भारत में पंचायती राज(1959)|बलवंत राय मेहता,अशोक मेहता समिति

भारत में पंचायती राज (Panchayati Raj In India):-

भारत में पंचायती राज व्यवस्था का सीधा सरोकार ग्रामीण स्थानीय स्वशासन पद्धति से है | यह भारत के सभी राज्य में निचले पायदान पर लोकतंत्र के निर्माण की रूपरेखा है, सन् 1992 के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत पंचायती राज को संविधान में शामिल किया गया।

भारत में पंचायती राज

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भारत में पंचायती राज का विकास(Panchayati Raj Development In India):-

भारत में पंचायती राज को लागू करने के लिए समय-समय पर विभिन्न समितियां बनाई गई जिनके सिफारिशों के फलस्वरूप पंचायती राज की स्थापना हुई। जो निम्नवत् है:-

बलवंत राय मेहता समिति(Balwant Rai Mehta Committee):-

बलवंत राय मेहता समिति भारत में पंचायती राज विकास कार्य का क्रियान्वयन ढंग से हो सके इसके लिए जनवरी 1957 में भारत सरकार ने सामुदायिक विकास कार्यक्रम 1952 तथा राष्ट्रीय विस्तार सेवा 1953 जो पहले से क्रियान्वित थे, इनके कार्यों की समीक्षा करके इनको और बेहतर किस तरीके से किया जा सकता है| इसलिए इस एक समिति का गठन हुआ, इस समिति के अध्यक्ष बलवंत राय मेहता थे, इसलिए इस समिति का नाम बलवंत राय मेहता समिति रखा गया|

समिति ने अपनी रिपोर्ट नंबर 1957 सरकार को सौंपी इसलिए लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण स्वच्छता की योजना की सिफारिश की जो अंतिम रूप से पंचायती राज के रूप में जानी गई समिति द्वारा कुछ विशिष्ट सिफारिशें की गई, जो निम्नवत है:-

•इस समिति ने तीन स्तरीय पंचायती राज पद्धति की स्थापना गांव स्तर पर ग्राम पंचायत, ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद की सिफारिश की।

•इस समिति द्वारा सुझाव दिया गया कि ग्राम पंचायत की स्थापना हेतु सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होना चाहिए तथा पंचायत समिति और जिला परिषद के सदस्यों को अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाना चाहिए।

•पंचायतों को कार्यकारी निकाय तथा जिला परिषद को सलाहकारी समन्वयकारी और पर्यवेक्षण निकाय बनाना चाहिए। और इन्हीं संस्थाओं को पंचायतों की सभी योजनाओं और विकास कार्यों का क्रियान्वयन करने की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए।

जिला अधिकारी को जिला परिषद का अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए।
इन निकायों को पर्याप्त आर्थिक व सामाजिक रूप से शक्तिशाली बनाया जाए ताकि अपने कार्य और जिम्मेदारियों को भली-भांति संपादित करने में सक्षम बन सके।
भविष्य में इन निकायों को और मजबूती प्रदान करने के लिए नई-नई पद्धतियों का विकास किया जाना चाहिए।

इस समिति की सिफारिश को राष्ट्रीय विकास परिषद ने जनवरी 1958 में स्वीकृत प्रदान की।
पंचायती राज व्यवस्था को लागू करने वाला राजस्थान देश का पहला राज्य बना इस योजना का उद्घाटन 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान राज्य के नागौर जिले में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा किया गया।

अशोक मेहता समिति(Ashok Mehta Committee):-

भारत में पंचायती राज व्यवस्था में  सुधार और मजबूत करने के लिए दिसंबर 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने अशोक मेहता की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। इस समिति ने पंचायती राज पद्धति जोकि कमजोर होती जा रही थी। इसे पुनः मजबूती प्रदान करने के लिए 132 सिफारिशें लागू करने पर जोर दिया। इसने अपनी रिपोर्ट अगस्त 1978 में सौंपी। इसके द्वारा दी गई प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित है:-

