सैयद वंश के शासको द्वारा प्रजा को प्रभावित करने वाला कोई कार्य नहीं किया गया। उस समय के शासको की भांति साम्राज्य विस्तार की कोशिश नहीं की गई और न ही प्रशासनिक सुधारो का प्रयत्न किया गया। इसलिए सैयद शासको द्वारा ऐसा कोई कार्य नहीं किया गया जिसे प्रजा आदर्श मानती फलस्वरुप विभाजन की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिला। सैयद वंश का शासन काल केवल 37 वर्ष तक रहा, जो की राजनीतिक दृष्टि से दिल्ली के 200 मील के घेरे तक सिमट कर रह गया।
सैयद वंश के शासक :-
खिज्र खां (1444-1421 ई.):-
* खिज्र खां सैयद वंश का संस्थापक था। इसके पिता का नाम मलिक सुलेमान था। जिसे मुल्तान का सूबेदार मलिक मर्दान दौलत अपना पुत्र मानता था।
•खिज्र खां को सुल्तान फिरोज ने मुल्तान का सूबेदार नियुक्त किया था। लेकिन सारंग खां द्वारा उसे 1395 में मुल्तान से भगाने के लिए मजबूर कर दिया। फलस्वरुप खिज्र खां मेवात चला गया।
•कालांतर में खिज्र खां द्वारा तैमूर का साथ दिया गया। जब तैमूर भारत से गया उसने खिज्र खां को मुल्तान, लाहौर और दीपालपुर की सूबेदारी प्रदान की।
•सन 1414 ई. में खिज्र खां द्वारा दौलत ख़ां लोधी को पराजित कर दिल्ली पर कब्जा कर लिया गया। इस प्रकार खिज्र खां दिल्ली का पहला सैयद सुल्तान बना।
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•खिज्र खां दिल्ली का सुल्तान बना, लेकिन उसने सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की इसके स्थान पर उसने ” रैयत-ए-आला” की उपाधि धारण की।
•खिज्र खां एक स्वतंत्र शासक था, लेकिन वह तैमूर के पुत्र शाहरुख को निरंतर भेंटे और राजस्व पहुंचाता था। इस कारण वह अपने को शाहरुख के अधीन मानता था उसने शाहरुख के नाम से ही खुत्बा भी पढ़ाया हालांकि व्यावहारिक दृष्टि से अधीनता ऐसी कोई बात नहीं थी।
•खिज्र खां द्वारा दिल्ली पर अधिकार होने से पंजाब, मुल्तान और सिंध दिल्ली सल्तनत का हिस्सा हो गए थे।
* खिज्र खां द्वारा सीमा विस्तार पर कोई प्रयास नहीं किया गया, बल्कि उसने अपने साम्राज्य को इक्ताओं (सुबो) तथा शिको (जिलों की भांति) बांट दिया। इससे वह स्थानीय लोगों की वफादारी हासिल करने में सफल रहा।
* खिज्र खां द्वारा दिल्ली के आसपास के उपजाऊ क्षेत्र को हासिल करना तथा वहां के जागीरदारों से राजस्व वसूलने के लिए सैनिक बल का प्रयोग करना पड़ा। हालांकि इसने तुर्की अमीरों को संतुष्ट करने के लिए उनको अपनी जगीरो से वंचित नहीं किया फिर भी इनके द्वारा समय-समय पर विद्रोह किया जाता था।
*विद्रोह को दबाने हेतु सैनिक अभियान किया जाता, कुछ जमीदार स्वेच्छा से राजस्व देते लेकिन कुछ अपने किलो में बंद हो जाते जो कि पराजित होने पर ही राजस्व देते थे। इस प्रकार खिज्र खां का उद्देश्य बन गया था, कि सैनिक अभियान कर राजस्व वसूलना इतने सैनिक अभियान करने के बाद भी यह विद्रोही जागीरदारों को स्थाई रूप से समाप्त करने में असफल रहा।
