंपनी के राजनैतिक और वाणिज्यिक कार्य पृथक कर दिए गए ।
एक नए नियंत्रण बोर्ड (बोर्ड ऑफ कंट्रोल) जो राजनैतिक मामलों का प्रबंधन हेतु गठन किया गया तथा व्यापारिक मामलों का अधीक्षण निदेशक मंडल के पास रहा। इस प्रकार द्वैध शासन की व्यवस्था अस्तित्व में आई।
भारत में कंपनी के अधीन क्षेत्र को पहली बार ब्रिटिश अधिपत्य का क्षेत्र कहा गया।
ब्रिटिश सरकार को भारत में कंपनी के कार्य और इसके प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया गया।

1833 का चार्टर अधिनियम

यह अधिनियम ब्रिटिश भारत के केंद्रीकरण की दिशा में पहला कदम था।
इस अधिनियम के अंतर्गत बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया । जिसमें सभी नागरिक और सैन्य शक्तियां शामिल थी।
लॉर्ड विलियम बेंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने।
इस अधिनियम के तहत सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन प्रारंभ करने का प्रयास किया गया।

1853 का चार्टर अधिनियम

इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल के परिषद के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यों को अलग किया गया।
भारतीय (केंद्रीय)विधान परिषद का गठन।
सिविल सेवकों की भर्ती एवं चयन हेतु खुली प्रतियोगिता व्यवस्था का शुभारंभ जिसमें भारतीय नागरिक भी शामिल हो सकते थे।
इसके लिए 1854 मैकाले समिति की नियुक्ति की गई।
इस अधिनियम में पहली बार भारतीय केंद्रीय विधान परिषद में स्थानीय प्रतिनिधित्व प्रारंभ किया गया।

ताज का शासन (1858 से 1947 तक)

1858 का भारत शासन अधिनियम

भारत के शासन को अच्छा बनाने वाला अधिनियम नाम से प्रसिद्धि।
ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त कर दिया गया और गवर्नरों और क्षेत्रों और राजस्व संबंधी शक्तियां ब्रिटिश राजशाही को हस्तांतरित कर दी गई।
इस अधिनियम के तहत भारत का शासन सीधे महारानी विक्टोरिया के अधीन हो गया ।
गवर्नर जनरल का पद बदलकर भारत का वायसराय कर दिया गया।
भारत का पहला वायसराय लॉर्ड कैनिंग को बनाया गया।
भारत में शासन की द्वैध प्रणाली समाप्त कर दी गई।
भारत के राज्य सचिव का नया पद बनाया गया। यहां ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी था।

1861 का भारत परिषद अधिनियम

इस अधिनियम के द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई।
1862 में लॉर्ड कैनिंग ने 3 भारतीयों बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधान परिषद में मनोनीत किया।
इस अधिनियम द्वारा मद्रास और मुंबई प्रेसिडेंसियों को विधायी शक्तियां पुनः देकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत की गई।
बंगाल, उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत और पंजाब में क्रमशः 1862, 1866 और 1897 में विधान परिषद का गठन हुआ।
पोर्टफोलियो प्रणाली को मान्यता दी गई।

1892 का अधिनियम

इस अधिनियम ने केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों दोनों में गैर सरकारी सदस्यों की नियुक्ति के लिए एक सीमित और परोक्ष रूप से चुनाव का प्रावधान किया।
हालांकि चुनाव शब्द का प्रयोग इस अधिनियम में कहीं नहीं किया गया था।

1909 का अधिनियम

यह अधिनियम को मार्ले मिंटो सुधार के नाम से भी जाना जाता है।
लॉर्ड मार्ले इंग्लैंड में भारत के राज्य सचिव और लॉर्ड मिंटो भारत में वायसराय थे इसी कारण इस अधिनियम का नाम मार्ले मिंटो सुधार कहा गया।
केंद्रीय परिषद में सदस्यों की संख्या को 16 से 60 कर दिया गया।
प्रांतीय विधान परिषद में सदस्यों की संख्या समान नहीं थी।
अनुपूरक प्रश्न पूछना तथा बजट पर संकल्प रखना आदि इस अधिनियम से अस्तित्व में आया।
इस अधिनियम में पहली बार सत्येंद्र प्रसाद सिंहा (भारतीय) वायसराय की कार्यपालिका परिषद में विधि सदस्य बनाया गया।

भारत शासन अधिनियम 1919

इस अधिनियम के तहत प्रांतीय विषयों को पुनः दो भागों में विभाजित किया गया हस्तांतरित और आरक्षित।
हस्तांतरित विषयों पर गवर्नर का शासन होता था।
आरक्षित विषयों पर गवर्नर कार्यपालिका परिषद की सहायता से शासन करता था।
द्विसदनीय व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन व्यवस्था प्रारंभ।
भारतीय विधान परिषद के स्थान पर द्विसदनीय व्यवस्था यानी राज्यसभा और लोकसभा का गठन किया गया।
एक लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।
इसमें पहली बार केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया।
इस अधिनियम के द्वारा एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया जिसका कार्य 10 वर्ष बाद जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था।