*त्रिस्तरीय पंचायती राज पद्धति को द्विस्तरीय पद्धति में परिवर्तित करना चाहिए।
विकेंद्रीकरण के लिए राज्य स्तर से नीचे लोक निरीक्षण के लिए जिला ही प्रथम बिंदु होना चाहिए।

*जिला परिषद कार्यकारी निकाय बनाया जाना चाहिए और यह राज्य स्तर की योजनाओं और विकास के लिए जिम्मेदार हो।

*पंचायती चुनाव के किसी भी स्तर पर राजनीतिक पार्टियों की आधिकारिक भागीदारी निर्धारित की जानी चाहिए।

*पंचायत को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने के लिए उन्हें अपने आर्थिक स्रोतों के लिए टैक्स लगाने का अधिकार प्रदान किया जाए।

*जिला स्तर पर गठित समिति के द्वारा इस संस्था का नियमित सामाजिक लेखा परीक्षण होना चाहिए। ताकि यह मालूम पड़ सके की जिन आवश्यकता वाले समूह के लिए धनराशि आवंटित की गई है, वह उन तक पहुंच रही है या नहीं।

*इस संस्था का राज्य सरकारों द्वारा अतिक्रमण न किया जा सके इसलिए संस्था के क्रियाशील न होने की दशा में 6 महीने के भीतर चुनाव अवश्य कर लिया जाए।

*मुख्य चुनाव आयुक्त के परामर्श के आधार पर राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी द्वारा पंचायती राज चुनाव कराना निर्धारित किया जाए।

*पंचायती संस्थाओं के मामलों की देखरेख के लिए राज्य मंत्री परिषद में एक मंत्री की नियुक्त की जानी चाहिए।

*पंचायती राज को मजबूती प्रदान करने के लिए लोगों को प्रेरित किया जाए तथा स्वैच्छिक संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए।

*पंचायत में अनुसूचित जाति व जनजाति के समूह को जनसंख्या के आधार पर आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।

*इस समिति का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही जनता पार्टी की सरकार गिर गई। इसलिए अशोक मेहता समिति की सिफारिशों पर कोई भी कार्रवाई नहीं की जा सकी, लेकिन तीन राज्य कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में इस समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखकर पंचायत राज संस्थाओं के पुनरुद्धार के लिए कुछ कदम उठाए।

जी.वी.के. राव समिति (G.V.K.Rao Committee):-

सन् 1985 में योजना आयोग द्वारा जी.वी.के.राव (गुन्नुपति वेंकट कृष्ण राव) की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इस समिति को ग्रामीण विकास एवं गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम की समीक्षा कर रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी।

समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची कि ग्रामीण विकास कार्यक्रम की प्रक्रिया केवल दफ्तरों तक सीमित होकर रह गई अर्थात नौकरशाहीकरण का दबदबा है, इसी कारण विकास प्रक्रिया पंचायत राज से अलग हो गई और लोकतांत्रीकरण के स्थान पर नौकरशाहीकरण होने के कारण पंचायती राज संस्थाएं कमजोर हो गई, इसीलिए पंचायती राज संस्थाओं को “बिना जड़ की घास” कहा गया।

इन संस्थाओं को सशक्त तथा पुनर्जीवित करने हेतु जी.वी.के. राव समिति द्वारा निम्नलिखित सिफ़ारिशें प्रस्तुत की गई:-

*जिला स्तरीय निकायों को “विकास की प्राथमिक इकाई” के रूप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया जाना चाहिए, अर्थात नियोजन और विकास की उचित इकाई जिला है। इसलिए जिले को मुख्य निकाय मानकर विकास कार्यक्रम संचालित किए जाएं।

*राज्य स्तर से संचालित होने वाले कुछ कार्यक्रमों को विकेंद्रीकरण के तहत जिला स्तर पर हस्तांतरित किया जाना चाहिए।

