समुद्रगुप्त (335-375) (335-375),भारतीय नेपोलियन,अभिलेख,मुद्राएँ,मृत्यु,

आज हम लोग इस आर्टिकल में महान गुप्त शासक समुद्रगुप्त (335-375) जिसे चंद्रगुप्त द्वितीय भी कहा जाता है। इसके शासनकाल में गुप्त साम्राज्य अपने चरम पर था। यह कभी भी किसी युद्ध में पराजित नहीं हुआ इसलिए इसे भारत का नेपोलियन भी कहा गया है, इसके शासनकाल में सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पहलुओं का पता चलता है।
समुद्रगुप्त गुप्त शासक चंद्रगुप्त प्रथम का पुत्र था| समुद्रगुप्त (335-375) जो इसके बाद में शासक बना इस के समय में गुप्त साम्राज्य का विस्तार सबसे अधिक हुआ|

समुद्रगुप्त

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इतिहासकार विसेंट स्मिथ द्वारा समुद्रगुप्त को भारतीय नेपोलियन की संज्ञा दी क्योंकि समुद्रगुप्त कभी पराजित नहीं हुआ था।

समुद्रगुप्त के सिक्कों पर कांच नाम उत्कीर्ण है तथा सर्वराजोच्छेत्ता उपाधि भी मिलती है कुछ विद्वानों का मानना है कि कांच इसका भाई था जिससे उत्तराधिकार के लिए संघर्ष हुआ था।

इलाहाबाद का अशोक स्तंभ अभिलेख समुद्रगुप्त के शासनकाल की जानकारी प्रदान करता है जिसमें समुद्रगुप्त की विजय हो के बारे में जानकारी प्राप्त होती जिस का प्रमुख स्रोत हरि सिंह द्वारा रचित प्रयाग स्तंभ लेख है जिसे चंपू शैली में लिखा गया है इसे प्रयाग प्रशस्ति भी कहा गया है अशोक का यह स्तंभ लेख कौशांबी में स्थित था बाद में अकबर द्वारा इसे इलाहाबाद में स्थापित कराया गया था।

समुद्रगुप्त द्वारा अश्वमेध यज्ञ किया गया इसके उपरांत उसने प्रथिव्यामा प्रतिरथ(प्रथिव्या प्रथम वीर) की उपाधि धारण की जिसका अर्थ ऐसा व्यक्ति जिसका पृथ्वी पर कोई प्रतिद्वंदी ना हो इसके द्वारा अश्वमेघ प्रकार के सिक्कों के मुखपृष्ठ पर यज्ञयूप में बंधे हुए घोड़े का चिन्ह तथा पृष्ठ भाग पर राजमहिषी दत्तदेवी की आकृति के साथ अश्वमेघ पराक्रम अंकित है अतः इसकी एक उपाधि परक्रमांक भी है।

समुद्रगुप्त एक महान विजेता के साथ साथ कभी संगीतज्ञ और विद्या का संरक्षक था इसके सिक्कों पर इसे वीणा बजाते हुए प्रदर्शित किया गया है एक कभी होने के कारण इसे कविराज की उपाधि प्रदान की गई है।

समुद्रगुप्त द्वारा छह प्रकार की स्वर्ण मुद्राएं चलाई गई जो निमृत हैं:-
1-गरुड़ प्रकार
2-धनुर्धारी प्रकार
3- परभु प्रकार
4- अश्वमेघ प्रकार
5-व्याघ्र हनन प्रकार
6-वीणा वादन प्रकार

समुद्रगुप्त के समकालीन राजा शासक रूद्र सिंह तृतीय (गुजरात) मेघवर्मन (श्रीलंका) कुषाण नरेश केदार (पेशावर)।

समुद्रगुप्त द्वारा आर्यावर्त तथा दक्षिणा पथ के 12-12 राज्य को पराजित किया गया आटविक राज्य ( गाजीपुर से लेकर मध्य प्रदेश), समतट ( बांग्लादेश ), ड्वाक (असम), कामरूप (असम) कर्तपुर (करतारपुर जालंधर), नेपाल को भी विजित किया।

समुद्रगुप्त के दरबार में महान बौद्ध भिक्षु वसुबंधु रहते थे ।

दक्षिण पथ विजय नीति तीन प्रमुख आधार शिलाए थी:-
1- ग्रहण -शत्रु पर अधिकार।
2- मोक्ष– शत्रु को मुक्त करना।
3- अनुग्रह– राज्य लौटा कर शत्रु पर दया करना।

प्रश्न 1- समुद्रगुप्त का वर्णन किस अभिलेख में है।

उत्तर- समुद्रगुप्त का वर्णन प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख में किया गया है। जिसमें उसे चंद्रगुप्त प्रथम द्वारा उसे उत्तराधिकारी चुनने का वर्णन किया गया। तथा इसमें समुद्रगुप्त की दिग्विजय का उद्देश्य धरणि बन्ध था उसकी उत्तर में अपनाई गई नीति को प्रसभोध्दरण तथा दक्षिण में मोक्षानुग्रह कहा गया था। इसमे समुद्रगुप्त को धर्म प्रचार बन्धु की उपाधि प्रदान की गई है।

प्रश्न 2- समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन किसने कहा।

उत्तर- समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन विंसेंट स्मिथ द्वारा कहा गया।

प्रश्न 3-समुद्रगुप्त की मुद्राएं।

उत्तर- समुद्रगुप्त द्वारा 6 प्रकार की मुद्राएं चलाई 1- गरुड़ प्रकार 2-धनुर्धारी प्रकार 3-परभु प्रकार 4-अश्वमेघ प्रकार 5- व्याघ्र हनन प्रकार 6- वीणा वादन प्रकार

प्रश्न 4-समुद्रगुप्त की मृत्यु हुई।

उत्तर- समुद्रगुप्त की मृत्यु 375 ईसवी में हुई। इसका शासनकाल 355 से 375 ईसवी तक रहा।

प्रश्न 5- समुद्रगुप्त की पत्नी का नाम।

उत्तर- समुद्रगुप्त की पत्नी का नाम दत्ता देवी था।

प्रश्न 6-समुद्रगुप्त के पिता का नाम।

उत्तर- समुद्रगुप्त के पिता का नाम चंद्रगुप्त प्रथम था।

प्रश्न 7-समुद्रगुप्त का दरबारी कवि कौन था।

उत्तर- समुद्रगुप्त का दरबारी कवि हरिषेण था।

लॉर्ड डलहौजी की विलय नीति (1848-1856) Doctrine of Lapse in Hindi / हड़प नीति/व्यपगत का सिद्धान्त

भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार के लिए लॉर्ड डलहौजी की विलय नीति बहुत बड़ी कूटनीतिक चाल थी। गवर्नर लॉर्ड डलहौजी एक बहुत ही कूटनीतिक एवं कार्य कुशलता के लिए प्रसिद्ध गवर्नर जनरल था। वह मात्र 30 वर्ष की आयु में गवर्नर जनरल पद पर नियुक्त किया गया। स्कॉटलैंड के वह एक अमीर पिता का पुत्र था । लॉर्ड डलहौजी की विलय नीति के कारण इसे इतिहास के महान गवर्नरों में शुमार किया जाता है क्योंकि उसने अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया उसने किसी भी अवसर को छोड़ा नहीं जिससे कि अंग्रेजी साम्राज्य में वृद्धि हुई इसके स्थान पर यदि अन्य कोई शायद गवर्नर जनरल होता तो वह कुछ परिस्थितियों मैं राज्यों को हड़पने का कार्य नहीं करते लेकिन इस गवर्नर जनरल ने कुछ भी बहाना मिला उससे उसने अंग्रेजी साम्राज्य का विस्तार किया उसने युद्ध में पंजाब और पीगू (बर्मा) को जीता और अपनी हड़प नीति के द्वारा शांति का प्रयोग करते हुए उसने अवध, सातारा, जैतपुर, झांसी और नागपुर को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाया और उसने आधुनिक भारत के भवन की आधारशिला रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

लॉर्ड डलहौजी की विलय नीति

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लॉर्ड डलहौजी द्वारा जीतकर विलय किए गए राज्य :-

द्वितीय आंग्ल सिख युद्ध और पंजाब का विलय 1849 :-

इस युद्ध की शुरुआत तो अंग्रेज अधिकारी वान्स इग्न्यू और लेफ्टिनेंट एंडरसन की मुल्तान में सिपाहियों द्वारा हत्या कर दिया जाना था। यह संकट मुल्तान के गवर्नर मूलराज के विद्रोह द्वारा उत्पन्न हुआ था। हजारा के सिख गवर्नर ने भी इस समय विद्रोह किया और अपना झंडा फहराया। सिखों ने पेशावर, अफगानिस्तान के अमीर दोस्त मोहम्मद को सौंप दिया और उससे दोस्ती कर ली। बहुत से पंजाबी मूलराज के समर्थन में आ गए इस प्रकार यह एक राष्ट्रीय युद्ध का रूप ले चुका था। लॉर्ड डलहौजी के अनुसार” बिना पूर्व चेतावनी के कारण ही सिखों ने युद्ध की घोषणा कर दी है अतः यह युद्ध करना स्वाभाविक हो गया था और उसने सौगंध ली और कहा कि यह युद्ध प्रतिशोध के रूप में किया जाएगा।”

लार्ड गाॅफ की अधीनता में अंग्रेज सैनिकों ने 16 नवंबर 1848 को सीमा पार की और रामनगर, चिलियांवाला और गुजरात में भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिखों की हार हुई इस अवसर को डलहौजी ने पंजाब के विलय के रूप में परिवर्तित कर दिया। यह कहा गया कि जब तक लोगों के पास युद्ध करने के साधन तथा अवसर है पंजाब में शांति नहीं होगी और उस समय तक भारत में शांति की कोई प्रत्याभूति नहीं होगी। जब तक हम सिखों को पूर्णतया अधीन नहीं कर लेते और इनके राज्य का पूर्णतया अंत नहीं कर देते। इसी के साथ 29 मार्च 1849 को पंजाब के विलय की घोषणा की गई और वहां के महाराजा दिलीप सिंह को पेंशनर बना दिया गया और अंग्रेजों ने शासन संभाल लिया। अंग्रेजों के लिए यह विलय राजनीतिक रूप से उचित और लाभदायक था क्योंकि इससे जो भारत के उत्तरी पश्चिमी सीमा पर दर्रे थे जो उस समय रास्ते के रूप में प्रयोग किए जा रहे थे उन पर अंग्रेजों का अधिकार सुनिश्चित हो गया था। हालांकि डलहौजी के पास इस विलय का कोई वैधानिक और नैतिक अधिकार नहीं था। इस लिए इवैन्ज बैल ने इसे “संगीन विश्वासघात” की संज्ञा दी।

लोअर बर्मा अथवा पीगू का राज्य में विलय (1852) :-

यन्दाबू की संधि (1826) के बाद कुछ अंग्रेज व्यापारी बर्मा के दक्षिणी तट और रंगून में बस गए थे। यह यहां के निवासी रंगून के गवर्नर पर दुर्व्यवहार की शिकायत करते थे। शैम्पर्ड और लुईस नाम के दो अंग्रेज कप्तानों पर बर्मा सरकार ने छोटे से अपराध के लिए भारी जुर्माने लगा दिए थे। अंग्रेजी कप्तानों ने डलहौजी को पत्र लिखा यह पत्र डलहौजी को बहाना बनाने के लिए पर्याप्त था डलहौजी ने ब्रिटिश गौरव और प्रतिष्ठा की रक्षा का दृढ़ संकल्प लिया था। उसके अनुसार उसका मानना था कि “यदि कोई व्यक्ति गंगा नदी के मुहाने पर अंग्रेजी झंडे का अपमान करता है। तो वह वैसा ही है जैसा कि कोई टेम्स नदी के मुहाने पर अपमान करता है।” इस बहाने को अमली जामा पहनाते हुए लॉर्ड डलहौजी ने फॉक्स नाम के युद्धपोत के अफसर काॅमेडोर लैंबर्ट को रंगून भेजा और उससे ब्रिटिश कप्तानों की क्षतिपूर्ति के लिए बातचीत करने और उनसे हर्जाना मांगने को कहा। छोटे से झगड़े को सुलझाने के लिए युद्ध पोतों का भेजना यह प्रदर्शित करता है कि यदि उसकी इच्छा के अनुसार समाधान नहीं किया गया तो युद्ध सुनिश्चित होगा लैंबर्ट ने बर्मा के महाराजा के युद्ध पोतों को पकड़ लिया और भयंकर युद्ध हुआ बर्मा सरकार हार गई। अब लोअर बर्मा को अपने साम्राज्य में विलय करने की घोषणा 20 दिसंबर 1852 को कर दी गई। अंग्रेजी साम्राज्य को इससे अमेरिका और फ्रांस की बढ़ती हुई समुद्रों में शक्ति पर नियंत्रण पाने का रास्ता साफ हो गया था। द्वितीय बर्मा युद्ध के विषय में अर्नाल्ड ने कहा “द्वितीय बर्मा युद्ध ना तो मूलतः और ना ही व्यवहारिक दृष्टि से न्याय पूर्ण था।” उदारवादी नेता कांब्डन और ब्राइट ने इसे एक बहुत “गंभीर पाप” की संज्ञा दी।