भारत शासन अधिनियम 1935

यह एक विस्तारित अधिनियम था जिसमें 321 धाराएं और 10 अनुसूचियां थी।
इस अधिनियम में संघीय सूची (59 विषय) राज्य सूची (54 विषय) और समवर्ती सूची (36 विषय) के आधार पर शक्तियों का बंटवारा किया गया।
अवशिष्ट शक्तियों पर वायसराय का अधिकार बना रहा।
प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था समाप्त कर दी गई तथा प्रांतीय स्वायत्तता का शुभारंभ हुआ।
केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली का प्रारंभ।
11 राज्यों में से छह में द्विसदनीय व्यवस्था प्रारंभ की गई।
दलित जातियों महिलाओं और मजदूर वर्ग के लिए अलग से निर्वाचन की व्यवस्था कर सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था का विस्तार किया गया।
भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई।
इस अधिनियम के तहत 1937 में संघीय न्यायालय की स्थापना की गई।
संघ लोक सेवा आयोग के साथ-साथ प्रांतीय सेवा आयोग का भी गठन किया गया।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947

20 फरवरी 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने घोषणा की कि 30 जून 1947 को भारत में ब्रिटिश शासन समाप्त हो जाएगा।
इस अधिनियम के द्वारा ब्रिटिश राज समाप्त कर 15 अगस्त 1947 को इसे स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र घोषित कर दिया।
इस अधिनियम के द्वारा भारत का विभाजन कर दो संप्रभु राष्ट्र भारत और पाकिस्तान का सृजन किया।
वायसराय के पद को समाप्त कर दिया गया।
ब्रिटेन में भारत सचिव का पद समाप्त कर दिया गया।
इस अधिनियम के तहत शाही उपाधि से भारत का सम्राट शब्द समाप्त कर दिया गया।

भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन(20वीं सदी )BEST FOR ALL EXAMS

भारत में क्रांतिकारी आंदोलन
अभिनव भारत:-

स्थापना- 1904

स्थान- नासिक महाराष्ट्र

संस्थापक- वी डी सावरकर

वी डी सावरकर पूना के फरगुशन कॉलेज के छात्र थे,भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन के परिपेक्ष में  इनके द्वारा 1904 में मित्र मेला का गठन किया गया| जो बाद में एक गुप्त संस्था अभिनव भारत में परिवर्तित हो गई| जो मैजिनी की तरुण इटली से प्रेरित थी| इसकी शाखाएं महाराष्ट्र के अलावा मध्यप्रदेश, कर्नाटक में स्थापित की गई| जिनमे भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन से  युवाओं द्वारा इंडिया हाउस को अंग्रेज विरोधी तथा भारत का समर्थन हेतु प्रचार प्रसार का केंद्र बना लिया|

सावरकर कृष्ण वर्मा की फेलोशिप का सहारा लेकर जून 1906 में लंदन चले गए, लेकिन यह संस्था चलती रही| इस संस्था ने अपने एक सदस्य पांडुरंग महादेव बापट को बम बनाना सीखने के लिए पेरिस भेजा| मई 1908 में इसके द्वारा इंडिया हाउस में 1857 की क्रांति की स्वर्ण जयंती मनाने का निश्चय किया| जिसे सावरकर द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी गई| सावरकर द्वारा लिखित पुस्तक the India was of independence के कारण 9 जून 1999 को आजीवन निर्वासन का दंड दिया गया|

भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन

 

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ:-

स्थापना:- 27 सितंबर 1925

मुख्यालय:- नागपुर महाराष्ट्र

संस्थापक:- डॉ केशव राव बलिराम हेडगेवार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य सनातन संस्कृति को बनाए रखना एवं देश से जाति-पांति  से परे सभी को एकता के सूत्र में बांधना, जिससे देश खुशहाल एवं समृद्धि की ओर अग्रसर रहें हिंदुत्ववादी विचारधारा से ओतप्रोत यह संगठन दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन है| इसकी शाखाएं भारत के अलावा विश्व के अन्य देशों में भी संचालित हैं|

भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन

युगांतर पार्टी

स्थापना:- 1906

स्थान:- बंगाल

संस्थापक:- जतिंद्रनाथ मुखर्जी(1879 से 1915)

यह एक विद्रोही गुप्त संगठन था| इसका जन्म अनुशीलन समिति में उत्पन्न मतभेदों के कारण हुआ इसके प्रमुख नेता अरविंद घोष, बारिन घोष, उल्लासकर दत्त थे| जतिंद्रनाथ मुखर्जी को बाघा जतिन भी कहा जाता था|

भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन

काकोरी कांड (9 अगस्त 1925)

हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से संबंधित यूपी के क्रांतिकारियों ने सहारनपुर लखनऊ लाइन पर काकोरी जाने वाली 8 डाउन मालगाड़ी को सफलतापूर्वक लूटा| इस कांड में 29 लोगों पर मुकदमा चलाया गया, जिसमें 17 लोगों को लंबी सजा 4 को आजीवन कारावास तथा 4 को फांसी की सजा दी गई| फांसी की सजा पाने वाले क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल (गोरखपुर में ) अशफाक उल्ला खां (फैजाबाद में ) रोशन लाल (नैनी इलाहाबाद में ) राजेंद्र लाहिरी (गोंडा में), रामप्रसाद बिस्मिल यह कहते हुए कि “मैं अंग्रेजी राज्य के पतन की इच्छा करता हूं|” खुशी से फांसी पर लटक गए|