* खिज्र खां के द्वारा राजस्व वसूलने के लिए कटेहर, इटावा, खोर, जलेसर, ग्वालियर, बयाना, मेवात, बदायूं आदि पर सैनिक अभियान करने पड़े।
* सैनिक अभियानों में खिज्र खां के मंत्री ताज-उल-मुल्क ने इसकी बहुत सहायता की।
* खिज्र खां का अंतिम सैनिक अभियान था। मेवात पर आक्रमण जिसमें कोटा के किले को नष्ट कर दिया गया। बाद में ग्वालियर के कुछ क्षेत्रों को लूटने तथा इटावा के राजा द्वारा आधिपत्य स्वीकार करना। तत्पश्चात दिल्ली वापस आते समय रास्ते में बीमार हो गया। जिसके कारण 20 मई 1421 को दिल्ली में खिज्र खां की मौत हो गई।
* खिज्र खां बुद्धिमान, उदार एवं न्यायप्रिय शासक होने के साथ-साथ उसका व्यक्तिगत चरित्र भी अच्छा रहा। प्रजा उससे प्रेम करती थी, इसी कारण उसकी मृत्यु पर प्रजा द्वारा काले कपड़े पहनकर शोक प्रकट किया गया।
मुबारक शाह (1421-1434 ई.) :-
•सैयद वंश के संस्थापक खिज्र खां अपने पुत्र मुबारक खां को उत्तराधिकारी नियुक्त किया, जो मुबारक शाह के नाम से सिंहासन पर बैठा।
* यह स्वतंत्र शासक की तरह रहा, इसने खुत्बा पढ़वाया, सिक्के चलवाए, शाह की उपाधि धारण की इससे स्पष्ट होता है, कि इसने किसी की अधीनता स्वीकार नहीं की।
•मुबारक शाह के तीन मुख्य शत्रु थे। उत्तर पश्चिम में खोक्खर नेता जसरथ, दक्षिण में मालवा का शासक, पूर्व में जौनपुर का शासक।
* मुबारक शाह ने “मुइज्जुद्दीन मुबारक शाह” के नाम से सिक्के चलवाए।
* इसके द्वारा अपने वंश पर तैमूर वंशीय प्रभाव को समाप्त करने का प्रयास किया गया।
* मुबारक शाह द्वारा अपने प्रशासनिक पदों पर हिंदू अमीरों को नियुक्त किया जाना ऐतिहासिक कार्य था ।
* मुबारक शाह द्वारा यमुना नदी के किनारे मुबारकाबाद नामक एक नगर की स्थापना की गई जो वर्तमान में हरियाणा राज्य में अवस्थित है।
* मुबारक शाह के शासनकाल में “याहिया सर हिंदी” द्वारा तारीख के मुबारक शाही ग्रंथ लिखा गया, जिसके द्वारा सैयद वंश के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।
• 19 फरवरी 1434 को उसके वजीर “सरवर-उल-मुल्क” ने धोखे से मुबारक शाह की हत्या कर दी।
* वजीर सरवर-उल-मुल्क पहले मलिक स्वरूप नामक हिंदू था। परंतु बाद में धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बन गया।
•खिज्र खां के समय सरवर-उल-मुल्क दिल्ली का कोतवाल नियुक्त हुआ। सन् 1422 में वजीर बना।
• मुबारक शाह सरवर-उल-मुल्क को पसंद नहीं करता था, इसी कारण उसने राजस्व के अधिकार छीनकर नायाब सेनापति कमाल-उल-मुल्क को प्रदान किये ।इसी बात से असंतुष्ट होकर इसने नवीन नगर मुबारकबाद का निरीक्षण करते समय मुबारक शाह की धोखे से हत्या कर दी।
* मुबारक शाह के कार्यकाल को देखा जाए तो यह सैयद वंश के सभी शासको में योग्यतम् शासक सिद्ध हुआ।
मुहम्मद शाह (मुहम्मद-बिन- फरीद खां) :-
* मुहम्मद-बिन-फरीद खां जो कि मुबारक शाह के भाई का पुत्र (भतीजा) था। मुहम्मद शाह के नाम से गद्दी पर बैठा।