सिक्किम का विलय (1850) :-

सिक्किम एक छोटा सा राज्य था। जो नेपाल और भूटान देशों के बीच में स्थित था। वहां के राजा पर या दोष लगाया गया कि उसने दो अंग्रेज डॉक्टरों से दुर्व्यवहार किया है। इसलिए लॉर्ड डलहौजी को अपनी हड़प नीति के तहत बहाना मिल गया और उसने 1850 में सिक्किम के कुछ दूरवर्ती प्रदेश जिनमें दार्जिलिंग भी सम्मिलित था भारत में मिला लिए गए अर्थात अंग्रेजी साम्राज्य में सम्मिलित हो गए।

लार्ड डलहौजी द्वारा शांतिपूर्ण विलय- व्यपगत का सिद्धांत :-

डलहौजी के साम्राज्य विस्तार के कार्य में व्यापक के सिद्धांत की चर्चा न की जाए तो यह अधूरा माना जाएगा इस सिद्धांत के द्वारा डलहौजी ने महत्वपूर्ण रियासतों को अपने साम्राज्य में मिलाया और उसने झूठें रजवाड़ों और कृत्रिम मध्यस्थ शक्तियों द्वारा जो प्रजा की मुसीबतों को बढ़ाने का कार्य कर रहे थे। इस बात का बहाना करके परोक्ष रूप में वह मुगल शक्ति के साम्राज्य को हड़प करना चाहता था और भारतीय राज्य राजवाड़े जो मुगलों के उत्तराधिकारी का दावा कर सकते थे। उस संभवाना को समाप्त करने का कार्य किया उसके अनुसार भारत में तीन प्रकार की रियासतें थी:-

1-ऐसी रियासतें जो पूर्णता स्वतंत्र थी उनमें किसी भी प्रकार का दखल नहीं किया जाएगा।

2-वे रियासतें जो अंग्रेजी शासन के अधीन भी वह बिना गवर्नर जनरल के आदेश से गोद नहीं ली जा सकती थी।

3-वे रियासतें जो अंग्रेजों द्वारा स्थापित की गई या उन पर अंग्रेजों का पूर्ण नियंत्रण था उन्हें गोद लेने की आज्ञा नहीं दी जाएगी।

लॉर्ड डलहौजी ने अपनी नीति का 1854 में पुनरावलोकन करते हुए कहा की प्रथम श्रेणी की रियासतों के गोद लेने के मामलों में हमें हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है।

दूसरी श्रेणी के गोद लेने के लिए रियासतों को हमारी अनुमति अति आवश्यक है। उसने यह भी कहा कि इस प्रकार की रियासतों को हम अनुमति दे सकते हैं और उनको नहीं भी अनुमति देने का अधिकार रखते हैं।

परंतु तीसरी श्रेणी की रियासतों में हमारा विश्वास है कि उत्तराधिकार में गोद लेने की आज्ञा दिया जाना बिल्कुल ही गलत है अतः हम इसकी आज्ञा कभी नहीं देंगे।

लार्ड डलहौजी के द्वारा व्यपगत सिद्धांत के द्वारा विलय किए गए राज्य निम्नवत थे:- सतारा (1848), जैतपुर और संभलपुर (1849), बघाट (1850), उदेपुर (1852), झांसी (1853) और नागपुर (1854) ।

सतारा (1848):-

लॉर्ड डलहौजी के व्यपगत सिद्धांत के अनुसार हड़प किया जाने वाला यह प्रथम राज्य था। यहां के शासक अप्पा साहिब के कोई पुत्र नहीं था। उन्होंने अपनी मृत्यु के पहले कंपनी के अनुमति के बिना एक दत्तक पुत्र बना लिया था। इसी अवसर का लाभ उठाकर डलहौजी ने इस राज्य को आश्रित राज्य घोषित कर इसका विलय अंग्रेजी शासन में कर लिया। इस विलय का समर्थन डायरेक्टरों द्वारा भी किया गया। और उन्होंने इस विलय के बारे में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि हम पूर्णता सहमत हैं और उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारतीय सामान्य कानून और प्रथा के अनुसार सातारा जैसे अधीनस्थ राज्यों को कंपनी की स्वीकृति के बिना दत्तक पुत्र लेने का अधिकार नहीं है। इस विलय के विरोध में जोसेफ ह्यूम ने कामन्स सभा में इसकी तुलना “जिसकी लाठी, उसकी भैंस” के रूप में की।

संभलपुर (1849):-

उड़ीसा में स्थित इस राज्य का शासक नारायण सिंह था।नारायण सिंह का कोई पुत्र नहीं था और वह कोई दत्तक पुत्र भी नहीं बना सके। इस अवसर का लाभ उठाकर 1849 संभल का विलय अंग्रेजी साम्राज्य में कर लिया गया।

जैतपुर (1849):-

जैतपुर मध्य प्रदेश में स्थित एक रियासत थी जिसका सतारा रियासत की तरह कोई दत्तक उत्तराधिकारी नहीं बनाया जा सका। इस आधार पर जैतपुर का भी विलय कर लिया गया।

बघाट (1850):-

यह रियासत पंजाब में स्थित थी। जिसका विलय 1850 में अंग्रेजी शासन द्वारा कर लिया गया । लेकिन बाद में 1857 की क्रांति में यहां के राजा ने अंग्रेजी सत्ता का समर्थन किया और उनका सहयोग किया। इस कारण कैनिंग ने यहां के राजा की राज भक्ति देख कर इसे पुनः वापस कर दिया था |

उदेपुर (1852):-

यह रियासत मध्य प्रदेश में स्थित थी। इसका विलय हड़प नीति के द्वारा 1852 में कर लिया गया परंतु बाद में कैनिंग द्वारा बघाट रियासत की तर्ज पर इसे वहां के शासक को वापस कर दिया गया।

झांसी (1853):-

इस रियासत के राजा गंगाधर राव को उत्तराधिकार के आधार पर कंपनी ने शासक स्वीकार कर लिया लेकिन नवंबर 1853 में गंगाधर राव बिना पुत्र के स्वर्ग सिधार गए। उनकी विधवा लक्ष्मीबाई को डलहौजी ने पुत्र गोद लेने की अनुमति नहीं दी।
उत्तराधिकारी न होने के आधार पर झांसी रियासत का विलय कर लिया गया।

नागपुर (1854):-

1817 में लॉर्ड हेस्टिंग्ज द्वारा नागपुर रियासत का उत्तराधिकारी भोंसले परिवार के एक बच्चे राघू जी तृतीय को स्वीकार कर लिया गया था। 1853 में राजा का बिना दत्तक पुत्र को गोद लिए ही निधन हो गया। लेकिन उसने रानी को पुत्र गोद लेने को कह दिया था । जब रानी ने पुत्र गोद लेने का प्रस्ताव किया तो कंपनी में अस्वीकार कर दिया और राज्य का विलय कर लिया गया। इस विलय का अवसर उठाकर कंपनी ने रानियों के आभूषण और राजमहल के सामान को बेचकर लगभग 2 लाख पौंड की धनराशि प्राप्त की ।

अवध का विलय (1856):-

अवध के विलय का मुख्य कारण केवल वहां का कुशासन माना गया लेकिन इस कुशासन को देखा जाए तो मुख्य कारण अंग्रेज स्वयं ही थे। लॉर्ड डलहौजी ने इस रियासत के विलय की योजना बहुत ही कूटनीतिक तरीके से बनाई ,उसने अपने ही अधिकारियों को अवध में जांच करने के लिए भेजा और उन अधिकारियों द्वारा अवध में कुशासन के विषय को वरीयता पूर्वक बढ़ा चढ़ा कर लंदन भेज दिया गया। और वहां की गृह सरकार से अवध के विलय की अनुमति प्राप्त कर ली गृह सरकार और ब्रिटिश जनमत तैयार करने के बाद डलहौजी ने बड़ी आसानी से यह कार्य कर दिया। अवध को लॉर्ड डलहौजी ने “दुधारू गाय” की संज्ञा दी थी । इसी कारण बहुत ही सुनियोजित तरीके से लंदन से जांच कमेटी बनवा कर 1854 मे आउट्रम को स्लीमैन के स्थान पर भेजा गया। इसकी रिपोर्ट के आधार पर नवाब वाजिद अली शाह को गद्दी से हटाकर अवध का विलय कर लिया गया।

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हड़प्पा कालीन प्रमुख नगर

हड़प्पा कालीन प्रमुख नगर
हड़प्पा संस्कृति का विस्तार उत्तर में माण्डा चिनाव नदी के तट पर जम्मू कश्मीर, दक्षिण में दैमाबाद गोदावरी नदी के तट पर, पश्चिम में सुत्कागेण्डोर दाश्क नदी के तट पर, पूर्व में आलमगीरपुर हिण्डन नदी के किनारे मेरठ उत्तर प्रदेश तक होने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
हड़प्पा कालीन प्रमुख नगरों में केवल 7 नगरों को ही नगर माना गया है वैसे देखा जाए तो लगभग 1500 स्थलों की खोज की जा चुकी है। सात नगर निम्नवत् हैं:-

हड़प्पा

पंजाब प्रांत (पाकिस्तान) के मांण्टगोमरी जिले में रावी नदी के बाएं तट पर स्थित है। •इसकी खोज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जान मार्शल के निर्देश पर 1921 ईस्वी में दयाराम साहनी द्वारा की गई।
•यह स्थल सिंधु घाटी सभ्यता का क्षेत्रफल की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा स्थल है यहां AB और F नाम के दो टीले हैं AB टीले पर दुर्ग बना है तथा दुर्ग के बाहरी टीले को F नाम दिया गया।
•F नाम के टीले पर अन्नागार, श्रमिक आवास और अनाज कूटने के लिए गोलाकार चबूतरो के साक्ष्य मिले हैं अर्थात इनसे यह स्पष्ट होता है कि यह जनसाधारण के निवास की जगह थी AB टीले पर दुर्ग होने से स्पष्ट होता है कि यहां प्रशासक वर्ग के व्यक्तियों का निवास स्थल था।
• हड़प्पा नगर क्षेत्र के दक्षिण में एक कब्रिस्तान मिला जिसे समाधि r37 नाम दिया गया।
•1934 ईस्वी में प्राप्त समाधि का नाम समाधि H रखा गया।
यहां से पत्थर से बनी लिंग योनि की संकेतात्मक मूर्ति, विशाल अन्नागार, मातृ देवी चित्र, सोने की मोहर, सवाधान पेटिका, गेहूं जौ के दाने, मृदभाण्ड उद्योग के साक्ष्य, 16 भठ्ठियां, धातु बनाने की एक मूषा मिली है जिससे ताम्रकार होने के साक्ष्य।

मोहनजोदड़ो

•यह स्थल लरकाना जिला सिंध प्रांत पाकिस्तान में सिंधु नदी के दाहिने तट पर स्थित था।
•यह स्थल हड़प्पा सभ्यता की राजधानी माना जाता है।
•यह क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा नगर था।
•मोहनजोदड़ो का अर्थ- प्रेतों का टीला तथा इसे सिन्धु बाग भी कहा जाता है।
•इस स्थल की खोज राखलदास बनर्जी ने 1922 में की थी।
•यहां सबसे महत्वपूर्ण वस्तु विशाल स्नानागार है जो 11.88 मीटर लंबा 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा था। फर्श पक्की ईंटों से निर्मित दोनों सिरों पर सीढ़ियां थी इसमें पानी भरने व निकालने का उचित प्रबंध किया गया था।
•विशाल स्नानागार का उपयोग धर्म अनुष्ठानों संबंधी स्नान के लिए होता था। इसको मार्शल द्वारा तत्कालीन विश्व का आश्चर्यजनक निर्माण बताया गया है।
•स्नानागार के अतिरिक्त निम्न वस्तुओं की प्राप्ति हुई:-
अन्नागार:
अन्नागार या अन्नकोठार इसकी लंबाई 45.71 मीटर तथा 15.23 मीटर चौड़ाई थी। व्हीलर के अनुसार मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत थी।
सभा भवन:
27×27 मीटर वर्गाकार दुर्ग के दक्षिण में अवस्थित भवन था।
पुरोहित आवास:
इसकी लंबाई 70× 23.77 मीटर स्नानागार के उत्तर पूर्व में स्थित भवन था। उक्त के अलावा खोचेदार नालियां, नर्तकी की मूर्ति (कांस्य) पशुपति मुहर, मकानों में खिड़कियां, मेसोपोटामिया की मोहर आदि।
•यहां के पूर्वी किले के HR क्षेत्र से कांसे की नर्तकी की मूर्ति तथा 21 मानव कंकाल प्राप्त हुए।
•पिग्गट महोदय द्वारा हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो को सिंधु सभ्यता की जुड़वा राजधानी कहा गया है।

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चन्हूदडो

•सिंधु नदी के बाएं तट पर स्थित इस नगर की खोज एन.जी. मजूमदार द्वारा 1931 ईस्वी में की गई।
•यहां झूंकर संस्कृति तथा झांगर संस्कृति का विकास हुआ।
•मनके बनाने का कारखाना यहीं से प्राप्त हुआ जिसकी खोज मैके द्वारा की गई।
•तीन घड़ियाल तथा दो मछलियों की बनी आकृति वाली मुद्रा यहीं से प्राप्त हुई।
•यहां वक्राकार ईटों का प्रयोग किया गया।
•कुत्ते द्वारा बिल्ली का पीछा करते पंजों के निशान ईटों पर प्राप्त हुए।
•लिपस्टिक, काजल, उस्तरा, कंघा आदि यहां से वस्तुएं प्राप्त हुई।