फांसी के 2 दिन पहले बिस्मिल ने कहा “अब मैं केवल अपनी मां का दूध लूंगा” वहां एक महान शायर भी थे “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है|’ राम प्रसाद बिस्मिल की पंक्तियां हैं| काकोरी कांड के एक मुख्य क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद फरार हो गए, तथा कभी पुलिस नहीं पकड़ सकी 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस मुठभेड़ के दौरान स्वयं को गोली मारकर शहीद हो गए|

भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन

 

भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन

अनुशीलन समिति

स्थापना:- 1960

स्थान:- कोलकाता

संस्थापक:- वरिंदर कौर एवं भूपेंद्र दत्त

प्रमुख उद्देश्य:- खून के बदले खून

1903 में भारत अनुशीलन समिति के नाम से इसका जन्म हुआ, तथा 1904 में इसका नाम बदलकर अनुशीलन समिति कर दिया गया| इसकी स्थापना में प्रमुख योगदान प्रमोद नाथ मित्र व सतीश चंद्र बोस का था|1906 में इसका पहला सम्मेलन सुबोध मलिक के घर पर हुआ बंगाल विभाजन के उपरांत विदेशी माल का बहिष्कार तथा स्वदेशी आंदोलन जोर पकड़ गया| इस समिति ने विभाजन रद्द करवाना तथा स्वराज प्राप्ति पर विशेष बल दिया| 11 दिसंबर 1908 को अनुशीलन समिति को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया|

किंग्सफोर्ड की हत्या का प्रयास

बिहार के मुजफ्फरपुर प्रेसीडेंसी दंड नायक के रूप में न्यायधीश किंग्स कोर्ट ने छोटे छोटे अपराधों के लिए युवकों को बड़ी-बड़ी सजाएं दी| इसी के बदले के रूप में 30 अप्रैल 1960 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी में बम फेंका, लेकिन गलती से बम कनेडी की गाड़ी पर गिरा जो भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति हमदर्दी रखते थे| जिसमें उनकी पत्नी व पुत्री मारी गई प्रफुल्ल चाकी और बोस पकड़े गए| चाकी ने आत्महत्या कर ली तथा खुदीराम पर अभियोग चला तथा वह सबसे कम उम्र 15 वर्ष की अवस्था पर फांसी पाने वाले क्रांतिकारी (1908) में बने|

अलीपुर षड्यंत्र केस (1908)

सरकार ने अवैध हथियारों के रखने की तलाश के संबंध में मानिक टोला उद्यान तथा कलकत्ता में तलाशिया ली जिसमें 34 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया| इन पर जो मुकदमा चलाया गया उसे अलीपुर षड्यंत्र केस के नाम से जाना जाता है| इससे संबंधित सरकारी गवाह नरेंद्र गोसाई की हत्या सत्येंद्र नाथ बोस ने अलीपुर जेल में कर दी| फरवरी 1999 में सरकारी वकील व 24 फरवरी 1910 को उप पुलिस अधीक्षक की कलकत्ता उच्च न्यायालय के बाहर हत्या कर दी गई|वरिंद्र गुट के लगभग सभी सदस्यों को आजीवन काला पानी की सजा दी गई|

लाहौर षड्यंत्र केस (1915) ईस्वी

पंजाब में एक बड़े आंदोलन करने की योजना बनाई गई| 21 फरवरी 1915 को पूरे उत्तरी भारत में क्रांति की शुरुआत की जाए इसकी जानकारी सरकार को मिल गई तथा अनेक नेताओं को गिरफ्तार किया गया| जिसमें पृथ्वी सिंह परमानंद करतार सिंह विनायक जगत सिंह आदि थे| जो लाहौर षड्यंत्र केस के रूप में सजा दी गई|

गदर पार्टी

स्थापना:- 1 नवंबर 1913

स्थान:- सैन फ्रांसिस्को (अमेरिका)

संस्थापक:- लाला हरदयाल

अध्यक्ष:- सोहन सिंह

लाला हरदयाल द्वारा 1 नवंबर 1913 को सैन फ्रांसिस्को अमेरिका में गदर पार्टी का गठन किया गया| तथा अध्यक्ष सोहन सिंह को बनाया गया इसके प्रमुख नेताओं में रामचंद्र बरकतउल्ला रासबिहारी बोस राजा महेंद्र प्रताप मैडम भीकाजी कामा तथा अब्दुल रहमान थे| गदर पार्टी द्वारा एक साप्ताहिक पत्रिका “ग़दर” का प्रकाशन किया गया| प्रथम विश्व युद्ध के समय से गैरकानूनी घोषित कर दिया गया|

चटगांव शस्त्रागार धावा/चटगांव आर्मरी रेड 

चटगांव शस्त्रागार धावा एक शिक्षक नेता सूर्यसेन जोकि मास्टर दा के नाम से प्रसिद्ध थे| इनके नेतृत्व में युवा क्रांतिकारियों को मिलाकर एक सैनिक संगठन बना लिया गया| जिसके द्वारा पूर्वी बंगाल के चटगांव नामक बंदरगाह पर विद्रोह करने का प्रयत्न किया गया| युवक और युवतियों को एक एक साथ चटगांव, मेमन सिंह, बारिशाल के शस्त्रागारो पर हमला करने की योजना बनाई|