*भारत में पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया जाना चाहिए।

*समिति द्वारा एक जिला विकास आयुक्त के पद का सृजन करने की सिफारिश की गई, जो जिले का मुख्य कार्यकारी अधिकारी होगा।

*समिति द्वारा पाया गया कि राज्यों में पंचायती राज संस्थाओं के नियमित चुनाव नहीं हो रहे हैं। अर्थात चुनाव नियमित तथा समय से संपन्न होने चाहिए।

*त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था {ग्राम पंचायत, पंचायत समिति (ब्लॉक स्तर) जिला परिषद} को पुनः प्रभावी रूप से लागू किया जाना चाहिए।

एल.एम. सिंघवी समिति (L.M.Singhvi Committee):-

राजीव गांधी सरकार के समय 1986 में एल.एम.सिंघवी (डॉक्टर लक्ष्मीमल सिंघवी) की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। जिसे लोकतंत्र और विकास के लिए पंचायती राज संस्थाओं को पुनर्जीवित करने हेतु अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी। इसने निम्न लिखित सिफ़ारिशें प्रस्तुत की:-

*भारतीय संविधान में एक नया अध्याय शामिल किया जाए। जिसमें पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान कर उनका संरक्षण किया जाए। जिससे उनकी पहचान तथा अखंडता बनी रहे।

*पंचायती राज निकायों के नियमित स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने हेतु संवैधानिक उपबंध की सिफारिश की। एक से अधिक गांवों को मिलकर न्याय पंचायत की स्थापना की जाए। जिससे स्थानीय विवादों का शीघ्र निस्तारण किया जा सके।

*गांव का पुनर्गठन कर ग्राम पंचायत को अधिक व्यावहारिक बनाया जाए। ग्राम पंचायत को “लोकतंत्र की भूमि बताया”

*ग्राम पंचायतों को अधिक आर्थिक संसाधन उपलब्ध कराए जाएं। ताकि यहां विकास कार्यों को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित किया जा सके।

*पंचायती राज संस्थाओं के विवादों के निस्तारण हेतु न्यायिक अधिकरणों की स्थापना की जानी चाहिए।

पी.के. थुंगन समिति(P.K.Thungon Committee):-

1988 में पी.के.थुंगन की अध्यक्षता में संसद की सलाहकार समिति की एक उप समिति का गठन किया गया। जिसका उद्देश्य राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे की जांच कर पंचायती राज व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने हेतु सुझाव देना था। इस समिति ने निम्नलिखित सिफ़ारिशें प्रस्तुत की:-

•ग्राम तथा जिला स्तर पर त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू की जाए।

•पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान की जानी चाहिए।

•पंचायती राज व्यवस्था में जिला परिषद को केंद्र मानकर योजना निर्माण तथा उनके क्रियान्वयन हेतु अधिकार प्रदान किए जाएं।

•पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया जाना चाहिए।

•पंचायती राज संस्थाओं हेतु
राज्य स्तर पर योजना मंत्री की अध्यक्षता में योजना निर्माण व समन्वय समिति का गठन किया जाए।

•पंचायती राज व्यवस्था पर केंद्रित विषयों की सूची तैयार कर उन्हें संवैधानिक दर्जा प्रदान किया जाए।

•पंचायती राज के तीनों स्तरों पर जनसंख्या के आधार पर आरक्षण होना चाहिए तथा महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु आरक्षण का प्रावधान किया जाए।

•सभी राज्यों में राज्य वित्त आयोग का गठन किया जाए।

•जिले के कलेक्टर को जिला परिषद का मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनाया जाए।

गाडगिल समिति(Gadgil Committee):-

भारत में पंचायती राज में सुधार हेतु 1988 में कांग्रेस पार्टी द्वारा एक नीति एवं कार्यक्रम समिति का गठन किया गया। जिसका अध्यक्ष वी.एन.गाडगिल को नियुक्त किया गया। इस समिति को इस उद्देश्य से नियुक्त किया गया, कि पंचायती राज संस्थाओं को प्रभावित कैसे बनाया जा सके, समिति ने यथास्थिति का अवलोकन कर निम्नलिखित सिफ़ारिशें प्रस्तुत की :-

•पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया जाए।

•पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष सुनिश्चित किया जाए।

•समिति द्वारा स्पष्ट किया गया कि गांव, प्रखंड (ब्लॉक) तथा जिला स्तर पर त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।

•पंचायत के तीनों स्तरों पर सदस्यों के चुनने हेतु सीधा निर्वाचन होना चाहिए।

•सभी की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जाए।

•पंचायती राज संस्थाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने हेतु कर (Tax) लगाने, वसूलने तथा जमा करने का अधिकार प्रदान किया जाए।

•पंचायती राज संस्थाओं को पंचायत क्षेत्र के सामाजिक आर्थिक विकास के लिए नीति निर्माण करना तथा उनके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी होगी।

राज्य वित्त आयोग का गठन किया जाए जो आवश्यकता अनुसार पंचायतों को वित्त आवंटन करें।

•पंचायतों के निष्पक्ष निर्वाचन कराने हेतु राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया जाए।

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संविधान में रिट के प्रकार|बन्दी प्रत्यक्षीकरण|परमादेश|प्रतिषेध

भारतीय संविधान में रिट के प्रकार:- भारतीय संविधान में कुल 5 प्रकार की रिटों का उल्लेख है, अनुच्छेद 32 के अनुसार उच्चतम न्यायालय तथा अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय इन्हें जारी करता है। जो निम्नलिखित है:-

बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) रिट :-यह रिट एक आदेश है जो उस व्यक्ति के लिए होती है| जिसने किसी व्यक्ति को अवैध रूप से हिरासत में रखा है। न्यायालय आदेश पारित करता है कि जिस व्यक्ति को अवैध रूप से बंदी बनाया गया है उसे सशरीर उपस्थित किया जाए। जिससे न्यायालय उसके कारावास के कारणों से अवगत हो सके । यदि हिरासत में लिए गए व्यक्ति का मामला अवैध है।तो उसे स्वतंत्र किया जा सकता है । यह रिट किसी व्यक्ति, चाहे अधिकारी हो या प्राइवेट व्यक्ति को  जारी की जा सकती है। इसकी अवमानना करने पर उसे दण्डित भी किया जाएगा। कुछ मामलो मे यह रिट जारी नही की जा सकती हैं जैसे :-

– हिरासत कानून के अनुसार है |

यदि कार्यवाही किसी विधान मंडल या न्यायालय की अवमानना के तहत हुई हो।

किसी न्यायालय ने हिरासत में रखने की सजा दी हो| हिरासत न्यायालय के न्याय क्षेत्र के बाहर हुई हो।

यह रिट अनु० 21 के अनुसार किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवम  दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जायेगा अन्यथा नही। इसी संदर्भ में यह रिट मानव स्वतंत्रता  का सर्वोत्तम अग्रदूत कहा गया है। यह रिट व्यक्तिगत आजादी के लिए जारी की जाती है।

रिट
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परमादेश(Mandamus) रिट:- यह रिट सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी की जाती है। इसका शाब्दिक अर्थ “हम आदेश देते हैं” इसके तहत न्यायालय किसी सरकारी अधिकारी, सरकारी इकाई, सरकारी निगम, अधीनस्थ न्यायालय, प्राधिकरणों को यह आदेश जारी करता है। कि वह सार्वजनिक उत्तरदायित्व का निर्वहन ठीक प्रकार से करें। उनके द्वारा उनके कार्यों और उसे न करने के बारे में पूछा जा सके परमादेश रिट निम्नलिखित को जारी नहीं की जा सकती
1- निजी इकाई या निजी (प्राइवेट) व्यक्तियों के विरुद्ध।
2- भारत के राष्ट्रपति एवं राज्यों के राज्यपालों के विरुद्ध।
3- गैर संवैधानिक विभागों के विरुद्ध।