लोथल

•इस स्थल की खोज 1954 में एस. आर. राव द्वारा की गई जिसे लघु हड़प्पा या लघु मोहनजोदड़ो कहा जाता है।
•यह स्थल भोगवा नदी के किनारे अहमदाबाद (गुजरात) में स्थित था।
•लोथल से एक गोदीवाड़ा (पत्तन) का साक्ष्य प्राप्त हुआ।
•यहां से प्राप्त तीन युग्मित समाधियो से सती प्रथा का अनुमान लगाया जाता है।
•यहां से अग्निकुंड, मनके बनाने का कारखाना तथा 126 मीटर× 30 मीटर भवन प्राप्त हुआ। जिसे प्रशासनिक भवन की संज्ञा दी गई।

 कालीबंगा

•कालीबंगा राजस्थान के गंगानगर जिले में घग्गर नदी के तट पर स्थित है।
•कालीबंगा का अर्थ- काली रंग की चूड़ियां।
•यह हड़प्पा सभ्यता का एकमात्र ऐसा नगर है जहां ऊपरी और निचले दोनों स्थान दुर्गीकृत हैं।
•इस नगर की खोज अमलानंद घोष द्वारा 1951 में की गई थी।
•यह नगर सरस्वती (आधुनिक नाम घग्घर) दृष्द्वती नदी के मध्य स्थित है।
•कालीबंगा में चूड़ी निर्माण उद्योग, शल्य चिकित्सा, गोलाकार कब्र, कांस्य उद्योग के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
•यहां हल से जूते खेत का साक्ष्य सबसे महत्वपूर्ण है।
•यहां अंत्येष्टि संस्कार पूर्ण समाधिकरण, दाह संस्कार एवं आंशिक समाधिकरण द्वारा किए जाने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
•एक युगल समाधान प्राप्त तथा बच्चे की खोपड़ी में 6 छिद्र होना शल्य चिकित्सा होने का प्राचीनतम साक्ष्य माना गया है।
•यहां से आबादी के बड़े स्तर पर पलायन होने तथा भूकंप के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए।

 बनवाली

•बनवाली भारत के हरियाणा के फतेहाबाद जिले में सरस्वती नदी के किनारे स्थित था।
इसकी खोज आर.एस. विष्ट द्वारा 1974 में की गई।
•यहां से बैलगाड़ी के पहिए, जौ का उपयोग, अग्नि वेदिका, मिट्टी के हल की प्रतिकृति तथा सीधी सड़क होने के साक्ष्य प्राप्त हुए।
•यहां अग्निवेदियों के साथ अर्द्ध वृत्ताकार ढांचे प्राप्त होने से कुछ विद्वान इन्हें मंदिर होने का प्रमाण की संभावना व्यक्त करते हैं।

धौलावीरा

•यह नगर गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालुका में लूनी- जोजरी लाइन के मध्य खादिर नामक द्वीप पर स्थित है।
•इसकी खोज श्री जे.पी. जोशी द्वारा सन 1967-68 में की गई।
•यहां से विशाल बांध उच्च जल प्रबंधन, मनहर -मनसर तालाब, दीवार पर लिखा सबसे बड़ा लेख आदि साक्ष्य प्राप्त हुए।
•यह भारत में स्थित सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा नगर था।
•सिंधु सभ्यता का एकमात्र क्रीडागार (स्टेडियम) तथा नेवले की पत्थर की मूर्ति यहां से प्राप्त हुई।
•यहां से पॉलीशदार श्वेत पाषाण के टुकड़े बड़ी मात्रा में मिले।

भारतीय संविधान (महत्वपूर्ण तथ्य )

भारतीय संविधान

•42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 को मिनी कांस्टिट्यूशन कहा जाता है

केशवानंद भारती मामला 1973 मे सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि (अनुच्छेद 368 संविधान संशोधन) मूल ढांचे में कोई बदलाव की अनुमति नहीं ।

भारत राज्यों का संघ है।

•मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर कोई व्यक्ति सीधे सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है।

•राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 20 21 में प्रदत्त अधिकारों को छोड़कर सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है।

•मौलिक कर्तव्यों को स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश के द्वारा 42 संविधान संशोधन 1976 में शामिल किया गया।

•2002 के 86 वें संविधान संशोधन के माध्यम से एक नए मौलिक कर्तव्य को जोड़ा गया।

धर्मनिरपेक्ष शब्द 1976 के 42 वें संविधान संशोधन में जोड़ा गया।

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61 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1988 के तहत वर्ष 1989 में मतदान करने की उम्र 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।

•भारतीय संविधान में कुछ स्वतंत्र निकायों की स्थापना भी करता है जैसे निर्वाचन आयोग (अनुच्छेद 324) नियंत्रक एवं महालेखाकार (अनुच्छेद 148) संघ लोक सेवा आयोग एवं राज्य लोक सेवा आयोग (अनुच्छेद 315)

•भारतीय संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल का उल्लेख है राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) राज्य में आपातकाल (अनुच्छेद 356) वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)।

•वर्ष 1992 में 73 वें एवं 74 वें संविधान संशोधन के तहत तीन स्तरीय स्थानीय सरकार का प्रावधान किया गया जो भारतीय संविधान के अलावा विश्व के किसी भी संविधान में नहीं है।

•73वें संविधान संशोधन 1992 के तहत पंचायतों को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई।

•74 वें संविधान संशोधन 1992 के द्वारा नगर पालिकाओं को मान्यता प्रदान की गई ।

•97 वे संविधान संशोधन 2011 के द्वारा सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।

•भारतीय संविधान की आलोचना में इसे उधार का संविधान, उधारी की एक बोरी, हांच-पांच कांस्टिट्यूशन, पैबंदगिरी आदि कहा गया।

•प्रस्तावना को सर्वप्रथम अमेरिकी संविधान में सम्मिलित किया गया है।

एन. ए. पालकीवाला ने प्रस्तावना को संविधान का परिचय पत्र कहा।

•42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता शब्द सम्मिलित किए गये।

•भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय के तत्वों को 1917 की रूसी क्रांति से लिया गया है।

•भारतीय संविधान की प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व के आदर्शों को फ्रांस की क्रांति (1789- 1799) से लिया गया है।

•भारतीय संविधान की प्रस्तावना में क्षमता के 3 आयाम शामिल है नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक।

बेरुबारी संघ मामले 1960 में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है।

केशवानंद भारती मामले 1973 में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रस्तावना संविधान का आंतरिक हिस्सा है।

भारत को विभक्त राज्यों का अविभाज्य संघ कहा गया है।

अमेरिका को अविभाज्य राज्यों का अविभाज्य संघ कहा गया है।

•संविधान संसद को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह नए राज्य बनाने, नाम परिवर्तन, सीमा परिवर्तन करने में राज्यों की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। अर्थात यह साधारण बहुमत और साधारण विधायी प्रक्रिया के द्वारा पारित किया जा सकता है अर्थात यह प्रक्रिया अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन नहीं माना जाएगा।

•भारतीय क्षेत्र को अन्य देश को देने में अनुच्छेद 368 में संशोधन विशेष बहुमत से संसद द्वारा किया जा सकता है।

552 देसी रियासतें भारत की सीमा में थी जिनमें 549 रियासतें भारत में शामिल हो गई थी।

हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर रियासतों ने भारत में शामिल होने से इंकार कर दिया लेकिन बाद में हैदराबाद को पुलिस कार्यवाही द्वारा, जूनागढ़ को जनमत द्वारा ,कश्मीर को विलय पत्र के द्वारा भारत में शामिल कर लिया गया।

•जून 1948 में एस. के. धर आयोग का गठन जिसने अपनी रिपोर्ट दिसंबर 1948 में पेश की जिसमें राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर न करके प्रशासनिक सुविधा के अनुसार होना चाहिए।

•आयोग की रिपोर्ट से अत्यधिक विद्रोह होने पर दिसंबर 1948 में जवाहर लाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल, पट्टाभिसीतारमैया को शामिल कर जे. वी. पी. समिति का गठन किया गया इस ने अप्रैल 1949 में रिपोर्ट पेश की जिसमें राज्यों का गठन भाषा के आधार पर हो अस्वीकार कर दिया।

•कांग्रेसी कार्यकर्ता पोट्टी श्रीरामुलू की 56 दिन की भूख हड़ताल से मृत्यु होने पर अक्टूबर 1953 में मद्रास से तेलुगू भाषी क्षेत्र से आंध्र प्रदेश का गठन किया गया।

•दिसंबर 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया गया जिसके अन्य दो सदस्य के. एम. पणिक्कर और एच एन कुंजरू थे । 1955 में अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें राज्यों के पुनर्गठन में भाषा को मुख्य आधार बनाया जाना चाहिए लेकिन इसमें “एक राज्य एक भाषा” के सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया।

•वर्ष 1960 में मुंबई को बांटकर महाराष्ट्र और गुजरात 2 नए राज्य बने अर्थात गुजरात भारतीय संघ का 15 वां राज्य बना।

•10 वां संविधान संशोधन अधिनियम 1961 द्वारा दादरा एवं नगर हवेली को संघ शासित क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया गया।

•भारत में पुडुचेरी, कराईकल, माहे, यनम 14 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1962 में संघ शासित प्रदेश बनाया गया।

•1963 में नागालैंड 16वां राज्य बना।

•1966 में हरियाणा 17 राज्य व चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश का गठन किया गया।
1971 में हिमाचल प्रदेश 18वां राज्य बना पहले केंद्र शासित राज्य था पूर्ण राज्य बनाया गया ।

कर्नाटक युद्ध (लगभग 20 वर्ष तक )

 प्रथम कर्नाटक युद्ध (1740 से 1748 ई.तक)

•कर्नाटक युद्ध यूरोप में गठित घटनाक्रम के तहत ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकारी युद्ध का मात्र एक विस्तार था।

•1740 ईस्वी में फ्रांसीसी तथा अंग्रेज मेरिया थरेसा के उत्तराधिकार को लेकर आपस में झगड़ रहे थे।

•फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले ने भारत में शांति बनाने रखने की बहुत कोशिश की लेकिन युद्ध की पहल अंग्रेजों की तरफ से की गई।

•यह युद्ध प्रत्यक्ष रूप से कर्नाटक के नवाब पद के उत्तराधिकार का संघर्ष दिख रहा था लेकिन अप्रत्यक्ष रूप में इसमें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी तथा फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी लड़ रही थी।

•इस समय पांडिचेरी का फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले था तथा मद्रास का अंग्रेज गवर्नर मोर्स था।

•युद्ध की पहल बारनैट के नेतृत्व में अंग्रेजी नौसेना ने कुछ फ्रांसीसी जलपोत पकड़कर की।

•फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन से अपने जहाजों की सुरक्षा के लिए निवेदन किया लेकिन अंग्रेजों ने नवाब की बात को भी नजरअंदाज कर दिया।

•फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले युद्ध के पक्ष में नहीं था इसलिए उसने कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन तथा अंग्रेज गवर्नर मोर्स दोनों से युद्ध ना होने देने का प्रस्ताव रखा।

• डुप्ले ने कूटनीतिक सहारा लिया और मॉरीशस के फ्रांसीसी गवर्नर ला बूर्डोने से सहायता मांगी जो अपने 3000 सैनिकों के साथ आकर मद्रास पर अधिकार कर लिया।

•इस दौरान डुप्ले और ला बूर्डोने दोनों के बीच मतभेद हो गया तो ला बूर्डोने ने 4 लाख पौंड की रिश्वत अंग्रेजों से लेकर मद्रास उन्हें सौंप दिया।

•ला बोर्डोने के मॉरीशस जाने के बाद डुप्ले ने मद्रास पर फिर अधिकार कर लिया।

•फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले ने यह कहकर कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन को अपने पक्ष में कर लिया था कि मद्रास को जीतने के बाद उसे सौंप देंगे लेकिन डुप्ले ने ऐसा नहीं किया। फलस्वरूप युद्ध अवश्यंभावी हो गया था।

•1748 ईसवी में कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन के पुत्र महफूज खां एक विशाल सेना लगभग 10 हजार सैनिक लेकर अडयार के समीप डुप्ले की कूटनीतिक चाल से ओतप्रोत कैप्टन पैराडाइज के अधीन एक छोटी सी फ्रांसीसी सेना जिसमें लगभग 230 फ्रांसीसी सैनिक और लगभग 700 भारतीय सैनिक थे महफूज खां की सेना को पराजित किया।

•इस युद्ध को सेंटथोमे का युद्ध भी कहा जाता है।

•इस जीत से यह स्पष्ट हो गया कि घुड़सवार सेना की अपेक्षा तोपखाना श्रेष्ठ है तथा अनुशासनहीन बड़ी सेना पर अनुशासित छोटी सेना भारी पड़ी।

•नवाब की सेना और मद्रास को परास्त करने के बाद फ्रांसीसियों में नई ऊर्जा का उद्भव हुआ और उन्होंने पांडिचेरी के दक्षिण में स्थित अंग्रेजों की एक बस्ती फोर्ट सेंट डेविड पर अधिकार करने का प्रयास किया किंतु लगभग डेढ़ सालों के घेरे के बाद भी असफल रहे।

•कुछ समय पश्चात इंग्लैंड से भारत में अंग्रेजों की सहायता के लिए सेना पहुंच गई सहायता मिलने की बाद अंग्रेजों ने पांडिचेरी का घेरा डाला परंतु वह उस पर अधिकार करने में असफल रहे और पुनः फोर्ट सेंट डेविड मे वापस आ गए।