18 अप्रैल 1930 को 65 युवक और युवती ने ब्रिटेन की भारतीय सेना की वर्दी पहनकर पुलिस शस्त्रागार पर हमला किया| इस घटना को चटगाव शस्त्रागार धावा  के नाम से जाना गया| जहां सूर्यसेन सफेद धोती व कोट पहनकर तिरंगा फहराया जिसके फलस्वरूप युवक युवतियों ने सलामी दी तथा उन्होंने क्रांतिकारी सरकार के गठन की घोषणा की इस घटना के आरोपियों पर मुकदमा चलाया गया है| जिससे कई क्रांतिकारियों को अंडमान में आजीवन कारावास की सजा मिली | 16 फरवरी 1933 को सूर्यसेन गिरफ्तार कर लिए गये ,इन्हें 12 जनवरी 1934को फांसी पर लटका दिया जाए|

1926 ईस्वी में पंजाब में गठित नौजवान सभा के प्रारंभिक/संस्थापक सदस्य भगत सिंह, छबीलदास और यशपाल थे।
साइमन कमीशन 20 अक्टूबर 1928 ईस्वी को जब लाहौर स्टेशन पर पहुंचा तो नौजवान सभा के सदस्यों ने इस कमीशन का बहिष्कार करने के लिए जुलूस का गठन किया जिसमें लाला लाजपत राय पर लाठियों की बौछार की गई कुछ दिनों बाद लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई इसका बदला लेने के लिए भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु और जयपाल ने स्कॉट को मारने का दृढ़ निश्चय किया मगर गलती से दिसंबर 1928 ईस्वी को सांडर्स और उनके रीडर चरण सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई।

राल्फ फिच भारत आने वाला पहला इंग्लिश यात्री था जो 1583 ई. में आगरा पहुंचा।

विलियम हॉकिंस इंग्लैंड का यात्री जो अगस्त 1608 में सूरत पहुंचता और अप्रैल 1609 में मुगल शासक जहांगीर के दरबार आगरा पहुंचा।
सर थॉमस रो एक ब्रिटिश यात्री था जो सितंबर 1615 ई. में जहांगीर के दरबार में पहुंचा।
निकोलस डाउंटन 1615 ई. में भारत आया।

अकबर (1542-1605) AKBAR THE GREAT से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य

अकबर का जन्म – 15 अक्टूबर 1542                                                                                                                                                                जन्म स्थान       – अमरकोट( सिंध )में राणा वीर साल राजपूत के घर
 पूरा नाम           – जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर
पिता                  – हुमायूं
 माता                – हमीदा बानो बेगम (मरियम मकानी के रूप में मान्यता)
 राज अभिषेक    – 14 फरवरी 1556 कालानौर (गुरदासपुर उम्र 13 वर्ष 4 माह)
पुत्र                    -सलीम, मुराद, दानियाल,
 पुत्रिया               – खानम सुल्तान, सुक्रून निशा बेगम, आराम बानो बेगम
उत्तराधिकारी

सलीम (जहांगीर )                                                                                                  – मुराद की मृत्यु 1599 ईसवी                                                                                    – दानियाल की मृत्यु 1604  में (मदिरापान से)

चाचा     – कामरान, हिन्दाल, अस्करी

अकबर

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अकबर के जन्म के समय हुमायूं अमरकोट से दूर साह हुसैन अरगून के विरुद्ध थट्टा और भक्खर अभियान पर था|

टार्दी  बेग खान (घुड़सवार) ने अकबर के जन्म का समाचार हुमायूं को दिया|

अकबर को कामरान ने काबुल दुर्ग की दीवार पर तोपों के सामने लटकाया था|

अकबर के शिक्षक पीर मोहब्बत तथा बैरम खान थे

गजनी के राज्यपाल (1551) के रूप में अकबर को हुमायूँ  ने मात्र 9 वर्ष की अवस्था में दायित्व सौंपा|

पहला विवाह चाचा हिंदाल की पुत्री रुकैया बेगम से|

सरहिंद युद्ध (22जून 1555) अकबर ने हुमायूं के साथ युद्ध में भाग लिया तथा विजय का श्रेय हुमायूँ द्वारा अकबर को दिया गया|

पहली बार अकबर को बैरम खां के संरक्षण में पंजाब के सूबेदार का दायित्व सौंपा गया|

हुमायूँ की मृत्यु 24 जनवरी 1556 को हुई |

मुल्ला बेकसी :-

हुमायूं की मृत्यु के समय अकबर पंजाब में सिकंदरसूर  के विरुद्ध युद्धरत था | विद्रोह न फैले पहले इसलिए हुमायूं की शक्ल के समान दिखने वाले मुल्ला बेकसी को 17 दिनों तक शाही  लिवास पहनाकर जनता दर्शन कराए जाते रहे|

अकबर ने बैरम खां को “खाने खाना” की उपाधि प्रदान की | प्यार से उसे “खानी बाबा” कहा जाता था|

हेमू :-

उपाधियां – हेमू विक्रमादित्य और हेमचंद्र विक्रमादित्य

मृत्यु -5 नवंबर 1556

हेमू ने वजीर के रूप में सूर साम्राज्य के आदिलशाह सूरी के यहां कार्य किया| 24 लड़ाइयां लड़ी जिसमें से 22 में उसे विजय प्राप्त हुई है|