* मुहम्मद शाह एक विलासी तथा अयोग्य शासक सिद्ध हुआ, जिससे सैयद वंश के पतन की नींव पड़ी।
* वजीर सरवर-उल-मुल्क का मुहम्मद शाह के प्रारंभिक शासनकाल में पूर्ण प्रभाव रहा। इसके द्वारा मुबारक शाह की हत्या में शामिल होने वाले हिंदू सामंतों को उच्च पद प्रदान किये गए। कमाल-उल-मुल्क मुहम्मद शाह का नायब सेनापति था। यह हमेशा सैयद वंश का वफादार रहा।
* कमाल-उल-मुल्क ने एक षड्यंत्र के द्वारा वजीर सरवर-उल-मुल्क की हत्या करवा दी। इस षड्यंत्र में मुहम्मद शाह भी शामिल था।
•तलपट का युद्ध (दिल्ली से 10 मील दूर )मालवा के शासक महमूद और मुहम्मद शाह के मध्य हुआ। इस युद्ध में मुल्तान के सूबेदार बहलोल ने मुहम्मद शाह का सहयोग किया। युद्ध अनिर्णित रहा।
* मुहम्मद शाह ने बहलोल को अपना पुत्र कहा तथा सम्मान में “खान एक खाना” की उपाधि प्रदान की।
* बहलोल ने पंजाब के अधिकांश भाग पर अधिकार कर लिया, जिसे सुल्तान द्वारा स्वीकृत प्रदान की गई। जिससे बहलोल का मनोबल बढ़ा और उसने 1443 ईस्वी में दिल्ली पर आक्रमण कर दिया, लेकिन यह असफल रहा।
•मुहम्मद शाह एक असफल शासक सिद्ध हुआ। क्योंकि राज्य की सीमाओं की सुरक्षा न कर सका तथा आंतरिक विद्रोह दबा न सका। इसी के समय से सैयद वंश का पतन प्रारंभ हो गया। सुल्तान की मृत्यु 1445 में हो गई।
अलाउद्दीन आलम शाह (1445-1450 ई. तक) :-
मुहम्मद शाह की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र अलाउद्दीन “अलाउद्दीन आलम शाह” के नाम से गद्दी पर बैठा। अलाउद्दीन आलम शाह एक विलासी शासक था, वह अपने वजीर हमीद खां से झगड़ा कर बदायूं भाग गया, और वही बस गया। सैयद वंश के शासको में यह सबसे अयोग्य शासक सिद्ध हुआ।
* 1447 ईस्वी में बहलोल लोदी ने पुनः दिल्ली पर आक्रमण किया, परंतु वह असफल रहा।
• 1450 तक संपूर्ण शासन बहलोल ने अपने हाथों में ले लिया, लेकिन इसने बदायूं में रह रहे अलाउद्दीन को अपदस्थ करने की कोशिश नहीं की।
1476 में अलाउद्दीन के पश्चात उसके दामाद जौनपुर के शासक हुसैन शाह शर्की ने बदायूं को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया।
* इसी प्रकार सैयद वंश अपने 37 साल के अल्प शासनकाल में समाप्त हो गया।
सैयद वंश का अंतिम शासक ?
-सैयद वंश का अंतिम शासक अलाउद्दीन आलम शाह (1445-1450 ई. तक) था।
सैयद वंश का संस्थापक कौन था ?
सैयद वंश का संस्थापक खिज्र खां था।
सैयद वंश का शासन काल ?
सैयद वंश का शासन काल 1414-1450 ई. तक रहा ।
सैयद वंश के शासको के नाम ?
खिज्र खां (1414-1421 ई.)
मुबारक शाह (1421-1434 ई.)
मुहम्मद शाह “मोहम्मद बिन फरीद खान” (1434-1445 ई.)
अलाउद्दीन आलम शाह (1445-1450 ई.)
सैयद वंश के शासको का क्रम ?
खिज्र खां (1414-1421 ई.)
मुबारक शाह (1421-1434 ई.)
मुहम्मद शाह “मोहम्मद बिन फरीद खान” (1434-1445 ई.)
अलाउद्दीन आलम शाह (1445-1450 ई.)
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