•1748 ई. में यूरोप में अंग्रेज और फ्रांसीसियो के बीच एक्स-ला-शापेल की संधि हुई जिसके तहत यूरोप में युद्ध समाप्त हो गया इस संधि से मद्रास अंग्रेजों को तथा अमेरिका में लुईसबर्ग फ्रांसीसियों को वापस मिल गए इस तरह युद्ध के प्रथम दौर में दोनों दल बराबर रहे ।

•पहले कर्नाटक युद्ध का कोई तात्कालिक राजनीतिक प्रभाव भारत में नहीं पड़ा न तो इस युद्ध से फ्रांसीसी को कोई लाभ हुआ और ना ही अंग्रेजों को।

•इस युद्ध में भारतीय राजाओं की कमजोरियों को उजागर किया, और जल सेना का महत्व बड़ा अर्थात यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि भारतीय सेना यूरोपीय सेना से स्पष्ट रूप से कमजोर हो गई थी।

और पढ़े भारत में यूरोपियों का आगमन 
द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749-54)

•डुप्ले की राजनैतिक चाहत और चरम पर पहुंच गई क्यों कर्नाटक के प्रथम युद्ध मे उसने अपने राजनैतिक, कूटनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में कुछ सीमा तक सफल रहा।

•उसके द्वारा भारतीय राजवंशों के परस्पर झगड़ों में भाग लेकर अपने राजनीतिक प्रभाव को और प्रसारित करने के उद्देश्य से वहां कूटनीतिक रूप से अग्रसर हुआ।

•यह एक अच्छा अवसर था यूरोपीय शक्तियों के लिए क्योंकि भारतीय राजवंशों में उत्तराधिकार के लिए विवाद उत्पन्न हो रहे थे। इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए यूरोपीय शक्तियां तैयार थी।

•यूरोपियों को यह अवसर हैदराबाद तथा कर्नाटक के सिंहासनों के विवादास्पद उत्तराधिकार के कारण जल्द ही प्राप्त हुआ।

आसफजाह का 21 मई 1748 को स्वर्गवास हो गया उसका पुत्र नासिर जंग उत्तराधिकारी बना। परंतु उसके भतीजे (आसफजाह के पौत्र) मुजफ्फर जंग ने इसका विरोध किया।

•दूसरी तरफ कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन और उसके बहनोई चंदा साहिब के बीच मतभेद था। यह दोनों विवाद एक बड़े विवाद में परिवर्तित हो गए।

•अवसर का फायदा उठाने हेतु डुप्ले ने मुजफ्फर जंग को दक्कन की सुबेदारी तथा चंदा साहिब को कर्नाटक की सुबेदारी सौपने का समर्थन करने की बात की किन्ही कारणों से अंग्रेजों को नासिरजंग तथा अनवरुद्दीन का साथ देना पड़ा।

•अगस्त 1749 को बिल्लौर के समीप अंबूर के स्थान पर मुजफ्फरजंग, चंदा साहिब तथा फ्रेंच सेनाओं ने अनवरुद्दीन को हराकर मार दिया।

•डुप्ले को यह कूटनीतिक अद्वितीय सफलता प्राप्त हुई।

•दिसंबर 1750 में नासिर जंग एक युद्ध में मारा गया मुजफ्फर जंग दक्कन का सूबेदार बना और उसके द्वारा फ्रांसीसियों को बहुत से उपहार भेंट किए गए डुप्ले को कृष्णा नदी के दक्षिण भाग में मुगल प्रदेशों का गवर्नर नियुक्त कर दिया।

•मुजफ्फर जंग के आग्रह पर एक फ्रांसीसी सेना की टुकड़ी बुस्सी की अध्यक्षता में हैदराबाद में तैनात कर दी गई।

•डुप्ले की इच्छा अनुसार 1751 में चंदा साहिब कर्नाटक के नवाब बनाए गए। डुप्ले का यह समय राजनैतिक शक्ति की चरम स्थिति थी।

•फ्रांसीसियो का विरोध होना स्वाभाविक था स्वर्गीय अनवरुद्दीन के पुत्र मुहम्मद अली त्रिचनापल्ली में शरण लिए था फ्रांसीसी तथा चंदा साहेब दोनों मिलकर भी त्रिचनापल्ली के दुर्ग को जीतने में असफल रहे अंग्रेजों की स्थिति इस फ्रांसीसी विजय से कमजोर हो गई थी।

•त्रिचनापल्ली के फ्रांसीसी घेरे को तोड़ने में असफल रहा। क्लाइव त्रिचनापल्ली पर दबाव कम करने के लिए कर्नाटक की राजधानी अर्काट को 210 सैनिकों की सहायता से जीत लिया।

•अर्काट को पुनः जीतने के लिए चंदा साहिब में 4000 सैनिक भेजें जो अर्काट को पुनः प्राप्त नहीं कर सके।क्लाइव ने 53 दिन तक इस सेना का सामना किया।

•फ्रांसीसियो पर इस हार का गहरा प्रभाव पड़ा 1752 में स्टैंगर लारेंस के नेतृत्व में एक अंग्रेजी सेना ने त्रिचनापल्ली को बचा लिया तथा जून 1752 में डेरा डालने वाली फ्रांसीसी सेना ने अंग्रेजों के आगे हथियार डाल दिए। चंदा साहिब की भी धोखे से तंजौर के राजा ने हत्या कर दी।

•त्रिचनापल्ली में फ्रांसीसियों की हार से डुप्ले का पतन होना प्रारंभ हो गया फ्रांसीसी कंपनी के डायरेक्टरों ने इस युद्ध की पराजय से हुई धन हानि के लिए डुप्ले को वापस बुला लिया।

•डुप्ले के स्थान पर 1754 में गोडेहू को भारत में फ्रांसीसी प्रदेशों का गवर्नर जनरल बनाया गया तथा डुप्ले को उसका उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया ।

1755 में पांडिचेरी की संधि फ्रांसीसी कंपनी एवं अंग्रेजी कंपनियों के बीच एक अस्थाई संधि हुई।

•अंग्रेजों की सहायता से मुहम्मद अली कर्नाटक का नवाब बनाया गया परंतु हैदराबाद में अभी भी फ्रांसीसी डटे हुए थे तथा उन्होंने सूबेदार सालारजंग से और अधिक जागीर प्राप्त कर ली।

•कर्नाटक के द्वितीय युद्ध में फ्रांसीसियो को कुछ स्तर तक हानि पहुंची तथा अंग्रेजों की स्थिति में मजबूत हुई।

कर्नाटक का तृतीय युद्ध (1756-63 ई. तक)

•यह युद्ध भी यूरोपीय संघर्ष का ही भाग था।

•पांडिचेरी की संधि (1755) अस्थाई थी क्योंकि इस संधि का समर्थन दोनों देशों की सरकारों द्वारा किया जाना था परंतु 1756 ईस्वी में यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध प्रारंभ हो गया इसी कारण अंग्रेज और फ्रांसीसी एक दूसरे के विरोध में आ गए।

•फ्रांसीसी सरकार में अप्रैल 1757 में काउंट डी लाली को भारत भेजा। अप्रैल 1758 में भारत पहुंचा।

•इसी दौरान अंग्रेजों द्वारा सिराजुद्दौला को हराकर पश्चिम बंगाल पर अधिकार स्थापित कर चुके थे जिससे अंग्रेजों को अपार धन मिला। इसी धन का उपयोग करके अंग्रेजों द्वारा फ्रांसीसी यों को दक्कन में पराजित करने में सफलता प्राप्त हुई।

•काउंट डी लाली के भारत आने के उपरांत वास्तविक युद्ध आरंभ हुआ जिसके द्वारा फ्रांसीसी प्रदेशों को सैनिक हथियारों से युक्त अधिकारी नियुक्त किया तथा लाली ने 1758 ईस्वी में फोर्ट सेंट डेविड जीत लिया।

•फोर्ट सेंट डेविड की जीत से उत्साहित काउंट डी लाली द्वारा तंजौर पर आक्रमण किया गया क्योंकि उस पर 56 लाख रुपए बकाया था। परंतु यह अभियान असफल रहा इसके कारण फ्रांसीसियों की ख्याति को काफी नुकसान हुआ।

•इसी दौरान लाली द्वारा बुस्सी को हैदराबाद से वापस बुलाना उसकी सबसे बड़ी भूल थी इसके कारण फ्रांसीसियों की स्थिति और कमजोर हो गई।

•इसी समय पोकांक के नेतृत्व में अंग्रेजी बेड़े ने डआश के नेतृत्व वाली फ्रांसीसी सेना को तीन बार पराजित किया और उसे भारतीय सागर से वापस जाने पर मजबूर कर दिया।

1760 में वाण्डियावाश के स्थान पर अंग्रेज और फ्रांसीसियों के बीच निर्णायक लड़ाई लड़ी गई अंग्रेज सेना का नेतृत्व आयरकुट तथा फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व काउंट लाली द्वारा किया जा रहा था इसमें काउंट लाली बुरी तरह पराजित हुआ। यह युद्ध वाण्डियावाश का युद्ध (22 जनवरी 1760 ई.) के नाम से जाना जाता है।
फ्रांसीसी बुस्सी को अंग्रेजों द्वारा युद्ध बंदी बना लिया गया।

•फ्रांसीसियो की जनवरी 1761 की पराजय ने इनको पांडिचेरी लौटने पर मजबूर कर दिया अंग्रेजों द्वारा पांडिचेरी को भी जीत। लिया गया तथा फ्रांसीसियों ने इसे भी अंग्रेजों को सौंप दिया इसी दौरान शीघ्र ही माही और जिंजी भी उनके हाथ से निकल गए अर्थात अब फ्रांसीसी पूरी तरह से पराजित हो चुके थे।

•1763 में अंग्रेजों और फ्रांसीसियो के बीच पेरिस की संधि पर हस्ताक्षर होते हैं जिसके फलस्वरूप सप्तवर्षीय युद्ध समाप्त हो जाता है।

•अंग्रेजों द्वारा फ्रांसीसियों को उनके सारे कारखाने वापस कर दिए गए लेकिन उनको किलेबंदी तथा सैनिक रखने का अधिकार नहीं दिया गया अब वह सिर्फ व्यापार कर सकते थे।

कर्नाटक का तृतीय युद्ध अंततः निर्णायक सिद्ध हुआ जिसके फलस्वरूप भारत में फ्रांसीसियो का साम्राज्य पूरी तरह से नष्ट हो गया था।

फ्रांसीसी भारत में अब केवल व्यापारी बन के रह गए थे।

 भारत में यूरोपियों का आगमन (1448 ई. -1664 ई. तक )

भारत में यूरोपियों का आगमन व्यापार के लिए हुआ था,लेकिन परिस्थितियों को देखकर वह यहाँ  की राजनीति में उलझ कर सत्ता हासिल करने में लग गये |आख़िरकार सत्ता अग्रेजो के हाथ लगी |बाकी पुर्तगाली,डच,डेन,फ्रांसिसी कंपनियों को वापस लौटना पड़ा |
पुर्तगाली
केप आफ गुड होप होकर वास्कोडिगामा 17 मई 1498 में कालीकट पहुंचा।
पुर्तगाली आए थे व्यवसाय करने लेकिन उनका छुपा एजेंडा ईसाई मत का प्रचार- प्रसार करना था। उस समय वह अपने प्रतिस्पर्धी अरबों को बाहर खदेड़ कर व्यापार पर एकाधिकार करना चाहते थे।
पुर्तगालियों की भारत में स्थिति मजबूत होने के कारण पुर्तगाल के शासक मैनुअल प्रथम ने 1501 में अरब फारस और भारत के साथ व्यापार का स्वयं को मालिक घोषित कर दिया।
पुर्तगालियों के समय भारत की स्थिति

गुजरात को छोड़कर शक्तिशाली महमूद बेगड़ा का शासन था।
ढक्कन में बहमनी राज्य जो छोटी-छोटी शक्तियों में विभाजित था।
भारतीय सभी शक्तियां नौसैनिक शक्तिहीन थी।
राजकुमार हेनरी पुर्तगाल का नाविक ने अपना पूरा जीवन भारत को जाने वाले समुद्री मार्ग की खोज …

 भारत में पुर्तगाली साम्राज्य का सूत्रपात

1505 में फ्रांसीस्को डी अल्मेडा गवर्नर नियुक्त। जिसने ब्लू वाटर पॉलिसी /शांत जल की नीति का अनुकरण किया।
मिश्र ने पुर्तगालियों को रोकने के लिए लाल सागर में अपनी चौकसी बढ़ा दी। डीअल्मेडा को उत्तरी अफ्रीका में मूर से युद्ध करना पड़ा।
अल्फांसो डी अल्बुकर्क (1509-15)
1503 में अल्बूकर्क स्क्वैडेन कमांडर के रूप में भारत आया तथा 1509 में वायसराय नियुक्त हुआ जो पुर्तगाली साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
1510 ईसवी में बीजापुर से गोवा छीना तथा दमन, राजौरी और दाभोल के बंदरगाहों पर कब्जा किया।
इसमें हिंदू महिलाओं के साथ विवाह की नीति अपनाई।
1511 में मलक्का पर पुर्तगालियों का प्रभुत्व स्थापित हुआ।
1532 में दीव पर प्रभुत्व स्थापित।