हेमू ने 7 अक्टूबर 1556 को दिल्ली की लड़ाई में अकबर की मुगल सेना को हराया|

शाह अबुल माली ने अकबर के राज्य अभिषेक में शामिल होने से इंकार कर दिया जो कभी हुमायूँ का अत्यंत विश्वासपात्र होता था|

विक्रमादित्य की उपाधि धारण करने वाला हेमू  14 वाँ और अंतिम शासक था |वह दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला अंतिम हिन्दू सम्राट था |

बैरम खां की संरक्षता (1556-1560):-
उपाधि – खान -ए -खाना
कल्ला मीनार :- कल्ला को फारसी में सिर कहते है अतः सिकन्दर शाह सूरी के साथ लड़ने में जितने सर कटे उनको इसमें भर दिया गया |कल्ला मीनार बैरम खां द्वारा बनवाई गयी थी |इसे सर मीनार भी कहते है |

प त्नी-सलीमा बेगम (अकबर की चचेरी बहन)

पानीपत का तृतीय युद्ध

तिथि – 5 नवंबर 1556 ईस्वी में

पक्ष -अकबर और हेमू (हेमचंद्र)

परिणाम – अकबर विजयी

“हेमू की पराजय एक दुर्घटना थी, जबकि अकबर की विजय एक दैवीय संयोग था |” -डॉक्टर आर पी त्रिपाठी |

युद्ध के दौरान के हेमू के आंख में तीर लगना उसकी हार का कारण बना सैनिकों में भगदड़ मच ग तथा हेमू को अकबर के समक्ष पेश किया गया जहां पर बैरम खां ने अपनी तलवार से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया| पानीपत के इस युद्ध में विजय का श्रेय बैरम खां को दिया जाता है |

पेटीकोट सरकार/पर्दा शासन (1560 से 1564):-
बैरम खां के पतन के बाद अकबर हरम की स्त्रियों के प्रभाव में आ गया तथा उनको शासन में  कुछ हस्तक्षेप करने का अधिकार प्रदान कर दिया|

हरम दल में राजमाता हमीदा बानो बेगम, माहम आनगा, अधम खां, शिहाबुद्धीन अतगा, मुल्ला पीर मोहम्मद तथा मुनीम खां शामिल थे|

शिहाबुद्धीन अतगा– माहम अनगा का दमाद (दिल्ली का सूबेदार)

मुल्लापीर – अकबर का अध्यापक

माहम अनगा  का सर्वाधिक प्रभाव था|

अकबर के प्रमुख युद्ध:-
पानीपत का द्वितीय युद्ध:- 5 नवम्बर 1556 में अकबर तथा हेमू के मध्य अकबर विजयी|

हल्दीघाटी का युद्ध:- 18 जून 1576 गोगुंडा के निकट हल्दीघाटी के मैदान में राणा प्रताप उर्फ कीका व  मुगल सेनापति मानसिंह के मध्य राणा प्रताप पराजित हुआ|

कलिंजर विजय (1569):- मजनू खां काकशाह  तथा राजा रामचंद्र के बीच साही सेना के सामने राजा रामचंद्रने समर्पण कर दिया|

मेड़ता विजय (1562)

गढ़करंगा (गोंडवाना) विजय (1564)

मेवाड़ विजय (1568)

रणथम्भौर विजय (1569)

कालिंजर विजय (1569)

गुजरात विजय (1572-73 )

काबुल विजय (1581)

कश्मीर विजय (1585-86)

सिंध विजय (1591)

उड़ीसा विजय (1592)

प्रश्न नं 1 -अकबर को किसने हराया?

हेमू (हेमचन्द्र )ने अपने स्वामी आदिल शाह की ओर से 24 युद्धों में से 22 युद्धों पर विजय हासिल की |दिल्ली पर अधिकार कर उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण करने वाला 14वाँ  और अंतिम शासक था |वह दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला अंतिम हिंदू सम्राट था|

प्रश्न नं 2 -अकबर  की पत्नी कितनी थी ?

हरखा बाई उर्फ़ जोधाबाई (राजा भारमल की पुत्री )

सलीमा बेगम (बैरम खां की विधवा)

बीकानेर के राजा कल्याणमल की पुत्री से विवाह|

जैसलमेर के रावल हरराय की पुत्री से विवाह |

उपरोक्त को शामिल करते हुए अकबर की लगभग 300 रानियां थी |

प्रश्न नं 3 -अकबर को किसने मारा था?

अकबर के जीवन के अंतिम दिन बहुत ही कष्ट दायक गुजरे | 4 अक्टूबर 1605 को अकबर अतिसार से पीड़ित हो गया इस बीमारी को उसका वैध हकीम अली पहचान नहीं सका अंततः  25 से 26 अक्टूबर 1605 को मध्य रात्रि को अकबर की मृत्यु हो गई|

प्रश्न नं 4 -अकबर की सबसे प्रिय रानी कौन थी?

अकबर की सबसे प्रिय रानी जोधाबाई थी |

प्रश्न नं 5 -अकबर के नवरत्न कौन से थे ?

