भूदान आंदोलन भूमि वितरण को समान बनाने तथा देश में असमान भूमि जोत गरीबी, बेकारी को मिटाने के लिए प्रसिद्ध गांधीवादी नेता आचार्य विनोबा भावे द्वारा भारत में 18 अप्रैल 1951 में शुरू किया गया, भूदान आंदोलन जिसे भूमि दान आंदोलन भी कहा जाता है।
और पढ़े :-भारत में पर्यावरण आंदोलन|चिपको(1974)|विश्नोई(1730)|अप्पिको(1983)
यह एक सामाजिक सुधार आंदोलन था। इसका मुख्य उद्देश्य भूमिहीन किसानों को भूमि प्रदान करना और सामाजिक-आर्थिक असमानता को कम करना था। यह आंदोलन अपने में एक बृहद रचनात्मक कार्य था, जो महात्मा गांधी के सिद्धांतों से प्रेरित था और अहिंसा, स्वैच्छिक दान, और सामुदायिक सहयोग पर आधारित था।
उत्पत्ति :-
आंदोलन की शुरुआत 18 अप्रैल 1951 को तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव में हुई, जब विनोबा भावे ने वहां के जमींदारों से भूमिहीन किसानों के लिए जमीन दान करने की अपील की। मार्च 1956 तक इस कार्यक्रम में दान के रूप में 40 लाख एकड़ जमीन मिल गई थी यह करीब दो लाख परिवारों में बांटी गई एक जमींदार, वेदिरे रामचंद्र रेड्डी, ने 100 एकड़ जमीन दान की, जिससे आंदोलन को गति मिली।
उद्देश्य :-
इस आंदोलन के द्वारा अहिंसात्मक तरीके से भूमि वितरण की समानता तथा इसके माध्यम से सामाजिक परिवर्तन लाना था।
* भूमिहीन किसानों और हरिजनों को जमीन प्रदान करना।
* सामाजिक समानता को बढ़ावा देना और जमींदारी व्यवस्था के प्रभाव को कम करना।
* विनोबा भावे ने सर्वोदय समाज (सभी का उत्थान) की स्थापना की।
कार्यप्रणाली :-
* विनोबा भावे ने देश भर में अपने अनुयायियों के साथ गांव-गांव पैदल यात्रा की तथा जमींदारों, धनी लोगों से स्वेच्छा से अपनी जमीन का 1/6 वाॅं हिस्सा दान करने को कहते और यह जमीन इस गांव के भूमिहीन किसानों, विशेषकर समाज के वंचित वर्गों में वितरित कर दी जाती थी।
* यह आंदोलन अहिंसक और स्वैच्छिक था। इस कार्यक्रम की लोकप्रियता तथा रचनात्मकता को देखकर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के प्रमुख जयप्रकाश नारायण और कई कांग्रेसी नेता सक्रिय राजनीति छोड़कर इस आंदोलन में जुड़ गए। इस आंदोलन की विशेषता यह रही कि, इसमें किसी पर जोर जबरदस्ती या बल का प्रयोग नहीं किया गया।
प्रभाव :-
* भूदान आंदोलन के तहत देश भर में लगभग 40 लाख एकड़ जमीन दान की गई, इस आंदोलन में बंजर तथा विवादित भूमिका का भी वितरण कर दिया गया था। जिससे किसानों को समस्याओं का सामना करना पड़ा।
* इस आंदोलन ने सामाजिक जागरूकता उत्पन्न की और ग्रामीण भारत में भूमि सुधार के लिए प्रोत्साहित किया।
भूदान आंदोलन की रचनात्मकता के चलते तथा जनता का उत्साह देखते हुए 1955 में उड़ीसा में एक अन्य आंदोलन ग्रामदान आंदोलन (गांवों का दान) और संपत्तिदान आंदोलन प्रारंभ किया गया।
चुनौतियां :-
* दान की गई जमीन का वितरण और प्रबंधन कुछ समय बाद निष्प्रभावी हो चुका था।
* कुछ चालक जमीदारों ने ऐसी भूमि का वितरण किया जो पहले से ही बंजर या अनुपजाऊ थी। इससे जिन भूमिहीनों को लाभ होना था उन्हें उस प्रकार का वास्तविक लाभ नहीं मिल सका।
उस समय भूमि के हस्तांतरण में अनेक प्रकार की प्रशासनिक और कानूनी जटिलताएं थी। जिसके कारण इस आंदोलन की गतिशीलता प्रभावित हुई ।
वर्तमान स्थिति :-
* वर्तमान समय में भूदान आंदोलन का प्रत्यक्ष प्रभाव कम हो गया है, लेकिन भूदान आंदोलन ने भूमि सुधार और सामाजिक समानता के लिए एक महत्वपूर्ण मॉडल प्रस्तुत किया।
* यह आंदोलन वर्तमान समय में भी सामाजिक कार्यकर्ताओं और सुधारकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
निष्कर्ष :-
भूदान आंदोलन एक अनूठा प्रयोग था, जिसने भारत में सामाजिक-आर्थिक न्याय को बढ़ावा देने की कोशिश की। विनोबा भावे की अहिंसक और स्वैच्छिक दृष्टिकोण ने इसे एक ऐतिहासिक पहल बनाया, हालांकि इस आंदोलन की कुछ सीमाओं के कारण यह पूर्ण रूप से अपनी क्षमता तक नहीं पहुंच सका।
इन्हे भी जाने :-भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन(20वीं सदी )