 पुर्तगालियों का व्यापार पर प्रभुत्व

नागापट्टनम पुर्तगालियों का प्रमुख बंदरगाह था।
सैनथोम (मैलपुर) में पुर्तगालियों की बस्ती थी।
महमूद शाह (बंगाल का शासक) द्वारा 1536 में चटगांव और सतगांव में फैक्ट्री खोलने की अनुमति।
अकबर की अनुमति से हुगली और शाहजहां के फरमान से बुंदेल में कारखाने स्थापित।
कार्टेज व्यवस्था
इस व्यवस्था के तहत भारतीय जहाजों के कप्तानों को गोवा के वायसराय से लाइसेंस या पास लेना पड़ता था। जिससे पुर्तगाली भारतीय जहाजों पर हमला नहीं करते थे अन्यथा उसे लूट लेते थे।

वेडोर दा  फजेंडा

यह राजस्व तथा कार्गो एवं नौसैनिक बेड़ा भेजने के लिए जिम्मेदार होता था।

वायसराय नीनो दा कुन्हा : (1529 -38)

नवंबर 1529 में कार्यभार संभाला।
1530 में मुख्यालय कोचीन से गोवा ले गया।
बहादुर शाह ने (गुजरात का शासक) मुगल शासक हुमायूं से अपने संघर्ष के दौरान पुर्तगालियों को 1534 में बेसिक द्वीप सौपकर मदद ली।
1536 में हुमायूं के गुजरात से जाने के बाद पुर्तगालियों एवं बहादुर शाह के संबंध बिगड़ गए तथा शाह को जहाज पर बुलाकर मार दिया गया।

 अकबर एवं पुर्तगाली:

1572 कैम्बे के दौरे पर अकबर की मुलाकात पुर्तगाली व्यापारियों से हुई।
फादर जूलियन परेरा विकार (चर्च में पुजारी) से ईसाई धर्म का ज्ञान प्राप्त किया।
1578 में अकबर के समय एंटोनियो केबरेल ने मुगल राजधानी का दौरा किया। अकबर को संतुष्ट नहीं कर सका।
अकबर द्वारा धर्म मीमांसा के रूप में 28 फरवरी 1580 को दो पादरी रोडक्लफो एक्वाविवा और एंटोनियो मांसरेट फतेहपुर सीकरी पहुंचे।

कैप्टन हॉकिंस की यात्रा:

1608 में हॉकिंस इंग्लैंड के सम्राट जेम्स प्रथम द्वारा व्यापार में अनुमति हेतु जहांगीर के नाम प्रार्थना पत्र लाया।
फादर पीनेहेरो व पुर्तगाली अधिकारियों ने हॉकिंस को मुगल दरबार में जाने से रोकने का प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हो सके।
हॉकिंस तुर्की भाषा का अच्छा ज्ञाता था। उसने इसी भाषा में जहांगीर से संवाद किया जहांगीर ने खुश होकर उसे 30,000 के वेतन पर 400 का मनसबदार नियुक्त किया।
हॉकिंस ने आर्मेनियन ईसाई मुबारक शाह की बेटी से विवाह भी किया।

 कॉटेज आर्मेडा काफिला व्यवस्था:

कार्टेज / परमिट अरब सागर में परिवहन के लिए आवश्यक था।
सागर का स्वामी पुर्तगाली अपने को कहते थे।
सम्राट अकबर ने निशुल्क कार्टेज प्राप्त किया।

 पुर्तगाली प्रभुत्व का पतन:

धार्मिक असहिष्णुता।
चुपके चुपके व्यापार करना।
ब्राजील की खोज के कारण उपनिवेश संबंधी क्रियाशीलता पश्चिम की ओर उन्मुख होना।

 पुर्तगाली अधिपत्य का परिणाम:

धर्म परिवर्तन को बढ़ावा दिया।
1540 में गोवा के मंदिर नष्ट करना।
1560 में गोवा में धर्म न्यायालय की स्थापना।
1542 ईसवी पुर्तगाली गवर्नर मार्टिन डिसूजा के साथ प्रसिद्ध ज्यूस संत जेवियर भारत आया।
पुर्तगाली मध्य अमेरिका से तंबाकू, आलू और मक्का भारत लाए।
प्रिंटिंग प्रेस (छपाई )की शुरुआत।
अनन्नास, पपीता, बादाम, काजू, मूंगफली, शकरकंद, काली मिर्च, लिची और संतरा पुर्तगालियों की ही देन है।

 डच

नीदरलैंड या हालैंड के निवासी थे।
1595-96 में कार्नेलियस हाउटमैन के नेतृत्व में पहला डच अभियान भारत आया।
1602 यूनाइटेड ईस्ट इंडिया कंपनी ऑफ नीदरलैंड की स्थापना। जिसका मूल नाम v.o.c. (Vereenigde Oost Indische Compagnic) था।
1605 ईस्वी में डचों ने पुर्तगीजो से अंबायना ले लिया तथा धीरे-धीरे मसाला द्वीप पुंज (इंडोनेशिया) में पुर्तगीज को हराकर अपना प्रभाव स्थापित किया।
जकार्ता जीतकर 1619 में बैटेविया नामक नगर बसाया।
1605 में मसूलीपट्टनम में प्रथम डच फैक्ट्री की स्थापना।
दूसरी फैक्ट्री पेत्तोपोली (निजामपत्नम) में स्थापित।
पुलीकट में स्थापित फैक्ट्री को अपना मुख्यालय बनाया। जो 1610 में चंद्रगिरी के राजा से समझौता करके यहां अपने स्वर्ण पगोड़ा सिक्के ढालें।
फैक्ट्रियों की स्थापना
1605 में मसूलीपट्टनम (प्रथम) पेत्तोपोली (दूसरी ) 1610- पुलीकट (मुख्यालय बनाया) स्वर्ण पैगोडा सिक्के ढालें। 1616- सूरत 1641 – बिमलीपत्तम । यह सभी दक्षिण भारत में स्थापित फैक्ट्रियां थी।
बंगाल में स्थापित फैक्ट्रियां:
1627- पिपली, 1653- चिनसुरा (कोठी) गुस्तावुस फोर्ट नाम दिया। 1658 -कासिम बाजार, बालासोर, पटना और मेगापट्टम, 1660 -गोलकुंडा, 1663- कोचीन।
1664 में औरंगजेब ने डचो को 3.33 % वार्षिक चुंगी पर बंगाल, बिहार, उड़ीसा में व्यापार करने का अधिकार दिया।
फैक्टर – डच फैक्ट्रियों का प्रमुख होता था।
डचों ने मसालों के स्थान पर भारतीय कपड़ों के निर्यात को अधिक महत्व दिया।
भारत से भारतीय वस्त्र को निर्यात की वस्तु बनाने का श्रेय डचो को जाता है।
बेडरा का युद्ध:-1759 डच अंग्रेजों से पराजित हुए।
डचों की व्यापारिक व्यवस्था सहकारिता अर्थात कार्टल पर आधारित थी।

 अंग्रेज

अंग्रेज डचो से बाद में भारत आए लेकिन इनकी कंपनी 1599 में गठित जिसका नाम गवर्नर एंड कंपनी ऑफ मरचेंट्स ऑफ लंदन ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इंडिया।
31 दिसंबर 1600 में एक आज्ञा पत्र द्वारा इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने 15 वर्षों के लिए पूर्वी देशों से व्यापार करने की अनुमति प्रदान की।
1609 ईसवी का चार्टर:
1603 में महारानी एलिजाबेथ की मृत्यु तथा जेम्स प्रथम उत्तराधिकारी और इंग्लैंड के सम्राट बने।
1609 में कंपनी ने जेम्स प्रथम से नवीन व्यापारिक चार्टर प्राप्त किया।
1688 ईस्वी में इंग्लैंड में क्रांति हुई जेम्स द्वितीय का तख्तापलट तथा विलियम द्वितीय व उनकी बीवी मेरी को संयुक्त शासक बनाया गया।
1708 में जनरल सोसाइटी इंग्लिश कंपनी ट्रेडिंग इन द ईस्ट दोनों कंपनी पुरानी कंपनी में विलय हो गई।
1688 न्यू कंपनी, 1698 जनरल सोसायटी, 1698 इंग्लिश कंपनी ट्रेडिंग इन द ईस्ट यह सभी कंपनियों द्वारा 1708 में मूल कंपनी द यूनाइटेड कंपनी ऑफ मरचेंट्स ऑफ लंदन ट्रेडिंग टू द ईस्ट इंडीज का जन्म हुआ।

 कंपनी की व्यापारिक सफलताएं:

1608 कैप्टन हॉकिंस के नेतृत्व में हेक्टर नामक पहला अंग्रेजी जहाज सूरत बंदरगाह पर रुका।
हांकिंस तुर्की  भाषा बोल सकता था जो पहला अंग्रेज था जो समुद्री मार्ग से भारत आया।
1608 अकबर के नाम जेम्स प्रथम का पत्र लेकर हॉकिंस मुगल बादशाह जहांगीर के दरबार में पहुंचा और फारसी भाषा में बात की। प्रसन्न होकर जहांगीर द्वारा 400 का मनसब प्रदान किया गया।
1611 कैप्टन मिडल्टन ने स्वाली में पुर्तगाली जहाजी बेड़े को परास्त किया। जहांगीर अंग्रेजों से प्रभावित हुआ।
1613 में जहांगीर द्वारा सूरत में स्थाई कारखाना खोलने की अनुमति अंग्रेजों को प्रदान की गई।
1611 मसूलीपट्टम (मछलीपट्टनम) में अंग्रेजों द्वारा एक व्यापारिक कोठी बनाई गई।
1626 अरमागांव में दूसरी कोठी खोली।
1632 गोलकुंडा के सुल्तान ने सुनहरा फरमान (गोल्डन फरमान) दिया इसके द्वारा अंग्रेज 500 पेगोंडा वार्षिक देकर गोलकुंडा राज्य के बंदरगाहों पर स्वतंत्र व्यापार कर सकते थे।
1639 फ्रांसिस डे द्वारा चंद्रगिरी के राजा से मद्रास को पट्टे पर लिया गया जहां फोर्ट सेंट जॉर्ज नामक किला बंद कोठी बनाई।
1615 सर टॉमस रो जहांगीर के दरबार में आया।
1630 मेड्रिड की संधि, अंग्रेज और पुर्तगालियों के व्यापारिक संघर्ष का अंत।
1661 इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय का विवाह पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन के साथ हुआ पुर्तगालियों ने दहेज में बुम्बई द्वीप प्रदान किया।
1668 चार्ल्स द्वितीय ने 10 पाउंड सालाना किराए पर मुंबई को ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया।
1687 सूरत के स्थान पर मुंबई अंग्रेजों की मुख्य बस्ती बनी।
1633 हरिहरपुर व बालासोर (उड़ीसा ) में व्यापारिक कोठियां बनाएं।
1651 हुगली में ब्रजमैन के अधीन कोठी का निर्माण।
मक्का जाने वाले धर्म यात्रियों को बंदी बनाने पर औरंगजेब की सेना ने पराजित किया और सर जान चाइल्ड को औरंगजेब से माफी मांगनी पड़ी तथा जहाजों के साथ-साथ डेढ़ लाख रुपए हरजाने में देने पड़े।
1686 अंग्रेजों ने हुगली को लूटा तथा औरंगजेब ने पराजित किया तो अंग्रेज ज्वर ग्रस्त द्वीप पर भाग गए।
1690 जॉब चार्नोक द्वारा सूतानाती में एक अंग्रेजी कोठी स्थापित।
1698 बंगाल के सूबेदार azeem-o-shaan (अजीम उस सान) ने अंग्रेजों को सुतानाती, कालिकाता और गोविंदपुर 3 गांव की जमीदारी प्रदान की उक्त तीनों को मिलाकर किला बंद व्यावसायिक प्रतिष्ठान का नाम फोर्ट विलियम रखा गया।
1700 फोर्ट विलियम पहला प्रेसीडेंसी नगर घोषित।

 डेन (1616)

1616 डेनों का भारत आगमन ।
1620 तंजौर जिले के ट्रकेबोर में पहली फैक्ट्री स्थापित ।
1676 सीरमपुर (बंगाल) दूसरी फैक्ट्री स्थापित ।

फ्रांसीसी

1664 सम्राट लुई 14वें के समय उसके प्रसिद्ध मंत्री कोलबर्ट के प्रयास से फ्रांसीसी कंपनी कंपनी द एंड ओरिएंटल की स्थापना की गई।
फ्रांसीसी पहले मेडागास्कर दी पहुंचे।
1668 भारत में पहली कोठी फ्रेकोकेरो द्वारा सूरत में स्थापित।
1669 दूसरी कोठी मसूलीपट्टनम में स्थापित।
फैको मार्टिन और वेलांग द लेस्पिने ने शेर खां लोधी से छोटा गांव लेकर बस्ती बसाई जिसे पांडिचेरी नाम से जाना जाता है।
1697 रिजविक की संधि डचो द्वारा फ्रांसीसियों को पांडिचेरी वापस।

ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन (1773 से 1858 तक )

1600 में व्यापार करने के उद्देश्य से भारत आए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन 15 अगस्त 1947 तक रहा। इस दौरान कुछ ऐसी घटनाएं घटित हुई जिनके फलस्वरूप ब्रिटिश शासित भारत में सरकार और प्रशासन की विधिक रूप रेखा का निर्माण हुआ जो निम्न वत है।