-अबुल फजल

-फैजी

-तानसेन (संगीतकर )

-बीरबल

-राजा टोडरमल

-राजा मानसिंह

-अब्दुल रहीम खान -ए-खाना

-हकीम हुक्काम

-मुल्लाह दो पियाजा

भारत के गवर्नर जनरल एवं वायसराय ( 1973-1948 )

भारत के गवर्नर जनरल एवं वायसराय
  1. गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ( 1773-1785 )के शासन काल की महत्वपूर्ण घटनाएं |

भारत के गवर्नर जनरल एवं वायसरायो में गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स (1773 से 1785) अत्यधिक महत्वकांक्षी गवर्नर था |

1773 का रेगुलेटिंग एक्ट भारत में शासन की जिम्मेदारी गवर्नर जनरल तथा उसकी चार सदस्यीय परिषद पर डाल दिया गया| हेस्टिंग्स,बारवेल, क्लेवरिंग, फ्रांसिस तथा मानसन परिषद के सदस्य थे |

पहली बार ब्रिटिश कैबिनेट को भारतीय मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार दिया गया| 500 पाउंड के स्थान पर 1500 धारकों को संचालक चुनने का अधिकार दिया गया संचालक मंडल का कार्यकाल 4 वर्ष कर दिया गया | बंगाल के गवर्नर को समस्त अंग्रेजी क्षेत्रों का गवर्नर कहां गया|

1774 में इसी अधिनियम के तहत उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट )की स्थापना की गई, जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा तीन अन्य न्यायाधीश थे सर एलिजा इम्पे मुख्य न्यायधीश तथा चेम्बर्स, लिमेंस्टर और हायड अन्य न्यायाधीश थे |

कंपनी के कर्मचारियों के लिए निजी व्यापार पूर्णता प्रतिबंधित कर दिया गया इनके वेतन में वृद्धि की गई तथा नजराना, भेट,घूस पर रोक लगा दी गई इस एक्ट के सभी प्रावधान “परीक्षण एवं संतुलन” के सिद्धांत पर आधारित है|

भारत के गवर्नर जनरल एवं वायसराय

1781 का अधिनियम

कलकत्ता स्थित उच्चतम न्यायालय के न्याय क्षेत्र को निर्धारित कर दिया गया | न्यायालय द्वारा कानून बनाने या उनका क्रियान्वयन करते समय भारतीयों के रीति-रिवाजों धार्मिक मान्यताओं का ध्यान रखा जाए |

राजस्व एकत्रित करने की व्यवस्था में कोई रुकावट न डाली जाए|

1784 का पिट्स इंडिया एक्ट

तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री “पिट द यंगर” द्वारा संसद में प्रस्तुत किया गया|

6 कमिश्नरो के नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की गई जिसे “बोर्ड आफ कंट्रोल” कहते थे|

कंपनी के मामलों की छानबीन एक प्रवर समिति (SELECT COMMITTEE) और एक गुप्त समिति (SECRET COMMITTEE)नियुक्त की गई|

इस एक्ट के द्वारा यह पहला और अंतिम अवसर था, जब एक अंग्रेजी सरकार भारतीय मामले पर टूट गई|

गवर्नर जनरल के अधीन बंबई और मद्रास के गवर्नर पूर्ण रूप से कर दिए गए भारत में कंपनी के अधिकार क्षेत्र को “ब्रिटिश अधिकृत भारतीय प्रदेश” कहा गया| इस अधिनियम की सबसे महत्वपूर्ण धारा यह थी कि इसके द्वारा भारत में आक्रमण आक्रमक युद्ध को केवल समाप्ति नहीं कर दिया अपितु जो प्रत्याभूति (GUARANTEE) की सन्धिया कर्नाटक,अबध जैसे  भारतीय राजाओं से की गई थी उन्हें समाप्त कर दिया गया और यह कहा गया कि “विजय की योजनाये तथा भारत में साम्राज्य का विस्तार इस राष्ट्र की इच्छा सम्मान तथा निति  के विरुद्ध है|”

1774 का रोहिल्ला युद्ध

अप्रैल 1774 में मीरानपुर कटरा के स्थान पर नवाब व कंपनी की सम्मिलित सेना द्वारा रोहिल्ला सरदार हाफिज रहमत खान के साथ निर्णायक युद्ध लड़ा गया, जिसके जिसमें हाफिज रहमत का मारा गया| रूहेलखंड अवध में सम्मिलित कर लिया गया तथा 2लाख  रुहेलो को देश से निकाल दिया गया| रुहेला ग्राम लूटे गए, बच्चे मार डाले गए तथा स्त्रियों के साथ बलात्कार किए गए|

वारेन हेस्टिंग्स के इस आचरण की बर्क,मेकाले आदि ने कड़ी आलोचना की| लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि यह युद्ध हेस्टिंग द्वारा केवल धन तथा राजनैतिक लाभ के लिए लड़ा गया उसका नैतिकता की तरफ कोई विचार नहीं रहा|

1775-82 प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध

18 मई 1775 ई. को आरस के मैदान में अंग्रेज और मराठा सेनाओं के मध्य भीषण युद्ध हुआ | मराठे पराजित हुए लेकिन पुना पर उनका अधिकार बना रहा| कलकत्ता की अंग्रेजी सरकार की ओर से वारेन हेस्टिंग ने पूना दरबार में कर्नल अपटन को भेजकर पुरंदर की संधि (1मार्च 1776 ) कर ली|