 प्रतिषेध(Prohibition) रिट:-यह रिट सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों द्वारा निम्न/अवर न्यायालयों को आदेश जारी किया जाता है। कि वह अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर के मामलों में की जाने वाली कार्रवाई को रोक दें इस रिट का शाब्दिक अर्थ ही “रोकना है” यह रिट केवल न्यायिक व अर्ध न्यायिक प्राधिकरण के विरुद्ध ही जारी की जा सकती है
 

उत्प्रेषण(Certiorari) रिट:-उत्प्रेषण रिट का शाब्दिक अर्थ “प्रमाणित होना या सूचना देना है।” इस रिट को किसी विवाद को निम्न/अवर न्यायालय से उच्च न्यायालय में भेजने के लिए उच्च न्यायालय द्वारा जारी की जाती है। रिट के न्यायिक व अर्ध न्यायिक प्राधिकरणों के खिलाफ ही जारी किया जाता था। लेकिन सन 1991 में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि यह रिट व्यक्तियों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले प्रशासनिक प्राधिकरणों के खिलाफ भी जारी की जा सकती है। हालांकि देखा जाए तो यह विधिक निकायों एवं निजी व्यक्तियों या इकाइयों के विरुद्ध जारी नहीं की जा सकती है।
 

अधिकार पृच्छा(Quo Warranto) रिट:-यह रिट किसी भी व्यक्ति द्वारा जारी की जा सकती है। न कि पीड़ित व्यक्ति द्वारा और पूछा जा सकता है। कि वह किस अधिकार से उस पद पर कार्य कर रहा है। अर्थात इस रिट का शाब्दिक अर्थ “किस अधिकार से, प्राधिकृत या वारंट द्वारा।”
इस रिट के द्वारा न्यायालय उस व्यक्ति के खिलाफ आज्ञा पत्र जारी करता है। जो व्यक्ति उस पद पर कार्यरत है जिसे करने के लिए वह अधिकार नहीं रखता है। अर्थात न्यायालय उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस आधार पर इस पद पर कार्यरत है। अतः जिस किसी व्यक्ति द्वारा लोक कार्यालय के अवैध अनाधिकार ग्रहण करने को रोकता है। इसे मंत्रित्व कार्यालय या निजी कार्यालय के लिए जारी नहीं किया जा सकता है। यदि पूरक सार्वजनिक कार्यालयों का निर्माण संवैधानिक हो तब इस रिट को जारी किया जा सकता है।

लघु संविधान किसे कहते है|स्वर्ण सिंह समिति|एस के धर आयोग

प्यारे दोस्तों आज हम इस लेख में संविधान के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यों को पढ़ेंगे,जिसमें लघु संविधान किसे कहते हैं, स्वर्ण सिंह समिति, एस के धर आयोग, आदि विभिन्न प्रकार के महत्वपूर्ण तथ्यों को वन लाइनर के रूप में पढ़ेगे |

-42 वे  संविधान संशोधन अधिनियम (1976) को “मिनी कॉन्स्टिट्यूशन” कहा जाता है।

और पढ़े :-भारतीय संविधान (महत्वपूर्ण तथ्य )

-केशवानंद भारती मामला (1973) में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि (अनुच्छेद 368) संविधान संशोधन मूल ढांचे में कोई बदलाव की अनुमति नहीं।

-भारत राज्यों का संघ है।

-मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर कोई व्यक्ति सीधे सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है।

राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान (अनुच्छेद 20-21) में प्रदत्त अधिकारों को छोड़कर सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है।

-मौलिक कर्तव्यों को स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश के द्वारा 42वें संविधान संशोधन 1976 में शामिल किया गया।

-2002 के 86 में संविधान संशोधन के माध्यम से एक नए मौलिक कर्तव्य को जोड़ा गया।
धर्मनिरपेक्ष शब्द 1976 के 42 वे संविधान संशोधन में जोड़ा गया।