और पढ़े भारत के गवर्नर जनरल एवं वायसराय 
1773 का रेगुलेटिंग एक्ट

ब्रिटिश सरकार द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने का पहला चरण था।
कंपनी को प्रशासनिक और राजनीतिक कार्यों की मान्यता प्राप्त।
बंगाल का गवर्नर अब बंगाल का गवर्नर जनरल पद नाम दिया गया।
पहला गवर्नर जनरल लार्ड वारेन हेस्टिंग्स बना।
मद्रास और मुंबई के गवर्नर बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन।
1774 में कोलकाता उच्चतम न्यायालय की स्थापना मुख्य न्यायाधीश सर एलिजा इम्पे व अन्य न्यायाधीश चैंबर्स लिमैस्टर एवं हाइड थे।

1784 पिट्स इंडिया एक्ट

रेगुलेटिंग एक्ट 1773 की कमियों को दूर करने के लिए यह नियम पारित किया गया। जिसे एक्ट ऑफ सेटलमेंट के नाम से जाना गया।
कंपनी के राजनैतिक और वाणिज्यिक कार्य पृथक कर दिए गए ।
एक नए नियंत्रण बोर्ड (बोर्ड ऑफ कंट्रोल) जो राजनैतिक मामलों का प्रबंधन हेतु गठन किया गया तथा व्यापारिक मामलों का अधीक्षण निदेशक मंडल के पास रहा। इस प्रकार द्वैध शासन की व्यवस्था अस्तित्व में आई।
भारत में कंपनी के अधीन क्षेत्र को पहली बार ब्रिटिश अधिपत्य का क्षेत्र कहा गया।
ब्रिटिश सरकार को भारत में कंपनी के कार्य और इसके प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया गया।

1833 का चार्टर अधिनियम

यह अधिनियम ब्रिटिश भारत के केंद्रीकरण की दिशा में पहला कदम था।
इस अधिनियम के अंतर्गत बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया । जिसमें सभी नागरिक और सैन्य शक्तियां शामिल थी।
लॉर्ड विलियम बेंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने।
इस अधिनियम के तहत सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन प्रारंभ करने का प्रयास किया गया।

1853 का चार्टर अधिनियम

इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल के परिषद के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यों को अलग किया गया।
भारतीय (केंद्रीय)विधान परिषद का गठन।
सिविल सेवकों की भर्ती एवं चयन हेतु खुली प्रतियोगिता व्यवस्था का शुभारंभ जिसमें भारतीय नागरिक भी शामिल हो सकते थे।
इसके लिए 1854 मैकाले समिति की नियुक्ति की गई।
इस अधिनियम में पहली बार भारतीय केंद्रीय विधान परिषद में स्थानीय प्रतिनिधित्व प्रारंभ किया गया।

ताज का शासन (1858 से 1947 तक)

1858 का भारत शासन अधिनियम

भारत के शासन को अच्छा बनाने वाला अधिनियम नाम से प्रसिद्धि।
ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त कर दिया गया और गवर्नरों और क्षेत्रों और राजस्व संबंधी शक्तियां ब्रिटिश राजशाही को हस्तांतरित कर दी गई।
इस अधिनियम के तहत भारत का शासन सीधे महारानी विक्टोरिया के अधीन हो गया ।
गवर्नर जनरल का पद बदलकर भारत का वायसराय कर दिया गया।
भारत का पहला वायसराय लॉर्ड कैनिंग को बनाया गया।
भारत में शासन की द्वैध प्रणाली समाप्त कर दी गई।
भारत के राज्य सचिव का नया पद बनाया गया। यहां ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी था।

1861 का भारत परिषद अधिनियम

इस अधिनियम के द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई।
1862 में लॉर्ड कैनिंग ने 3 भारतीयों बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधान परिषद में मनोनीत किया।
इस अधिनियम द्वारा मद्रास और मुंबई प्रेसिडेंसियों को विधायी शक्तियां पुनः देकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत की गई।
बंगाल, उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत और पंजाब में क्रमशः 1862, 1866 और 1897 में विधान परिषद का गठन हुआ।
पोर्टफोलियो प्रणाली को मान्यता दी गई।

1892 का अधिनियम

इस अधिनियम ने केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों दोनों में गैर सरकारी सदस्यों की नियुक्ति के लिए एक सीमित और परोक्ष रूप से चुनाव का प्रावधान किया।
हालांकि चुनाव शब्द का प्रयोग इस अधिनियम में कहीं नहीं किया गया था।

1909 का अधिनियम

यह अधिनियम को मार्ले मिंटो सुधार के नाम से भी जाना जाता है।
लॉर्ड मार्ले इंग्लैंड में भारत के राज्य सचिव और लॉर्ड मिंटो भारत में वायसराय थे इसी कारण इस अधिनियम का नाम मार्ले मिंटो सुधार कहा गया।
केंद्रीय परिषद में सदस्यों की संख्या को 16 से 60 कर दिया गया।
प्रांतीय विधान परिषद में सदस्यों की संख्या समान नहीं थी।
अनुपूरक प्रश्न पूछना तथा बजट पर संकल्प रखना आदि इस अधिनियम से अस्तित्व में आया।
इस अधिनियम में पहली बार सत्येंद्र प्रसाद सिंहा (भारतीय) वायसराय की कार्यपालिका परिषद में विधि सदस्य बनाया गया।

भारत शासन अधिनियम 1919

इस अधिनियम के तहत प्रांतीय विषयों को पुनः दो भागों में विभाजित किया गया हस्तांतरित और आरक्षित।
हस्तांतरित विषयों पर गवर्नर का शासन होता था।
आरक्षित विषयों पर गवर्नर कार्यपालिका परिषद की सहायता से शासन करता था।
द्विसदनीय व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन व्यवस्था प्रारंभ।
भारतीय विधान परिषद के स्थान पर द्विसदनीय व्यवस्था यानी राज्यसभा और लोकसभा का गठन किया गया।
एक लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।
इसमें पहली बार केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया।
इस अधिनियम के द्वारा एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया जिसका कार्य 10 वर्ष बाद जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था।

भारत शासन अधिनियम 1935

यह एक विस्तारित अधिनियम था जिसमें 321 धाराएं और 10 अनुसूचियां थी।
इस अधिनियम में संघीय सूची (59 विषय) राज्य सूची (54 विषय) और समवर्ती सूची (36 विषय) के आधार पर शक्तियों का बंटवारा किया गया।
अवशिष्ट शक्तियों पर वायसराय का अधिकार बना रहा।
प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था समाप्त कर दी गई तथा प्रांतीय स्वायत्तता का शुभारंभ हुआ।
केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली का प्रारंभ।
11 राज्यों में से छह में द्विसदनीय व्यवस्था प्रारंभ की गई।
दलित जातियों महिलाओं और मजदूर वर्ग के लिए अलग से निर्वाचन की व्यवस्था कर सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था का विस्तार किया गया।
भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई।
इस अधिनियम के तहत 1937 में संघीय न्यायालय की स्थापना की गई।
संघ लोक सेवा आयोग के साथ-साथ प्रांतीय सेवा आयोग का भी गठन किया गया।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947

20 फरवरी 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने घोषणा की कि 30 जून 1947 को भारत में ब्रिटिश शासन समाप्त हो जाएगा।
इस अधिनियम के द्वारा ब्रिटिश राज समाप्त कर 15 अगस्त 1947 को इसे स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र घोषित कर दिया।
इस अधिनियम के द्वारा भारत का विभाजन कर दो संप्रभु राष्ट्र भारत और पाकिस्तान का सृजन किया।
वायसराय के पद को समाप्त कर दिया गया।
ब्रिटेन में भारत सचिव का पद समाप्त कर दिया गया।
इस अधिनियम के तहत शाही उपाधि से भारत का सम्राट शब्द समाप्त कर दिया गया।

भारत के पडोसी देश (8) Bharat Ke Padosi Desh-Pakistan,Nepal,Afghanistan,Bhutan,Bangladesh,Sri lanka,Myanmar,China

भारत के पड़ोसी देश निम्नवत है :-

पाकिस्तान (Pakistan):-

•पाकिस्तान शब्द “चौधरी रहमत अली” की देन है।
• पाकिस्तान 14 अगस्त 1947 को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया।
• यह भारत, अफगानिस्तान, ईरान से सीमा साझा करता है।
•भारत के पडोसी देश पाकिस्तान को “नहरों का देश” कहा जाता है।

• अंगूर, सेब, अखरोट, बादाम, अंजीर, नारंगी और खजूर प्रमुख फलों का उत्पादन होता है।

•पाकिस्तान का संवैधानिक नाम “इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़” पाकिस्तान है।
“इस्लामाबाद” पाकिस्तान की राजधानी है।
• पाकिस्तान के उत्तर से दक्षिण की ओर क्रमशः हिंदूकुश, सुलेमान व किरथर पर्वत श्रेणियां हैं।
• हिंदूकुश श्रेणी की तिरिचमीर चोटी पाकिस्तान की सर्वोच्च चोटी है।
खैबर, गोलम, तोची, बोलन यहां के प्रमुख प्राकृतिक दर्रे हैं।

• पोतवार का पठार, बलूचिस्तान का पठार पाकिस्तान तक विस्तृत है।

• पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत (NWFP) में स्वात घाटी अवस्थित है जिसे “पाकिस्तान का स्वर्ग” कहा जाता है तथा “जियारत घाटी” बलूचिस्तान प्रांत में है।
• वज़ीरिस्तान तथा स्वात घाटी में तालिबानियों के सक्रिय होने के कारण “अशांत क्षेत्र” है।
•इसके पूर्व में अवस्थित “जैकोबाबाद” विश्व का सबसे अधिक गर्म प्रदेश है।

•साल्ट रेंज सेंधा नमक जिप्सम चूना पत्थर के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है।

सुई,मियाल क्षेत्र प्राकृतिक गैस, क्वेटा कोयले के लिए, सियालकोट खेल का सामान, कराची, लाहौर, मुल्तान सूती वस्त्र के लिए, मर्दान चीनी के लिए, नौशेरा कागज उद्योग के लिए प्रसिद्ध है।
काहुटा, खुशाब परमाणु रिएक्टर हैं।

•चगाई पहाड़ियों में पाकिस्तान का परमाणु परीक्षण केंद्र है।

• आबादी के मामले में पाकिस्तान दुनिया में पांचवा स्थान रखता है।

भारत के पडोसी देश

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नेपाल (Nepal):-

• उत्तर में चीनी सीमा तथा तीनों और बिहार, उत्तर प्रदेश(भारत के राज्यों) की सीमा साझा करता है।

• यहां हिमालय की तीनों श्रेणियां वृहद हिमालय, मध्य हिमालय (इसको नेपाल में महाभारत श्रेणी कहते हैं)। शिवालिक हिमालय मिलती है इसलिए इसे प्रायः हिमालयी राज्य कहा जाता है।

• यहां की लगभग 81% आबादी हिंदू धर्म मानने वाली है।

• विश्व की सबसे ऊंची 14 पर्वत चोटियों में से 8 नेपाल में स्थित है।

•विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (सागरमाथा ऊंचाई 8848 मीटर) धौलागिरी, कंचनजंगा, मकालू, अन्नपूर्णा, गौरीशंकर, ल्होत्से, चो-ओयू, मांसूल नेपाल में अवस्थित है।
काठमांडू घाटी तथा पोखरा घाटी नेपाल के मध्यवर्ती भाग में है।
•नेपाल में कोसी, बागमती, गंडक, काली, करनाली, अरुण सदानीरा नदियां हैं तथा सेती, भेरी,, त्रिशूली, तमूर अन्य नदियां हैं।

भारत के पडोसी देश

 अफगानिस्तान(Afghanistan):-

अन्य नाम- एरियाना (प्राचीन काल)

खुरासान- (मध्यकाल)

सर्वोच्च सभा- लोया जिरगा राजधानी – काबुल

सरकारी भाषा- पश्तो

प्रमुख पर्वतीय क्षेत्र- हिंदूकुश, कोहबाबा व चकाई पहाड़ियां।

प्रमुख नदियां- काबुल, कुर्रम, हेल्मंद, मोरघाव, खश ।

प्रमुख जनजातियां- पख्तून ताजिक व हजारा।

प्रमुख कृषि उत्पाद- अफीम, फल, सूखा मेवा, मूंगफली ऊन आदि।

प्रमुख शहर- कंधार, बामियान, गजनी,हेरात, मजार-ए-शरीफ।

• अफगानिस्तान में सुन्नी संप्रदाय को मानने वाली आबादी है।

• यहां का प्रमुख बंदरगाह चहाबहार बंदरगाह है।
• यह एक स्थल अवरुद्ध देश है, जो पाकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, और चीन से सीमा साझा करता है।

भारत के पडोसी देश

 भूटान(Bhutan):-

राजधानी- थिंपू

अन्य नाम- लैंड ऑफ़ थंडरबोल्ट

सबसे ऊंचा पर्वत- कुलाकांगड़ी

प्रमुख नदियां- संकोशु, तोंगसायू, मानस।

सीमा- भारत, तिब्बत (चीन)

भारत के पडोसी देश

 बांग्लादेश(Bangladesh):-

राजधानी- ढाका

औद्योगिक नगर- चटगांव, नारायणगंज, मेमन सिंह, रंगपुर, ढाका,खुलना आदि।

• बांग्लादेश विश्व के सबसे बड़े डेल्टा गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा पर स्थित है ।

“कॉक्स बाजार” विश्व की सबसे बड़ी बलुई पुलिन यही स्थित है।
• बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र को “जमुना” कहा जाता है। गंगा में मिलने के बाद संयुक्त धारा को “पदमा” कहा जाता है।
• बांग्लादेश में नदियों और वितरिकाओ का जाल बिछा होने के कारण इसे “नदियों का देश” कहा जाता है।
• इसे धान व जूट के अधिक उत्पादन के कारण इसे “सोनार बांग्ला” कहा जाता है।
•यहां का सबसे बड़ा पतन “चटगांव” है।