मुंबई सरकार ने पुरंदर की संधि अस्वीकार कर दी तथा एक सेना कर्नल इगर्टन के अधीन नवंबर 1778 में पूना की ओर भेजा,कर्नल कौकबर्न के नेतृत्व में 9 जनवरी 1779 को पश्चिमी घाट स्थित तालगांव की लड़ाई में अंग्रेज पराजित हुए इसके बाद अंग्रेजों को बड़गांव की अपमानजनक संधि स्वीकार करनी पड़ी|

बडगाव की संधि वारेन हेस्टिंग्स ने मानने से इनकार कर दिया तथा युद्ध जारी रखा | केप्टन पोफम के अधीन ग्वालियर पर आक्रमण तथा जनरल गाडर्ड  के अधीन पूना पर आक्रमण किया यहाँ अंग्रेजों की खोई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित हुई | अग्रजो और मराठो के मध्य सालबई  की संधि 1782 से लगभग 20 वर्षों की शांति प्रदान की|

भारत के गवर्नर जनरल एवं वायसराय

द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध(1780-84)

अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के फलस्वरूप फ्रांस  तथा इंग्लैंड में कुछ युद्ध छिड़ गया| वारेन हेस्टिंग्स ने भारत की समस्त फ्रांसीसी बस्तियों को अपने अधीन करने का निश्चय किया| उसने हैदर अली के अधीन रहने वाले मालाबार तट पर स्थित माही बंदरगाह को जीत लिया| वारेन हेस्टिंग्स ने आक्रमण का तर्क दिया कि हैदर अली को फ्रांसीसी सहायता पहुंच सकती है|

जुलाई 1780 में हैदर अली ने कर्नाटक पर आक्रमण कर दिया यहीं से द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध आरंभ हुआ हैदर अली ने अंग्रेज जनरल वेली को कर्नाटक में हराया वारेन हेस्टिंग्स ने कूटनीतिक चाल चलकर निजाम को गुंटूर देकर हैदर अली से अलग किया तथा सिंधिया भोंसले को मिला लिया| 1780 में जनरल आयारकुट ने पोर्टनोवा, पॉलीलुर, शोलीग्लुर  में  अकेले पड़े हैदर अली को कई बार हराया|

हैदर अली ने 1782 में आयारकुट को हराया |7 दिसंबर 1782 को हैदर अली की मृत्यु तथा उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने युद्ध जारी रखा | 1784 में मंगलौर की संधि से द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध समाप्त हुआ|

भारत के गवर्नर जनरल एवं वायसराय

बनारस के राजा चैत सिंह के साथ विवादास्पद संबंध

मराठा और मैसूर के युद्ध से कंपनी पर बहुत अधिक वित्तीय भार पड़ा है जिसके कारण वारेन हेस्टिंग्स को वे कार्य करने पड़े जिसके लिए अंत में उस पर महाभियोग (impeachment) का मुकदमा चलाया गया |

नवाब को चैत सिंह के अधीन किया गया जिससे जो धन चैत सिंह नवाब को देता था, वह कंपनी को देने लगा | जिससे वारेन हेस्टिंग्स बार-बार धन वसूलने लगा| मैंकाले के अनुसार बार-बार धन मांगने से चैट सिंह विरोध करें जिससे वह इसको अपराध मान कर उसके समस्त प्रदेश को जब्त कर लिया जाये| चैत सिंह ने वारेन हेस्टिंग्स के पैरों में अपनी पगड़ी तक रखी लेकिन उसने चेत सिंह को बंदी बना लिया |

इस निष्ठुरता से सैनिकों ने विद्रोह किया जिसे आसानी से दबा दिया गया| वारेन हेस्टिंग्स को अनुमान से बहुत कम धन प्राप्त हुआ, अर्थात वह असफल रहा | इसके बाद उसने यही अवध में करने का रास्ता चुना|

नंदकुमार को फांसी (1775)

नंदकुमार मुर्शिदाबाद का भूतपूर्व दीवान था| इसने वारेन हेस्टिंग्स पर 3 लाख 50 हजार  घूस लेने का आरोप लगाया| इसलिए हेस्टिंग्स ने न्यायाधीश इम्पे की मदद से जालसाजी के मुकदमे में नंदकुमार को फांसी पर चढ़ा दिया| भारत के गवर्नर जनरल एवं वायसराय में यह सबसे बड़ा कलंक माना गया |

एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल

वारेन हेस्टिंग के समय विलियम जोंस ने कोलकाता में 1784 में इसकी स्थापना की|

जनजातीय विद्रोह (1757 से 1856 तक)

जनजातीय विद्रोह

 जनजातीय विद्रोह                                                                                                  1857 से पूर्व लगभग 100 वर्षों से विदेशी राज्य द्वारा उत्पन्न कठिनाइयों के विरुद्ध अनेक आंदोलन विद्रोह तथा सैनिक विप्लव हुए स्वशासन में विदेशी हस्तक्षेप अत्यधिक करो का लगाना अर्थव्यवस्था की दयनीय स्थिति आदिवासियों के भूमि और जंगल मुख्य कारण थे झूम खेती पर प्रतिबंध वन क्षेत्रों पर नियंत्रण पुलिस व्यापारियों एवं महाजनों द्वारा शोषण आदि जनजातीय विद्रोह  के मुख्य कारण थे|