-61 में संविधान संशोधन अधिनियम 1988 के तहत वर्ष 1989 में मतदान करने की उम्र 21 वर्ष से घटकर 18 वर्ष कर दी गई।

-भारतीय संविधान में कुछ स्वतंत्र निकायों की स्थापना भी करता है जैसे निर्वाचन आयोग (अनुच्छेद 324) नियंत्रण एवं महालेखाकार (अनुच्छेद 148) संघ लोक सेवा आयोग एवं राज्य लोक सेवा आयोग (अनुच्छेद 315)।

-वर्ष 1992 में 73 वे एवं 74 में संविधान संशोधन के तहत तीन स्तरीय स्थानीय सरकार का प्रावधान किया गया जो भारतीय संविधान के अलावा विश्व के किसी भी संविधान में नहीं है।

-73वें संविधान संशोधन 1992 के तहत पंचायत को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई।

-97 वे संविधान संशोधन 2011 के द्वारा सरकारी समितियां को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।

-भारतीय संविधान की आलोचना में इसे उधार का संविधान, उधारी की एक बोरी, हांच-पांच  कॉन्स्टिट्यूशन, पैबंध गिरी आदि कहा गया।

-प्रस्तावना को सर्वप्रथम अमेरिकी संविधान में सम्मिलित किया गया था।

एन ए पालकी वाला ने प्रस्तावना को “संविधान का परिचय पत्र कहा”

-42वे  संविधान संशोधन अधिनियम 1976 में समाजवादी धर्मनिरपेक्ष और अखंडता शब्दों सम्मिलित किए गए।

-भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उल्लेखित सामाजिक आर्थिकराजनीतिक न्याय के तत्वों को 1917 की रूसी क्रांति से लिया गया है।

-भारतीय संविधान की प्रस्तावना में स्वतंत्रता क्षमता और बंधुत्व के आदर्शों को फ्रांस की क्रांति (1789- 1799) से लिया गया है।

-भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समता के तीन आयाम शामिल है नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक।
बेरुबाडी संघ मामले (1960) में उच्चतम न्यायालय ने कहा की प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है।
केशवानंद भारती मामले (1973) में उच्चतम न्यायालय ने पुनः स्पष्ट किया की प्रस्तावना संविधान का आंतरिक हिस्सा है।

-भारत को “विभक्ति राज्यों का अभिभाज्य संघ” कहा गया है।

-अमेरिका को “अविभाज्य राज्यों का अभिभाज्य संघ” कहा गया है।

-संविधान संसद को यह अधिकार प्रदान करता है, कि वह नए राज्य बनाने, नाम परिवर्तन, सीमा परिवर्तन करने में राज्यों की अनुमति की आवश्यकता नहीं है| अर्थात यह साधारण बहुमत और साधारण विधायी प्रक्रिया  के द्वारा पारित किया जा सकता है| अर्थात या प्रक्रिया अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन नहीं माना जाएगा।

-भारतीय क्षेत्र के अन्य देश को देने में अनुच्छेद 368 में संशोधन विशेष बहुमत से संसद द्वारा किया जा सकता है।

-552 देशी रियासतें भारत की सीमा में थी जिनमें 549 रियासतें भारत में शामिल हो गई थी।
हैदराबाद जूनागढ़ और कश्मीर रियासतों ने भारत में शामिल होने से इनकार कर दिया लेकिन बाद में हैदराबाद को पुलिस कार्रवाई द्वारा जूनागढ़ को जनमत द्वारा कश्मीर को विलय पत्र के द्वारा भारत में शामिल कर लिया गया।

-जून 1948 में एस के धर आयोग का गठन किसने अपनी रिपोर्ट दिसंबर 1948 में पेश की जिसमें राज्यों का पुनर्गठन भाषा ही आधार पर न करके प्रशासनिक सुविधा के अनुसार होना चाहिए।