भारत के पडोसी देश

 श्रीलंका(Sri lanka):-

– रत्नदीप

-पूर्व का मोती

-सिलोन (1972 तक)

-लंका (1972 से)

-श्रीलंका (1978 से राजधानी)

-कोलंबो (आर्थिक राजधानी)

-श्री जयवर्धनेपुर कोट्टे (राजधानी)

पाक जलसंधि श्रीलंका को भारत से अलग करती है।
आदम का पुल:- यह एक समुद्र में डूबी प्रवाल द्वीप की रेखा जो भारत में रामेश्वरम के पास धनुष्कोड़ी और श्रीलंका में तलैया मन्नार तक विस्तृत है।
पिथुराथालागला– श्रीलंका की सबसे ऊंची चोटी।
आदम शिखर– यह एक पवित्र पर्वत यहां माना जाता है।
महाबली गंगा– श्रीलंका की सबसे लंबी नदी।
अन्य नदियां – यान और अरूबी केलानी नदी।

• प्रमुख फसलें- चावल, रबड़, नारियल, मसाले।

• श्रीलंका की राष्ट्रीय आय का प्रमुख साधन चाय का निर्यात होना।

• पत्तन- कोलंबो, जाफना, हंबनटोटा।

बुद्ध के दांत:- श्रीलंका के बौद्ध मंदिरों का बुद्ध के दांत के कारण अत्यधिक महत्व है।

भारत के पडोसी देश

 म्यांमार(Myanmar):-

• जनवरी 1948 को स्वतंत्र हुआ।

• इसे पूर्व में बर्मा (Burma) या ब्रह्म देश कहा जाता था।
• इसकी राजधानी पूर्व में रंगून (यांगून) वर्तमान में नैपीडाओ (Naypyidaw) है ।
•अक्टूबर 1991 आन-सू-की को शांति का नोबेल पुरस्कार मिला।
ऐयारवाडी म्यांमार की सबसे लंबी नदी है, जो 2170 किलोमीटर लंबी है।
• इसे स्वर्ण पैगोड़ो का देश कहा जाता है।

•बांग्लादेश, भारत, चीन, लाओस, और थाईलैंड से इसकी सीमा मिलती है।

अराकानयोमा यहां की प्रमुख पर्वत श्रेणी है।
हकाकाबोराजी म्यांमार की सबसे ऊंची चोटी है।

•अराकानयोमा, चिन, नागा, पटकोई पर्वत श्रेणियां जो दक्षिण से उत्तर इसी क्रम में स्थित है।

• यहां के शान पठार व कायिन्नी पठार खनिजों से भरपूर है यहां के सागवान टीक वन संसार में सर्वश्रेष्ठ है।

•इरावती, सितांग और सालवीन प्रमुख नदियां हैं। इरावदी नदी को “म्यांमार की जीवनधारा” कहते हैं
•यहां स्थित सालवी व इरावती नदी का दोआब सुदूर पूर्व का “चावल का कटोरा” कहा जाता है।

•सालवीन नदी के पूर्व में “स्वर्ण त्रिभुज” गोल्डन है, जो “अफीम” की खेती के लिए प्रसिद्ध है।

“स्वर्ण त्रिभुज” (Golden triangle)वर्मा, थाईलैंड ,लाओस वियतनाम देश आते हैं ।
दुर्लभ माणिक्य रत्न के लिए म्यांमार विश्व प्रसिद्ध है

भारत के पडोसी देश

 चीन(China):-

• चीन की राजधानी बीजिंग है।

• क्षेत्रफल की दृष्टि से चीन दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है।

• जनसंख्या की दृष्टि से यह विश्व का पहला देश है।

• चीन की सीमा 14 देशों से मिलती है-
– कजाखस्तान
– किर्गिस्तान
-ताजिकिस्तान
– अफगानिस्तान
-पाकिस्तान
-भारत
-नेपाल
-भूटान
-म्यांमार
-लाओस
-वियतनाम
-उत्तरी कोरिया
-रूस
-मंगोलिया

•दुनिया का सबसे बड़ा पठार तिब्बत का पठार इसके अधिकार क्षेत्र में है, जहां से सिंधु, ब्रह्मापुत्र, सतलज, मेंकांग, साल्वीन आदि नदियों का उद्गम होता है।

तकला मकान पठार चीन का ठंडा तथा निर्जन पठार है।

•चीन के उत्तरी भाग में गोबी का मरुस्थल स्थित है।

जूंगेरियन घाटी चीन और मध्य एशिया के बीच प्रवेश द्वार है।
क्यूनलुन, तिएनसान और नानसान प्रमुख पर्वत श्रेणियां हैं।
यांग्त्सीक्यांग, सिक्यांग और ह्वागहो यहां की प्रमुख नदियां हैं।
•ह्वांगहो नदी का पानी पीली मिट्टी होने के कारण पीला दिखता है। इसलिए इसे पीली नदी भी कहते हैं।
• गेहूं, चावल, कपास, सूती वस्त्र व रेशमी वस्त्रों के उत्पादन में चीन विश्व में प्रथम स्थान रखता है।
कैंटन, शंघाई, बीजिंग सूती वस्त्र उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
• शंघाई को चीन का मैनचेस्टर कहा जाता है।

• शंघाई चीन का सबसे बड़ा पतन है।

• अन्शान, मुकदेन को चीन का पिट्सबर्ग कहते हैं, क्योंकि यहां लौह इस्पात उत्पादन का प्रमुख केंद्र है।
पर्ल नदी डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र बन गया है।
जेचवान क्षेत्र चावल उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
हुन्नान और शान्सी प्रांत गेहूं उत्पादन के लिए जाने जाते हैं।
यांग्त्जी घाटी व ह्वांगहो घाटी कपास उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
• दक्षिण मंचूरिया, तापेह व शांतुंग लोहा व एंटीमनी के उत्पादन क्षेत्र हैं।
•शांन्सी, शेन्सी, हैबेर्ड कोयला उत्पादक क्षेत्र है।
•क्यांग सी, क्वांगतुंग, यून्नान टीन व टंगस्टन उत्पादन के प्रमुख केंद्र है।
•जेचवान, कांसू और सिक्यांग पेट्रोलियम उत्पाद के लिए प्रसिद्ध है।

भारत के पडोसी देश

सम्राट अशोक (Ashoka) (273 ई.पू.से 232 ई.पू.) Maurya emperor “Ashoka the great”

 सम्राट अशोक (273 ई.पू.से 232 ई.पू.)

पिता– बिंदुसार या अमित्रचेट्स/अमित्रघात
माता– धम्मा (महाबोधि वंश बौद्ध ग्रंथ में)
-पासादिका (दिव्यावदान ग्रंथ में)
-सुभ्रद्रांगी (अवदान माला ग्रंथ में) पत्नी- असंघमित्रा
-महादेवी
-पद्मावती
-तिष्पराक्षिता
-कारूवाकी (प्रयाग स्तंभ लेख द्वारा)
पुत्र   – कुणाल
-महेंद्र
पुत्रियां  – संघमित्रा
– चारुमति
अशोक के अन्य नाम:-
-देवानामप्रिय
-प्रियदर्शी (भाब्रू अभिलेख)
-बुद्ध शाक्य (मास्की अभिलेख)                                                               -अशोक (मस्की, गुर्जरा,नेत्तूर और उड़ेगोलम अभिलेखों में)
-अशोक (रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख में)
-अशोक वर्धन (पुराणों में)

 

सम्राट अशोक
और पढ़े जनजातीय विद्रोह 
सर्वप्रथम टिफेन थेलर महोदय ने 1750 ई. में दिल्ली- मेरठ अभिलेख की खोज की थी। अशोक के दिल्ली टोपरा अभिलेख को जेम्स प्रिंसेप ने सन् 1837 ई. में सर्वप्रथम पढ़ने में सफलता प्राप्त की।
अशोक के अभिलेखों को शिलालेखों, स्तंभलेख व गुहा लेखों में वर्गीकृत किया गया है।
अशोक के सभी अभिलेखों की भाषा प्राकृत है तथा इनकी लिपि ब्राह्मी खरोष्टी आरमेइकयूनानी है।
अशोक को बौद्ध धर्म की दीक्षा बौद्ध भिक्षु उपगुप्त ने दी थी।
सम्राट अशोक 273 ई.पू.में सिंहासन पर बैठा परंतु उसका राज्याभिषेक 4 साल बाद 269 ई.पू. में हुआ ।
अभिषेक के 8 वर्ष बाद 261 ई.पू. में कलिंग का युद्ध लड़ा। जिसका उल्लेख अशोक के 13वें शिलालेख में मिलता है।
कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार को देखकर सम्राट अशोक की अंतरात्मा को बहुत आघात पहुंचा और उसने दिग्विजय के स्थान पर धम्म विजय की नीति को अपनाया तथा सदा के लिए युद्ध की नीति को त्याग दिया।
अशोक द्वारा कश्मीर में श्रीनगर तथा नेपाल में देवपत्तन नामक दो नगरों को बसाया ।
इसके कौशांबी अभिलेख को रानी का अभिलेख कहा जाता है। अशोक ने सहिष्णुता, उदारता, और करुणा के त्रिविध आधार पर राजधर्म की स्थापना की थी।
भारत का प्रथम अस्पताल व औषधि बाग का निर्माण अशोक द्वारा कराया गया था।
अपने बड़े भाई सुमन के पुत्र निग्रोथ से प्रेरित होकर उपगुप्त से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।
सम्राट अशोक ने ईरान का शासक डेरियस जो हखमनी वंश का शासक था, उसी से प्रेरित होकर अभिलेख लिखवाना प्रारंभ किया।
अशोक ने भारत में ब्राह्मी लिपि, पाकिस्तान में खरोष्टी, अफगानिस्तान में अरमाइक तथा ग्रीक में ग्रीक (तुर्की/एशिया माइनर) भाषा में लिखवाये है।
अशोक अपने बड़े भाई के पुत्र निग्रोथ के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुआ तथा उसके प्रवचन सुनकर बौद्ध धर्म अपना लिया, लेकिन उपगुप्त द्वारा सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म की दीक्षा प्राप्त हुई।
बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद अशोक द्वारा एक उपासक के रूप में उसने
बोधगया (10 वे वर्ष) निगालि सागर (12 वे वर्ष) तथा लुंबिनी (20 वे वर्ष) की यात्रा की।
अशोक द्वारा बराबर की पहाड़ियों में चार गुफाओं का निर्माण कराया गया कर्ज, चौपार, सुदामा तथा विश्व झोपड़ी था, जो कि आजीवको का निवास स्थान था।
आजीवको को नागार्जुन गुफा अशोक के पुत्र दशरथ द्वारा प्रदान की गई थी।
बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा| इनके अलावा निम्नवत धर्म प्रचारक भेजे गए-
महादेव (महिषमंडल मैसूर)
रक्षित (वनवासी कर्नाटक)
मज्झिम (हिमालय देश)
धर्म रक्षित (उपरांतक) मज्झान्तिक (कश्मीर तथा गांधार)
महारक्षित (यूनान देश)
महाधर्म रक्षित (महाराष्ट्र)
सोना तथा उत्तरा (सुवर्ण भूमि) आदि।
बौद्ध ग्रंथ दीपवंश तथा महावंश के अनुसार बौद्ध धर्म की तृतीय संगीति सम्राट अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र में हुई जिसकी अध्यक्षता मोग्गलिपुत्त तिस्स बौद्ध भिक्षु द्वारा की गई थी।

अशोक के शिलालेख (rock edicts)                                                अशोक के शिलालेखों को प्रमुख दो भागों में बांटा जाता है
1. दीर्घ शिलालेख
2. लघु शिलालेख

1.दीर्घ शिलालेख :-
दीर्घ शिलालेखों की कुल संख्या 14 है जो 8 स्थानों से प्राप्त हुए हैं

1.शाहबाजगढ़ी- पेशावर (पाकिस्तान)
2.मानसेहरा- हजारा (पाकिस्तान)
3.कालसी- देहरादून (उत्तराखंड, भारत)
4.गिरनार- जूनागढ़ (काठियावाड़, गुजरात, भारत)                            5.धौली – पुरी (उड़ीसा, भारत)                                                     6.जौगढ़- गंजाम (उड़ीसा, भारत)
7.एर्रगुडि – कर्नूल (आंध्र प्रदेश, भारत)
8. सोपारा- थाना (महाराष्ट्र, भारत)

प्रथम लेख:-

इस लेख में पशुबलि की निंदा की गई। जीव हत्या पर निषेध के बारे में लिखा गया है:- यहां कोई भी जीव मारकर बलि न दिया जाए और न कोई ऐसा उत्सव मनाया जाए जिसमें पशुओं की हत्या की जाए।

दूसरा लेख:-

* चोल, पांण्ड़य, सातीयपुत्र, केरलपुत्र (चेर) और ताम्रपर्णी (श्रीलंका) की जानकारी प्राप्त होती है।
*मनुष्य एवं पशुओं की चिकित्सा का प्रबंध किया गया।
*औषधीय जड़ी बूटियों के लगाने की सूचना प्राप्त होती है।