जनजातीय विद्रोह

  • संन्यासी विद्रोह
  • संथाल विद्रोह
  • संथाल विद्रोह का नेता कौन था
  • संथाल विद्रोह कब हुआ था
  • बधेरा विद्रोह
  • कोल का विद्रोह
  • बहावी आन्दोलन
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भारत में क्रांतिकारी आंदोलन
संन्यासी विद्रोह

संन्यासी विद्रोह का मुख्य कारण तीर्थ स्थलों तथा तीर्थ यात्रा पर प्रतिबंध लगाया जाना था, कभी मराठों राजपूतों नवाबों की सेनाओं में सेवा देने वाले सैनिक मुख्यता हिंदू नागा और गिरी के सशस्त्र सन्यासी थे| 1770 में भीषण अकाल पड़ा, लेकिन कंपनी के पदाधिकारियों की कठोरता को लोगों ने विदेशी राज्य की देन समझा, तीर्थ यात्राओं पर प्रतिबंध लगाने के कारण सन्यासियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह प्रारंभ कर दिया| इन सन्यासियों ने जनता से मिलकर कंपनी की कोठियों तथा कोषागारो पर आक्रमण किया, सभी वीरता से लड़े| 

1820 तक वारेन हेस्टिंग्स द्वारा चलाए गए अभियान द्वारा इसका दमन कर दिया गया| इसी सन्यासी विद्रोह का उल्लेख वंदे मातरम के रचयिता “बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय” ने अपने उपन्यास “आनंदमठ” में किया है, इस आंदोलन को “फकीर आंदोलन” भी कहा जाता है| इस जनजातीय विद्रोह में हिंदुओं और मुसलमानों की समान भागीदारी रही मजनूम शाह, चिराग अली, मूसा शाह, भवानी पाठक, तथा देवी चौधरानी इस विद्रोह के प्रमुख नेता थीl

जनजातीय विद्रोह

 संथाल विद्रोह

भागलपुर तथा राजमहल जिले के बीच में संथालो द्वारा कंपनी के अधिकारियों जमीदारों एवं पुलिस की वसूली और दुर्व्यवहार के कारण विद्रोह कर दिया, और सिद्धू एवं कान्हू  के नेतृत्व में संथालों ने कंपनी के शासन के अंत की घोषणा की| इस जनजातीय आंदोलन का 1856 तक दमन कर दिया गया |

जनजातीय विद्रोह

संथाल विद्रोह का नेता कौन था

संथाल विद्रोह के मुख्य नेता सिद्धू और कानून ने जिनके द्वारा अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर दिया गया था| इन लोगों के लिए प्रथक संथाल परगना बनाकर शांति स्थापित की|

संथाल विद्रोह कब हुआ

संथाल विद्रोह 1855-1856 ई. तक  सिद्धू और कानून के नेतृत्व में भागलपुर तथा राज महल जिलों में हुआ था|

बधेरा विद्रोह 

बधेरा विद्रोह ओखा मंडल के बधेरे आरंभ से ही विदेशी शासन से विरोधी थे| जब बड़ौदा के गायकवाड़ ने अंग्रेजी सेना की सहायता से लोगों से अधिकार कर प्राप्त करने का प्रयत्न किया तो बगैरा सरदार ने सशस्त्र विद्रोह कर दिया और 1818-19 के बीच अंग्रेजी प्रदेश पर भी आक्रमण किया| अंत में 1820 में शांति स्थापित हो गई|

कोल का विद्रोह 

भीलो के पडोसी कोल भी अग्रेजो से अप्रसन्न थे कोलो ने 1829,1839 तथा पुनः 1884 से  1848 तक इन्होने विद्रोह किये जो सब दबा दिए गये |

 बहावी आंदोलन

1830 से 1860 यहां आंदोलन रायबरेली के सैयद अहमद बरेलवी के नेतृत्व में 1830 में प्रारंभ किया गया| इसका उद्देश्य भारत को मुसलमानों का देश बनाना था, अर्थात यह आंदोलन मुसलमानों का, मुसलमानों द्वारा, मुसलमानों के लिए, ही था| लेकिन भारत में इसका लक्ष्य अंग्रेजों तथा शोषक वर्ग के अन्य लोगों का विरोध करना हो गया|

भारत में इस जनजातीय आन्दोलन का  प्रमुख केंद्र पटना था इसके अतिरिक्त हैदराबाद मद्रास बंगाल यूपी तथा मुंबई में इसकी शाखाएं स्थापित की गई 1860 के पश्चात अंग्रेजों ने वहाबियों के विरुद्ध एक व्यापक अभियान प्रारंभ किया| इस आंदोलन का देश में यह प्रभाव रहा कि देश के मुसलमानों में पृथकवाद की भावना जागी|

जनजातीय विद्रोह

विद्रोह का नाम विद्रोह का वर्ष स्थान नेतृत्वकर्ता
कोल विद्रोह 1831 छोटा नागपुर बुद्धो भगत
अहोम विद्रोह 1828 असम गोम्धर कुँवर
खासी विद्रोह 1833 गारो पहाड़िया (मेघालय ) राजा तीरत सिंह
पागल पंथी 1840-1850 उत्तरी बंगाल करम शाह
फरेजी आन्दोलन 1838-1857 फरीदपुर (बंगाल ) हाजी शरीयतुल्ला
रामोसी आन्दोलन 1822 पश्चिमी घाट सरदार चित्तर सिंह