-धर आयोग की रिपोर्ट को अत्यधिक विद्रोह होने पर दिसंबर 1948 में जवाहरलाल नेहरू वल्लभभाई पटेल पत्ता भी सीता रमैया को शामिल कर जेपी समिति का गठन किया गया किसने अप्रैल 1949 में रिपोर्ट पेश की जिसमें राज्यों का गठन भाषा के आधार पर हो अस्वीकार कर दिया।

-कांग्रेसी कार्यकर्ता पोट्टी श्री रामलू की 56 दिन की भूख हड़ताल से मृत्यु होने पर अक्टूबर 1953 में मद्रास से तेलुगु भाषा क्षेत्र से आंध्र प्रदेश का गठन किया गया।

-दिसंबर 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया गया इसके अन्य दो सदस्य के.ऍम.पणिक्कर और एच एन कुंजूरू थे | 1955 में अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें राज्यों के पुनर्गठन में को मुख्य आधार बनाया जाना चाहिए लेकिन इसने “एक राज्य एक भाषा” के सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया।

-वर्ष 1960 में मुंबई को बांटकर  महाराष्ट्र और गुजरात दो नए राज्य बने अर्थात गुजरात भारतीय संघ का 15 वां राज्य बना।

दसवीं संविधान संशोधन अधिनियम 1961 द्वारा दादरा एवं नगर हवेली को संघ शासित क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया गया।

-भारत में पुडुचेरी, कराईकाल, माहे यनम 14 वे संविधान संशोधन अधिनियम 1962 में संघ शासित प्रदेश बनाया गया।

-1963 में नागालैंड 16वां राज्य बना।

-1966 में हरियाणा 17वां राज्य व चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश का गठन किया गया।

-1971 में हिमाचल प्रदेश 18 राज्य बना पहले केंद्र शासित राज्य था। पूर्ण राज्य बना।

भारतीय संविधान (महत्वपूर्ण तथ्य )

भारतीय संविधान

•42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 को मिनी कांस्टिट्यूशन कहा जाता है

केशवानंद भारती मामला 1973 मे सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि (अनुच्छेद 368 संविधान संशोधन) मूल ढांचे में कोई बदलाव की अनुमति नहीं ।

भारत राज्यों का संघ है।

•मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर कोई व्यक्ति सीधे सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है।

•राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 20 21 में प्रदत्त अधिकारों को छोड़कर सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है।

•मौलिक कर्तव्यों को स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश के द्वारा 42 संविधान संशोधन 1976 में शामिल किया गया।

•2002 के 86 वें संविधान संशोधन के माध्यम से एक नए मौलिक कर्तव्य को जोड़ा गया।

धर्मनिरपेक्ष शब्द 1976 के 42 वें संविधान संशोधन में जोड़ा गया।

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61 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1988 के तहत वर्ष 1989 में मतदान करने की उम्र 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।

•भारतीय संविधान में कुछ स्वतंत्र निकायों की स्थापना भी करता है जैसे निर्वाचन आयोग (अनुच्छेद 324) नियंत्रक एवं महालेखाकार (अनुच्छेद 148) संघ लोक सेवा आयोग एवं राज्य लोक सेवा आयोग (अनुच्छेद 315)

•भारतीय संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल का उल्लेख है राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) राज्य में आपातकाल (अनुच्छेद 356) वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)।

•वर्ष 1992 में 73 वें एवं 74 वें संविधान संशोधन के तहत तीन स्तरीय स्थानीय सरकार का प्रावधान किया गया जो भारतीय संविधान के अलावा विश्व के किसी भी संविधान में नहीं है।

•73वें संविधान संशोधन 1992 के तहत पंचायतों को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई।

•74 वें संविधान संशोधन 1992 के द्वारा नगर पालिकाओं को मान्यता प्रदान की गई ।

•97 वे संविधान संशोधन 2011 के द्वारा सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।

•भारतीय संविधान की आलोचना में इसे उधार का संविधान, उधारी की एक बोरी, हांच-पांच कांस्टिट्यूशन, पैबंदगिरी आदि कहा गया।