तीसरा लेख:-

अशोक के इस शिलालेख में प्रशासन के तीन महत्वपूर्ण अधिकारियों के नाम मिलते हैं –
1.युक्त- इसका कार्य जिला स्तर पर राजस्व बसूलना था।
2. रज्जुक- यह एक भूमि की पैमाइश करने वाला अधिकारी होता था, जो वर्तमान के “बंदोबस्त अधिकारी” की तरह कार्य करता था।
3. प्रादेशिक- यह मंडल स्तर का प्रमुख अधिकारी होता था, जो न्याय के कार्य का निर्वहन करता था।
उपरोक्त तीनों अधिकारियों के बारे में अशोक अपने इस अभिलेख में कहता है:-
कि मैंने अपने राज्यभिषेक के 12वें वर्ष बाद यह आज्ञा जारी की कि मेरे साम्राज्य में सभी जगह युक्त, रज्जुक तथा प्रादेशिक प्रत्येक पांचवें वर्ष राज्य का दौरा करें जिससे वे प्रजा को धर्म की और अन्य कार्यों की शिक्षा दे सकें।
माता पिता की आज्ञा मानना, मित्रों, संबंधियों, ब्राह्मणों एवं श्रमणों के प्रति उदार भाव रखना। जीवो पर हिंसा न करना, अल्प व्यय और अल्प संचय अच्छी बात है।

चौथा लेख:-

प्रियदर्शी के धर्म आचरण से इसमें भेरीघोष की जगह धम्म घोस की घोषणा की गई है।
जीवित प्राणियों के बध और हिंसा का त्याग, ब्राह्मणों, संबंधियों और श्रवणों का आदर, माता-पिता का आज्ञा पालन इतना बढ़ गया है, जितना पहले कई सौ वर्षों तक नहीं हो पाया था।

पांचवा लेख:-

इसमें अशोक के अभिषेक के 14वें वर्ष में धर्म महामात्रो की नियुक्ति की जानकारी मिलती है।
इसमें अशोक कहता है “उपकार करना कठिन है और जो भला करता है वह एक कठिन कार्य करता है।”
धम्महामात्र जनता के बीच में उनके कल्याण तथा उनके सुख के लिए और उनके कष्ट दूर करने के लिए प्रयास कर रहे हैं।

छठा लेख:-

इस लेख में आत्म नियंत्रण की शिक्षा दी गई है। इस लेख में सम्राट अशोक कहता है “कि मुझे हर समय प्रजा के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जाए चाहे मैं भोजन पर, अंत:पुर में या में शयनकक्ष में क्यों ना हो।”

सातवां लेख:-

इस लेख में अशोक सभी संप्रदाय के लोगों के निवास की बात करता है, कि वह सभी जगह निवास करें।

आठवां लेख:-

इसमें अशोक के अभिषेक के 10वें वर्ष बोधगया से प्रारंभ की गई धम्मयात्रा की जानकारी प्राप्त होती है।

नवां लेख:-

इसमें अशोक विभिन्न मंगलाचार अर्थात शिष्टाचार की बात करता है जिसमें गुरुजनों, ब्राह्मणों, दासों, सेवकों आदि के साथ शिष्ट व्यवहार करना चाहिए।

दसवां लेख:-

इस लेख में अशोक द्वारा आदेशित किया गया है कि “राजा तथा उच्च अधिकारी सभी प्रजा के हितों के बारे में सोचें।”
इसमें सम्राट अशोक द्वारा यश और कीर्ति की जगह धम्म का पालन करने पर जोर दिया है।

ग्यारहवां लेख:-

इस लेख में धम्म की व्याख्या की गई है।
“धम्म जैसा कोई दान नहीं, धम्म जैसी कोई प्रशंसा नहीं, धम्म जैसा कोई बंटवारा नहीं और धम्म जैसी कोई मित्रता नहीं।”

बारहवां लेख:-

इसमें अशोक ने सभी महामात्रों की नियुक्ति तथा सभी के विचारों का सम्मान करने की बात कही है।
सभी संप्रदायों की वृद्धि हो क्योंकि सबका मूल संयम है लोग अपने संप्रदाय की प्रशंसा तथा दूसरों के संप्रदाय की निंदा न करें।

तेरहवां लेख:-

अशोक के इस लेख में कलिंग युद्ध तथा उसके हृदय परिवर्तन की बात कही गई है।
अशोक अपने राज्य की जंगली जनजातियों को संतुष्ट रखता है और यह कहता है “कि उसका हृदय परिवर्तन हुआ न कि शक्ति क्षीण हुई है।”
इसमें 5 यवन राजाओं के नामों का वर्णन है जहां धर्म प्रचारक भेजे गए-
अन्तियोक (यमन)
तुलामाया (मिस्र)
अंतेकिन (मकदूनिया)
मक (साइरीन का मैगास)                                                            आलिक्य सुंदर या आलिक्य शुदल(एपिरस का अलेक्जेण्ड़र)।
दक्षिण भारत के चोल, पांण्ड्य, सातियपुत्र, केरलपुत्र (चेर) और ताम्रपर्णी पर विजय तथा सभी धर्म का पालन करते हैं।

चौदहवां लेख:-

इस लेख में अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करता है।

महात्मा गाँधी (1869-1948) |पुस्तकें|संस्थाये|आन्दोलन |राजनितिक गुरु

mahatma gandhi ka jivan parichay
सत्य, अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी का जीवन परिचय जानना ही हमारे जीवन के क्या उद्देश्य होने चाहिए इसकी अनुभूति कराते हैं। शान-शौकत का जीवन छोड़कर अर्ध्द नंगे फकीर की भांति जीवन जीने वाले महात्मा गाँधी का जीवन परिचय कौन नहीं जानना चाहेगा। उस महापुरुष ने बिना किसी हथियार के प्रयोग से उस कालखंड की महाशक्ति से भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आज भी संपूर्ण विश्व गांधी जी के आदर्शों का लोहा मानता है। दोस्तों आज हम लोग इस लेख में शांति के दूत उनके द्वारा स्थापित संस्थाएं, पुस्तकें,आंदोलन, महत्वपूर्ण घटनाएं, वंशज, जन्म, मृत्यु, आदि के बारे में चर्चा करेंगे।
महात्मा गांधी:-
• मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के काठियावाड़ के पोरबंदर स्थान पर हुआ था।
•महात्मा गांधी Mahatma Gandhi जी के पिता करमचंद गांधी एक कट्टर हिंदू थे जो कि दीवान थे।                                                                         
 • इनका विवाह कस्तूर बाई (कस्तूरबा) के साथ हुआ, उस समय उनकी उम्र मात्र 13 वर्ष थी।
• 18 वर्ष की उम्र में गांधीजी को पुत्र प्राप्ति हुई।

•महात्मा गांधी जी के प्रथम पुत्र का स्वर्गवास हो जाने के बाद उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति हुई:-

-हरीलाल गांधी (1888)                                                                  -मणिलाल गांधी (1292)
-रामदास गांधी (1897)
-देव दास गांधी (1900)

महात्मा गाँधी

• महात्मा गांधी Mahatma Gandhi ने बैरिस्टरी की पढ़ाई इन्होंने इंग्लैंड से प्राप्त की।       

• 1893 में एक व्यापारी दादा अब्दुल्ला का मुकदमा लड़ने दक्षिण अफ्रीका गए इसी दौरान उन्हें प्रजातिय उत्पीड़न, भेदभाव गोरो द्वारा काले लोगों से रंगभेद आदि के बारे में कटु व्यवहार का अनुभव हुआ।

• रेलवे के प्रथम श्रेणी डिब्बे में डरबन से प्रिटोरिया की यात्रा करते समय इन्हें एक गोरे ने पुलिस की सहायता से मेरित्सबर्ग स्टेशन पर धक्का देकर नीचे उतार दिया। इस घटना ने गांधी जी के जीवन में नया मोड़ ला दिया।

• दक्षिण अफ्रीका में भारतीय तीन वर्गों में संगठित थे:-
-दक्षिण भारत से आए मजदूर
–  गन्ने के खेत में काम करने वाले मजदूर
-मेमन मुसलमान मजदूर
•”एशियाटिक रजिस्ट्रेशन एक्ट” के तहत प्रत्येक भारतीय को दक्षिण अफ्रीका में पंजीकरण प्रमाण पत्र हमेशा पास रखना पड़ता था तथा कर अदा करना होता था।
• पहली सफलता गांधीजी को 1906 में एशियाटिक रजिस्ट्रेशन एक्ट को समाप्त करवाने में प्राप्त हुई ।
1894 में गांधीजी ने अफ्रीका में “नटाल इंडियन” कांग्रेस की स्थापना की तथा कई बार जेल गए।
• 1910 में गांधी जी ने “टाल्सटाय फार्म” की स्थापना अपने एक जर्मन शिल्पकार मित्र “कालेन बाख” की मदद से की।
• दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी द्वारा “इंडियन ओपिनियन” नामक अखबार का प्रकाशन प्रारंभ किया।

• महात्मा गांधी Mahatma Gandhi जी को दक्षिण अफ्रीका में 1914 में अधिकांश काले कानूनों को रद्द कराने में प्रयोग किए गए अहिंसक सत्याग्रह आंदोलन के द्वारा पहली महान सफलता प्राप्त हुई।

* दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी द्वारा 1904 में “फिनिक्स आश्रम” की स्थापना की गई।

• सत्य और अहिंसा का प्रयोग 1906 में करके गांधी जी द्वारा अवज्ञा आंदोलन जिसे “सत्याग्रह” नाम दिया गया प्रारंभ किया।

• गांधी जी द्वारा स्वराज की व्याख्या अपनी पुस्तक “हिंद स्वराज” (1909) में की गई।

•दक्षिण अफ्रीका में रह रहे भारतीयों का इकरारनामा समाप्त होने पर उन पर 3 पाउंड का कर लगा दिया जाता था। जिसे रद्द कराने में गांधीजी की अहम भूमिका रही।

•अफ्रीकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा विवाह पंजीकरण प्रमाण पत्र आवश्यक कर दिया। जो केवल ईसाई पद्धति से संपन्न शादियों को प्रदान किया जाता था, अन्य पद्धति से संपन्न शादियां अवैध घोषित मानी गई, जो कि भारतीयों ने अपनी महिलाओं और बच्चों का अपमान समझा को समाप्त कराने में गांधीजी का योगदान रहा।

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•जनवरी 1915 में गांधीजी अफ्रीका से भारत वापस आ गए और “गोपाल कृष्ण गोखले” को अपना राजनीतिक गुरु बनाया।

•प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) में गांधी जी द्वारा लोगों को सेना में भर्ती हेतु इस आशय से प्रेरित किया गया कि युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार स्वराज प्रदान करेंगी इसी कारण गांधी जी को “भर्ती करने वाला सार्जेंट” भी कहा गया।

• गांधी जी द्वारा 1916 में साबरमती आश्रम (अहमदाबाद) की स्थापना की गई।

• गांधीवादी तरीके (सत्याग्रह) को आजमाने का अवसर गांधी जी को अपने चंपारण आंदोलन (1917) अहमदाबाद मजदूर आंदोलन (1918) तथा खेड़ा आंदोलन (1918) में प्राप्त हुआ।      •महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर 30 जनवरी 1948 को उस समय कर दी गई, जब वह बिरला भवन (बिरला हाउस) में शाम को टहल रहे थे।

चंपारण सत्याग्रह (1917):-

महात्मा गांधी Mahatma Gandhi जी द्वारा भारत में सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग बिहार के चंपारण (1917) में किया गया। •इस आंदोलन का प्रमुख कारण तिनकठिया पद्धति था जिसमें किसानों को अपनी भूमि के कम से कम 3/20 भाग पर नील की खेती करना तथा मालिकों द्वारा निर्धारित दामों पर बेचने का अनुबंध करा लिया गया था।

•जर्मनी में रासायनिक रंग (डाई) का विकास हो गया था। जिसके कारण बागान मालिकों ने नील की खेती बंद कर दी तथा किसान भी इससे छुटकारा चाहते थे। इसी का फायदा उठाकर मालिकों ने इसकी फसल न करने पर किसानों पर लगान व अन्य करो की दरों में वृद्धि कर दी।

• 1917 में चंपारण के किसान “राजकुमार शुक्ला” लखनऊ में गांधी जी से मिले तथा चंपारण आने का आग्रह किया।

• चंपारण मामले की जांच करने में महात्मा गांधी Mahatma Gandhi जी के सहयोगी राजेन्द्र प्रसाद, बृज किशोर, मजहर-उल- हक, नरहरि पारिख, महादेव देसाई, जेबी कृपलानी थे।

• अनुग्रह नारायण सिन्हा, शंभू शरण वर्मा और रामनवमी प्रसाद इस सत्याग्रह से संबंधित अन्य लोकप्रिय नेता थे।

• चंपारण किसानों को हर्जाना दिया जाए तथा गोरे बागान मालिकों द्वारा अवैध वसूली का 25% हिस्सा किसानों को लौटाने पर सहमति बनी।

• गांधी जी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रथम आंदोलन सफलतापूर्वक जीत लिया गया।

“एनजी रंगा” ने महात्मा गांधी के चंपारण आंदोलन का विरोध किया था।
रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा गांधी जी को चंपारण सत्याग्रह के दौरान “महात्मा” की उपाधि प्रदान की गई।

गांधी जी के वंशज
देखा जाए तो महात्मा गांधी जी के वंशज आज भी विश्व के विभिन्न देशों में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं गांधीजी के 4 बेटे व 13 पोते पोतियां थी। जिनके पीढ़ी दर पीढ़ी लगभग 154 सदस्य दुनिया के विभिन्न देशों में निवास कर रहे हैं।