•प्रस्तावना को सर्वप्रथम अमेरिकी संविधान में सम्मिलित किया गया है।

एन. ए. पालकीवाला ने प्रस्तावना को संविधान का परिचय पत्र कहा।

•42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता शब्द सम्मिलित किए गये।

•भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय के तत्वों को 1917 की रूसी क्रांति से लिया गया है।

•भारतीय संविधान की प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व के आदर्शों को फ्रांस की क्रांति (1789- 1799) से लिया गया है।

•भारतीय संविधान की प्रस्तावना में क्षमता के 3 आयाम शामिल है नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक।

बेरुबारी संघ मामले 1960 में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है।

केशवानंद भारती मामले 1973 में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रस्तावना संविधान का आंतरिक हिस्सा है।

भारत को विभक्त राज्यों का अविभाज्य संघ कहा गया है।

अमेरिका को अविभाज्य राज्यों का अविभाज्य संघ कहा गया है।

•संविधान संसद को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह नए राज्य बनाने, नाम परिवर्तन, सीमा परिवर्तन करने में राज्यों की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। अर्थात यह साधारण बहुमत और साधारण विधायी प्रक्रिया के द्वारा पारित किया जा सकता है अर्थात यह प्रक्रिया अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन नहीं माना जाएगा।

•भारतीय क्षेत्र को अन्य देश को देने में अनुच्छेद 368 में संशोधन विशेष बहुमत से संसद द्वारा किया जा सकता है।

552 देसी रियासतें भारत की सीमा में थी जिनमें 549 रियासतें भारत में शामिल हो गई थी।

हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर रियासतों ने भारत में शामिल होने से इंकार कर दिया लेकिन बाद में हैदराबाद को पुलिस कार्यवाही द्वारा, जूनागढ़ को जनमत द्वारा ,कश्मीर को विलय पत्र के द्वारा भारत में शामिल कर लिया गया।

•जून 1948 में एस. के. धर आयोग का गठन जिसने अपनी रिपोर्ट दिसंबर 1948 में पेश की जिसमें राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर न करके प्रशासनिक सुविधा के अनुसार होना चाहिए।

•आयोग की रिपोर्ट से अत्यधिक विद्रोह होने पर दिसंबर 1948 में जवाहर लाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल, पट्टाभिसीतारमैया को शामिल कर जे. वी. पी. समिति का गठन किया गया इस ने अप्रैल 1949 में रिपोर्ट पेश की जिसमें राज्यों का गठन भाषा के आधार पर हो अस्वीकार कर दिया।

•कांग्रेसी कार्यकर्ता पोट्टी श्रीरामुलू की 56 दिन की भूख हड़ताल से मृत्यु होने पर अक्टूबर 1953 में मद्रास से तेलुगू भाषी क्षेत्र से आंध्र प्रदेश का गठन किया गया।

•दिसंबर 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया गया जिसके अन्य दो सदस्य के. एम. पणिक्कर और एच एन कुंजरू थे । 1955 में अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें राज्यों के पुनर्गठन में भाषा को मुख्य आधार बनाया जाना चाहिए लेकिन इसमें “एक राज्य एक भाषा” के सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया।

•वर्ष 1960 में मुंबई को बांटकर महाराष्ट्र और गुजरात 2 नए राज्य बने अर्थात गुजरात भारतीय संघ का 15 वां राज्य बना।

•10 वां संविधान संशोधन अधिनियम 1961 द्वारा दादरा एवं नगर हवेली को संघ शासित क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया गया।

•भारत में पुडुचेरी, कराईकल, माहे, यनम 14 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1962 में संघ शासित प्रदेश बनाया गया।

•1963 में नागालैंड 16वां राज्य बना।

•1966 में हरियाणा 17 राज्य व चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश का गठन किया गया।
1971 में हिमाचल प्रदेश 18वां राज्य बना पहले केंद्र शासित राज्य था पूर्ण राज्य बनाया गया ।